विशेष आलेख: “आस्था के साथ खिलवाड पर चुप्पी क्यों?” - ज्ञानेन्द्र रावत

ज्ञानेन्द्र रावत: देश में आस्था के साथ खिलवाड का बीते कुछ सालो से एक रिवाज सा बन गया है या यूं कहें कि एक धर्म विशेष के लोगो द्वारा दूसरे धर्म के अनुयायियों या मतावलम्बियों की आस्था या उनकी धार्मिक भावनाओं को खण्डित किये जाने की एक सुनियोजित साजिश की जा रही है। पिछले कुछ सालों की घटनाओं से तो यही जाहिर होता है।
वह चाहे जूस में थूके जाने का सवाल हो, फलों पर थूक लगाने का सवाल हो, रोटी पर थूके जाने का सवाल हो या खाने-पीने की दूसरी चीजों पर थूक लगाकर कर बेचे जाने या मूत्र मिलाकर खाना बनाने का सवाल हो या फिर नाम बदल कर दूसरे धर्म या जाति के नाम पर खाने-पीने की दुकान या ढाबा चलाने का सवाल हो, ऐसी घटनायें अक्सर धार्मिक विद्वेष या यूं कहें कि विवाद का कारण बनती रही हैं।
हर साल सावन के महीने में हिन्दुओं द्वारा कांवड यात्रा के दौरान ऐसी घटनायें अब आम हो गयी हैं। इस पर विवाद भी हर साल होता है और बवाल भी। लेकिन एक धर्म विशेष के लोगों द्वारा या यूं कहें कि मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा ऐसे कारनामे कर सांप्रदायिक उन्माद को भड़काने के प्रयास की जितनी भी निंदा की जाये वह कम है।
ऐसे कारनामे राष्ट्र की एकता और अखंडता के नाम पर कलंक हैं। जबकि जब जब ऐसी घटनायें होती हैं, देश के राजनीतिक दलों के नेताओं, मुस्लिम कट्टरपंथियों और तथाकथित धर्म निरपेक्षता का लबादा ओढे नेताओं द्वारा ऐसे घृणित कृत्य करने वाले लोगों की निंदा करना तो दूर उनके समर्थन में आवाज बुलंद करने वाले नेताओं की बाढ सी आ जाती है और वो दूसरे धर्म के लोगों की आस्था से खिलवाड करने वाले लोगों का विरोध करने व उनकी इस घृणित साजिश का खुलासा करने वालों की भर्तस्ना करने में अपनी एडी-चोटी का जोर लगा देते हैं बिना यह सोचे-समझे कि क्या यह उचित है या अनुचित। इनमें सर्वोपरि हैं काग्रेस के शीर्ष नेता, राज्य सभा सदस्य व मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री राजा दिग्विजय सिंह, एआईआईएम के सर्वोच्च नेता संसद सदस्य मौलाना अससुद्दीन ओवैसी और पूर्व सांसद समाजवादी पार्टी के नेता एस टी हसन।
बीते दिनो स्वामी यशवंत और उनके समर्थको- स्वयंसेवकों द्वारा कांवड यात्रा मार्ग पर चलाये गये दुकानदारों, ढाबों और खान-पान का कारोबार करने वालो की पहचान उजागर करने के अभियान के बीच पंडित जी ढाबा के कर्मचारी व मालिक की असलियत तजम्मुल व सनब्बर के रूप में उजागर होने की बात जो पकडे जाने पर उसने खुद स्वीकार भी की कि इस पंडित जी ढाबे का मालिक सनब्बर नाम का मुसलमान है और मेरा नाम तजम्मुल है। मै यहां काम करता हूं। मालिक ने ही मुझे कडा पहनाया और किसी के पूछने पर नाम गोपाल और पंडितजी का बेटा बताने को कहा था। गौरतलब हो कि दिल्ली देहरादून नेशनल हाईवे पर स्थित इस पंडितजी वैष्णों ढाबे पर कांवड यात्रियों को धोखा देने की गरज से भगवा झंडे व भगवान वाराह के फोटो लगे हुये थे। यह मामला पकड में आ गया वर्ना देश में इस तरह न जाने हजारों की तादाद में ढाबे-होटल चल रहे हैं जो लोगो को धोखा दे उनका धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं। यह सच है कि जिहादी मानसिकता के लोग कभी थूक तो कभी मूत्र मिलाकर खाने-पीने की सामग्री की पवित्रता नष्ट कर रहे हैं। यहां यह गौरतलब है कि इन लोगों को अपनी पहचान छुपाने की जरूरत क्यों है। पहचान जाहिर कर अपना धंधा क्यों नहीं करते। इसमें परेशानी क्या है। पहचान छुपाना बदनीयती का सबूत है। समझ नहीं आता जब सरकारी सुविधा,आरक्षण और वजीफा लेने की बात आती है, तब तो खुले आम अपनी जाति और धर्म बता दिया जाता है, फिर धंधा करने पर पहचान क्यों छिपायी जाती है।
