डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी: भारत की एकता के अमर प्रहरी

भारत की एकता के अमर प्रहरी
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Dr. Shyama Prasad Mukherjee: The immortal sentinel of India's unity

Dr. Hemant Khandelwal : कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जो अपने विचारों, संघर्षों और बलिदानों से समय की धारा को मोड़ने का संकल्प रखते हैं। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ऐसे ही युगपुरुष थे, जिनकी राष्ट्रभक्ति, दूरदृष्टि और दृढ़ संकल्प ने भारत की एकता-अखंडता को सुदृढ़ किया। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ऐसे ही एक युगद्रष्टा थे, जिनका जीवन भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए समर्पित था। वे केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि शिक्षाविद, समाज सुधारक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रबल प्रवक्ता थे। 6 जुलाई को उनका जन्मदिवस केवल एक स्मरण तिथि नहीं, बल्कि राष्ट्रनिष्ठा, त्याग और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

देश की स्वतंत्रता के पश्चात जम्मू-कश्मीर को लेकर जो परिस्थितियाँ निर्मित हुईं, वे राष्ट्र की एकता के लिए चुनौती बन गईं थी। अनुच्छेद 370 और 35ए जैसे प्रावधानों ने जम्मू-कश्मीर को भारत से पृथक करने का प्रयास किया। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस वैचारिक विभाजन का डटकर विरोध किया। उनका स्पष्ट मत था कि "एक देश में दो प्रधान, दो विधान और दो निशान नहीं चल सकते।" यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि उनका जीवन दर्शन था। उन्होंने कहा था कि जब कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, तो वहाँ भी भारत के समान संविधान और शासन होना चाहिए। अपने इस सिद्धांत को सत्य सिद्ध करने के लिए उन्होंने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया, वर्षों बाद उनका सपना साकार हुआ जब 2019 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त किया गया। यह कदम केवल एक संवैधानिक सुधार नहीं था, बल्कि यह भारत की एकता और अखंडता को मजबूत करने का ऐतिहासिक संकल्प था। इस निर्णय के पीछे डॉ. मुखर्जी के राष्ट्रवाद की विचारधारा स्पष्ट रूप से झलकती है।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय राजनीति में एक स्पष्ट और सशक्त राष्ट्रीय विचारधारा प्रस्तुत की। जब पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वैचारिक प्रतिबद्धताएँ राष्ट्रहित से टकराने लगीं, तब उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। यह केवल पद का त्याग नहीं था, बल्कि राष्ट्रहित के लिए एक साहसिक और कर्त्तव्य निष्ठ कदम था। इसके बाद उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो भविष्य में भारतीय जनता पार्टी के रूप में विकसित होकर देश की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति बनी। डॉ. मुखर्जी का सबसे बड़ा संघर्ष जम्मू-कश्मीर की 'परमिट प्रणाली' के खिलाफ था। यह व्यवस्था कश्मीर में भारतीय नागरिकों की स्वतंत्र आवाजाही को सीमित करती थी, जिससे भारत के अंदरूनी हिस्सों को एक-दूसरे से जोड़ना मुश्किल हो रहा था। 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर की यात्रा करने का साहस दिखाया, जिसके पश्चात उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। श्रीनगर की जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु 23 जून 1953 को हुई। अत्यंत पीड़ादायक है कि न उन्हें समुचित चिकित्सा व्य्वस्था प्रदान की गई और न ही उनकी मौत की निष्पक्ष जांच की गई। उनकी माता श्रीमती योगमाया देवी ने इसे ‘मेडिकल मर्डर’ करार दिया, पर सत्ता तंत्र मौन रहा। डॉ. मुखर्जी का यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनके निधन के कुछ सप्ताहों के भीतर ही कश्मीर की परमिट प्रणाली समाप्त कर दी गई और धीरे-धीरे वह व्यवस्था बदली, जिसने देश के भीतर अलगाव और तनाव पैदा किया था। हालांकि कांग्रेस सरकारों ने दशकों तक उनकी चेतावनियों को नजरअंदाज किया, परन्तु उनकी विचारधारा आज भी भारतीय राष्ट्रवाद का आधार है।

2004 के बाद जब देश में कांग्रेस की सत्ता रही, तब जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता देने की बातें पुनः उठी। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 2010 में जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता की बात कहकर भारत की जनता के हितों के साथ खिलवाड़ किया। कांग्रेस ने पीडीपी की कठपुतली बनकर आतंकवादियों के प्रति नरमी बरती, जिससे कश्मीर में दशकों तक हिंसा और विस्थापन हुआ। हजारों नागरिक शरणार्थी बने और उनकी जिंदगी कठिन हुई। इस दौरान अलगाववादी शक्तियों को बढ़ावा मिला और भारत विरोधी गतिविधियां फलने-फूलने लगीं। इसके विपरीत, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के बाद जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद और अलगाववाद को दफन कर देश की एकता को मजबूत किया। डॉ. मुखर्जी के संघर्ष और बलिदान के कारण ही जम्मू-कश्मीर आज भारत का अभिन्न हिस्सा है। भारतीय जनसंघ से भाजपा तक की राजनीति का मूल राष्ट्रवाद रहा है, जिसने देश की अखंडता और सुरक्षा को सर्वोपरि रखा।

शिक्षा के क्षेत्र में भी डॉ. मुखर्जी ने अमूल्य योगदान दिया। उन्होंने उच्च शिक्षा को भारतीय संस्कृति से जोड़ने पर जोर दिया, ताकि देश की युवा पीढ़ी अपने सांस्कृतिक मूल्यों के साथ आधुनिक ज्ञान प्राप्त कर सके। आज नई शिक्षा नीति में भी उनके विचारों की परछाई मिलती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार की कई जनकल्याणकारी योजनाएं प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, तीन तलाक विरोधी कानून, डॉ. मुखर्जी के सामाजिक दृष्टिकोण और राष्ट्रहित के विचारों का प्रतिफल हैं। ये योजनाएं देश के गरीब और पिछड़े तबकों को सशक्त बनाने का प्रयास करती हैं, जैसा कि डॉ. मुखर्जी ने सदैव समर्थन किया।

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी भारत के महान राष्ट्रवादी नेता थे, जिनका जीवन देशभक्ति और समर्पण की मिसाल है। वे पद, प्रतिष्ठा या स्वार्थ से ऊपर उठकर केवल देश की सेवा में लगे रहे। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा राष्ट्रवाद केवल सत्ता प्राप्ति का साधन नहीं, बल्कि सिद्धांतों और न्याय के लिए निरंतर संघर्ष है। आज जब भारत 2047 में स्वावलंबी और विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर है, तब उनकी शिक्षाएं और भी प्रासंगिक हो जाती हैं। डॉ. मुखर्जी का आदर्श और बलिदान हमारे लिए एक अमर प्रेरणा हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को एकजुट, मजबूत और आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।

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