विभाजन का दंश, कौन जिम्मेदार

हां, वही अल्लामा इक़बाल जिन्होंने लिखा था सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा। जिसे हम आज भी राष्ट्र गान के बाद लगभग दूसरे नंबर पर रखते हैं।अल्लामा इकबाल ने इसी गीत में लिखा था कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा । ये लिखने वाले मोहम्मद इकबाल ने ही पाकिस्तान की भी इबारत लिखी।
उसने तबके इलाहाबाद और अभी के प्रयाग राज में हुए मुस्लिम लीग के अधिवेशन में पाकिस्तान की संकल्पना रखी. मोहम्मद इकबाल लीग के इस अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे थे. इसी अधिवेशन में पाकिस्तान का प्रारूप तय . सारे जहाँ से अच्छा वाले मोहम्मद इकबाल ने कहा कि मैं चाहता हूं कि पंजाब, उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत, सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर मुसलामानों के लिए एक अलग देश बने. उसने कहा कि भारत के मुसलामानों की यही अंतिम नियति है. इकबाल ने 29 दिसंबर 1930 को ये कहा और इसी आधार पर गवर्नमेंट आफ़ इंडिया 1935 सामने आया. जिसके आधार पर मुसलमानों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र बनाए गए। बड़ी गलती कांग्रेस ने यह की कि जब देश में चुनाव हुए तो यूनाइटेड प्रोविंस की 228 सीटों में 64 मुसलमानों के लिए आरक्षित की गई । कांग्रेस का हश्र यह हुआ कि उसका एक मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर आया और नींव पड़ी विभाजन की।
कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मौलाना आजाद अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'इंडिया विंस फ्रीडमÓ के पेज नंबर 161 पर लिखते हैं कि मुस्लिम लीग 1937 में ही खत्म हो गई होती. लेकिन यूनाइटेड प्रोविंस से मुस्लिम लीग को ताकत मिली। जिन्ना ने इसका भरपूर फायदा उठाया और पाकिस्तान बन गया।
दरअसल नेहरु जी की इस समझ ने कि वे जिन्ना को पाकिस्तान देकर, जिन्ना से मुक्ति पा लेंगे का था। यह बात माउंटबेटन के प्रेस सलाहकार एलन कैंपबेल जोहानसन ने अपनी किताब 'मिशन वेद माउंटबेटनÓ में लिखी है। यह उसी तरह का फार्मूला है जैसे कोई सिर दर्द होने पर अपना सिर ही कटवा ले । एलन अपनी माँ को लिखे पत्र में लिखते हैं 'लगता है कि अगर फैसला विभाजन के पक्ष में हुआ तो बड़े स्तर पर सांप्रदायिक दंगे हो सकते हैंÓ सवाल खड़ा यह होता है कि यदि अंग्रेजों और कांग्रेस दोनों को यह पता था कि दंगे और हिंसा बड़े पैमाने पर हो सकते हैं तो उन्हें रोकने के प्रयास क्यों नहीं हुए एक और प्रश्न जो खड़ा होता है वह यह है कि जिस स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारियों ने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया 1947 आते ही सत्ता के लिए यह नेता अंग्रेजों के दोस्त क्यों बन गए? सिर्फ जिन्ना से छुटकारा पाने के लिए देश को ही बांट दिया। लाखों-करोड़ों को मरने मारने पर छोड़ दिया । बंटवारे के इस निर्णय ने 10 करोड़ लोगों का शांति से चल रहा जीवन एक ही रात में नर्क बना दिया। धर्म आधारित भारत विभाजन ने मानवीय इतिहास के सबसे बड़े विस्थापन के हालात पैदा कर दिए उस समय अविभाजित पंजाब की जनसंख्या 3 करोड़ 43 लाख 09 हजार 861 और बंगाल की कुल जनसंख्या 6 करोड़ 14 लाख 60 हजार 377 थी। विभाजन का दंश इन्हीं दो प्रांतों ने सबसे ज्यादा झेला।
जिस विभाजन की सीमाएं 30 मिनट में अंग्रेजों ने तय कर दी , उसके बारे में डॉक्टर अंबेडकर ने एक किताब लिखी है । डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की इस किताब का नाम 'पाकिस्तान आर द पार्टीशन ऑफ इंडियाÓ है जो 1945 में ही प्रकाशित हो गई । बाबा साहब ने वर्षों पहले ही सचेत कर दिया था कि अगर भारत का बंटवारा होता है तो पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों का भविष्य सुरक्षित नहीं रहेगा और अंतत: जैसा कि डॉक्टर अंबेडकर ने चेताया था। दुर्भाग्य से ऐसा ही हुआ। सांप्रदायिक विभाजन का हश्र बहुत ही भयावह था। लियोनार्ड मूसली अपनी किताब के प्रश्न 279 पर लिखता है कि अगस्त 1947 से अप्रैल 1948 तक ही 1 लाख 40 हजार लोगों का विस्थापन हुआ। इस काल में छह लाख की हत्या कर दी गई। बच्चों को पैरों से उठाकर उनके सिर दीवार से फोड़ दिए गए।
बच्चियों का बलात्कार किया गया।बलात्कार करके लड़कियों के स्तन काटे गए। जो अमानवीयता हुई उसे लिखा क्या सोचा भी नहीं जा सकता । लोग गुहार लगाते रहे , विस्थापित मरते रहे।
माउंटबेटन का प्रेस सलाहकार एलन कैंप विल लिखता है कि 21 सितंबर 1947 की सुबह गवर्नर जनरल के डकोटा हवाई जहाज से लॉर्ड माउंटबेटन के साथ हालात का जायजा लेने कुछ अंग्रेज अधिकारी, एलन, नेहरू जी , पटेल, नियोगी और राजकुमारी अमृत कौर पूर्वी व पश्चिमी पंजाब का दौरा करने निकले । जब यह नेता और अंग्रेज भटिंडा पहुंचे तो भयंकर उथल-पुथल का आभास हो गया । यह बड़ा रेलवे स्टेशन है, आदमियों से भरी दो ट्रेन स्टेशन पर खड़ी थी। कुछ विस्थापित ट्रेन की छत पर चढ़े थे। कुछ खिड़कियों और पैदानों पर लटके थे यहां तक की इंजन के ऊपर भी चढ़े थे। इस दल को फिरोजपुर पहुंचने पर भी विस्थापितों से लदी ऐसी ही ट्रेने मिली। रावी पहुंचते पहुंचते जन समुदाय के इस भयंकर विस्थापन के आकार प्रकार का पहला विहंगम दृश्य हमारे सामने आया। पलायन पर मजबूर लोगों के पहले काफिले की झलक इस दल ने फिरोजपुर पर देखी। इसका पीछा करते हुए यह लोग रावी नदी के ऊपर बहुत दूर तक उड़े। विस्थापितों के इस दुर्भाग्यशाली प्रवाह के साथ 50 मील तक उड़ने पर भी उसका छोर ना मिला। विस्थापन का यह आधिकारिक सर्वे था। इसलिए यह न सिर्फ महत्वपूर्ण है बल्कि अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस दौर में क्या स्थितियां रही होगी। सबसे पहले ध्यान देना होगा कि यह दौरा 21 सितंबर को हुआ। यानी विभाजन के 38 दिनों बाद। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभाजन का दंश कुछ दिनों नहीं बल्कि महीनों झेला गया था।
(लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्यभारत प्रांत के सह प्रचार प्रमुख हैं।)
