महिला वर्ल्डकप: छोटे शहरों की बेटियां करतीं सपने साकार

2 नवंबर 2025 का यह ऐतिहासिक पल था, जब नवी मुंबई के दर्शकों से खचाखच भरे डी.वाई. पाटिल स्टेडियम में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर पहली बार आईसीसी महिला ओडीआई विश्वकप पर कब्जा जमाया। गौर करें कि इस विजयी टीम की अधिकांश खिलाड़ी छोटे शहरों या ग्रामीण इलाकों से आती हैं। रोहतक की शैफाली वर्मा, आगरा की दीप्ति शर्मा, धर्मशाला की रेणुका सिंह, उमा चेत्री (असम), क्रांति गौड़ (मध्यप्रदेश) तथा श्री चरनी (आंध्रप्रदेश) ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित हैं। क्या यह संकेत है कि अब छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों से भारत को बड़े खिलाड़ी मिलेंगे? बिल्कुल हां।
यदि हम भारतीय क्रिकेट के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि देश का क्रिकेट हमेशा बड़े महानगरों जैसे मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। छोटे शहरों से आने वाले खिलाड़ी अपवाद थे। महिला क्रिकेट में भी यही सिलसिला चला। 1980-90 के दशक में मिताली राज (हैदराबाद) और फूलन गोस्वामी (कोलकाता के उपनगर) जैसी दिग्गजों ने रास्ता दिखाया, लेकिन टीम का मुख्य आधार हमेशा बड़े शहरों से ही रहा।
लेकिन 2025 विश्वकप की भारतीय टीम में यह परिवर्तन स्पष्ट है। 15 सदस्यीय स्क्वॉड में कम से कम 10 खिलाड़ी छोटे शहरों या ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं।
उदाहरण के लिए, शैफाली वर्मा रोहतक से हैं, जहां क्रिकेट अकादमियां सीमित हैं। शैफाली ने स्थानीय क्लब से शुरुआत की और 16 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय डेब्यू किया। इसी तरह, दीप्ति शर्मा आगरा से हैं, जहां ताजमहल की छाया में क्रिकेट का सपना देखना आसान नहीं था। दीप्ति ने घर पर ही नेट प्रैक्टिस की और आज वे विश्वकप की हीरो हैं।
नई पीढ़ी की ये लड़कियां और भी प्रेरणादायक हैं। उमा चेत्री, असम के सिलचर जिले के एक छोटे से गांव से हैं, जहां बाढ़ और गरीबी आम हैं, और उन्होंने विकेटकीपिंग में अपनी छाप छोड़ी। उनकी कहानी फिल्मी लगती है—स्कूल के मैदान पर गेंद पकड़ते हुए सपने बुनना, फिर राज्य स्तर पर चयन और विश्वकप फाइनल में योगदान।
मध्यप्रदेश के छतरपुर से आती हैं क्रांति गौड़, जिन्होंने खेतों के बीच गेंदबाजी सीखी। वे स्पिनर हैं और विश्वकप में अपनी किफायती गेंदबाजी से दक्षिण अफ्रीका को परेशान किया। श्री चरनी आंध्रप्रदेश के एक पिछड़े क्षेत्र से संबंध रखती हैं, जहां क्रिकेट इंफ्रास्ट्रक्चर नगण्य है। ये नाम न सिर्फ टीम की ताकत हैं, बल्कि छोटे शहरों की प्रतिभाओं का प्रमाण भी हैं।
ESPN Cricinfo के अनुसार, भारतीय महिला टीम के 2025 स्क्वॉड में 70% खिलाड़ी गैर-महानगरीय पृष्ठभूमि से हैं, जो 2017 विश्वकप स्क्वॉड (जिसमें 40% थे) से दोगुना है।