वैसे खाद्य पदार्थों में मानव अपशिष्ट व गंदगी मिलाने की बढती घटनाओं को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने इसकी रोकथाम के लिए कडा कानून बनाने की पहल की है। राज्य के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ ने इस कृत्य को संज्ञेय अपराध माना है। उनका मानना है कि खाद्य पदार्थों की पवित्रता सुनिश्चित करने और सार्वजनिक व्यवस्था के बारे में उपभोक्ताओं में विश्वास बनाए रखने हेतु कठोर कानून का होना बेहद जरूरी है। उनकी स्पष्ट मान्यता है कि हर उपभोक्ता का अधिकार है कि वह खाद्य व पेय पदार्थ के बारे में विक्रेता व सेवा प्रदाता के बारे में आवश्यक जानकारी रख सके। अपनी पहचान छुपाकर खान-पान की वस्तुओं व पेय पदार्थ में मानव अपशिष्ट, अखाद्य गंदी चीजों की मिलावट रोकने के लिये शीघ्र नये कानून की रूपरेखा तैयार किये जाने की प्रक्रिया चल रही है। ऐसी घटनायें सामाजिक सौहार्द पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। ऐसे कुत्सित प्रयास कतई स्वीकार नहीं किये जा सकते। होटल, रेस्टोरेंट, ढाबा, स्ट्रीट वेंडर से जुडी इन गतिविधियों के सम्बंध में स्पष्ट कानून होना चाहिए। छद्म नाम रखने,गलत जानकारी देने और उस कानून का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध कठोर कारावास या अर्थदण्ड की सजा सुनिश्चित की जानी चाहिए। उत्तराखण्ड के मुख्य मंत्री पुष्कर सिंह धीमी ने भी थूक जिहाद पर कडा रुख अख्तियार किया है और ऐसे मामलों को गंभीरता से लेने के निर्देश दिये हैं। ऐसे किसी दुष्कृत्य के लिए राज्य में कोई स्थान नहीं है। ऐसी घटनाओं से न केवल खाद्य पदार्थ दूषित होते हैं,बल्कि भावनायें भी आहत होती हैं। ऐसी घटनाओं पर सरकार कठोर कार्रवाई करेगी।
इसके अलावा देश में बरसों से नाम बदल कर हिंदू लडकियों को प्रेमजाल में फंसा उनसे विवाह कर फिर मुस्लिम बनाने का धंधा जारी है। फिर उनको खाडी देशों मे बेच दिया जाता है। हाल ही में केरल और पीलीभीत की घटना इसकी जीती जागती मिसाल हैं। यह आये-दिन की बात है। सैकडों घटनायें ऐसी रोज होती हैं। दुखदायी बात यह है कि इन घटनाओं पर न तो देश का कोई नेता बोलता है, न मौलवी बोलता है और न ये समाजवाद और धर्म निरपेक्षता का चोला पहने ये नेता आखिर क्यों नहीं बोलते ये। तब ये क्यों मौन रहते हें। तब इनको क्यों सांप सूंघ जाता है। कारण इससे इनका वोट बैंक बढता है। अगर वे इसके खिलाफ बोले तो उनको अपनी जमीन खिसकने का डर रहता है। इसीलिए वे अपना मुंह सिले रहते हैं। इससे तो यह जाहिर होता है कि यह सब एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है जिसके तहत हिन्दुओं का धर्म भ्रष्ट किया जा सके, उनकी बहन-बेटियों को प्रेमजाल में फांसकर उनका धर्म परिवर्तन कराकर उन्हें खाडी देशों में बेचा जा सके। जरूरत है ऐसी साजिशों का भंडाफोड कर इनके खिलाफ कडी कार्यवाही करने की। यदि इन्हें नहीं रोका गया, इनके खिलाफ कोई कडी कार्रवाई नहीं की गयी और इनकी साजिशें परवान चढती रहीं, तो ऐसी स्थिति में आने वाले समय में न हिंदू रहेगा और न यह राष्ट्र ही बचेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एव पर्यावरणविद हैं।)