यह बदलाव अचानक नहीं हुआ। इसके पीछे कई कारण हैं। सबसे पहले, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) की महिला क्रिकेट पर बढ़ती फोकस। 2013 के बाद से, BCCI ने घरेलू टूर्नामेंट्स जैसे सीनियर महिला ट्रॉफी और सुपर लीग में छोटे राज्यों को अधिक मौके दिए। इससे असम, तेलंगाना जैसे राज्यों से प्रतिभाएं उभरीं।
दूसरा, डिजिटल क्रांति का योगदान। यूट्यूब, इंस्टाग्राम और टिकटॉक पर कोचिंग वीडियो उपलब्ध होने से छोटे शहरों की लड़कियां घर बैठे सीख रही हैं। उदाहरण स्वरूप, रेणुका सिंह (हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से) ने ऑनलाइन ट्यूटोरियल्स से स्विंग बॉलिंग सीखी।
तीसरा, सरकारी योजनाएं। 'खेलो इंडिया' और 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसी पहलों ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया। असम सरकार ने उमा चेत्री जैसे खिलाड़ियों के लिए विशेष छात्रवृत्ति भी दी।
चौथा, महिला प्रीमियर लीग (WPL) का प्रभाव। 2023 से शुरू हुई WPL ने छोटे शहरों की लड़कियों को ऐसा प्लेटफॉर्म दिया जहां वे बड़े कोचों से सीख सकें।
लेकिन चुनौतियां अभी भी हैं। छोटे शहरों में सुविधाओं की कमी जैसे अच्छे ग्राउंड, कोचिंग सेंटर या सुरक्षित यात्रा अब भी बाधा हैं। क्रांति गौड़ ने एक इंटरव्यू में कहा, "मुझे वारंगल से हैदराबाद ट्रेन से जाना पड़ता था, लेकिन मेरे परिवार का समर्थन ही मेरी ताकत था।"
लैंगिक पूर्वाग्रह भी एक मुद्दा है। कई परिवारों में लड़कियों को क्रिकेट खेलने की अनुमति देना ही बड़ी जीत होती है। फिर भी ये बेटियां साबित कर रही हैं कि सपने शहर की सीमाओं में नहीं बंधते।
विश्वकप जीत के बाद रोहतक में शैफाली के सम्मान समारोह में हजारों लड़कियां मैदान पर उतरीं, जो भविष्य की प्रतिभाओं का संकेत हैं। यह रुझान पुरुष क्रिकेट तक सीमित नहीं है; महिलाओं में यह तेजी से दिखाई दे रहा है क्योंकि क्रिकेट अब लैंगिक बाधाओं को तोड़ रहा है।
इस जीत का सामाजिक प्रभाव भी गहरा है। छोटे शहरों की लड़कियां अब देख रही हैं कि क्रिकेट न सिर्फ खेल है, बल्कि आर्थिक सशक्तिकरण का साधन भी है। विश्वकप विजेताओं को मिलने वाले इनाम (BCCI से 5 करोड़ रुपए) और एंडोर्समेंट डील्स से परिवारों की जिंदगी बदल रही है।
उमा चेत्री की मां, जो एक स्कूल टीचर हैं, कहती हैं, "मेरी बेटी ने गांव का नाम रोशन किया। यह प्रेरणा लाखों लड़कियों को मैदान की ओर धकेल रही है।"
शिक्षा और खेल का संतुलन भी बेहतर हो रहा है, कई खिलाड़ी ग्रेजुएट हैं, जो साबित करता है कि छोटे शहर अब पिछड़े नहीं हैं।
कुल मिलाकर, अब छोटे शहरों से भारत के बड़े खिलाड़ी आ रहे हैं। 2025 महिला विश्वकप जीत इसका जीवंत प्रमाण है। यह बदलाव क्रिकेट को अधिक समावेशी बना रहा है, जहां प्रतिभा का जन्म स्थान मायने नहीं रखता। लेकिन इसके लिए और निवेश चाहिए—ग्रामीण अकादमियां, महिला कोचिंग प्रोग्राम और जागरूकता।
जैसा कि हरमनप्रीत कौर ने फाइनल के बाद कहा, "यह जीत उन सभी छोटे शहरों की बेटियों के लिए है जो सपने देखती हैं।"
