पाकिस्तान क्या खतरे में पड़ गया इस्लाम!

पाकिस्तान क्या खतरे में पड़ गया इस्लाम!
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के. विक्रम राव

मुस्लिम लीगी प्रधानमंत्री शहनवाज शरीफ वाली सरकार ने अफगान और पाक तालिबानियों के संगठनों पर आतंक फैलाकर उन्हें खत्म करने का आरोप लगाया है। यह शांति पर आक्रमण है। शांति का मतलब इस्लाम! हालांकि दोनों पड़ोसी निखालिस दारुल इस्लाम हैं। इस्लामी जम्हूरियत (गणराज्य) भी। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज शरीफ) की सरकार के वजीरे दिफा (रक्षा मंत्री) मियां ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने कल (16 जुलाई 2023) तालिबान-शासित अफगानिस्तान की भर्त्सना की कि वह दहशतगर्दी का मरकज (केंद्र) बन गया है। अब उनका भला पड़ोसी नहीं है। ख्वाजा साहब ने चेतावनी दी कि पाकिस्तानी वायुसेना तालिबानी आतंकी पनाहगारों को घुसकर मारेगी क्योंकि उन पर अफगान सरकार का नियंत्रण अब नहीं रहा। पाकिस्तान के 'शांति अध्ययन केंद्रÓ के एक सर्वे के मुताबिक गत वर्ष 262 तालिबानी हमले पाकिस्तान पर हुए हैं। इनमें तहरीक-ए-तालिबाने पाकिस्तान (टीटीपी) भी शामिल है। वह काबुल शासन से मदद पाता है। पाकिस्तानी रक्षा मंत्री का दावा है कि पाकिस्तानी सरजमीं से ही टीटीपी हमला करता है। गत अप्रैल में पाकिस्तानी फौज ने पूर्वी अफगानिस्तान के तालिबानी सैन्य ठिकानों पर बमबारी की थी। इसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे। तालिबान को सचेत करते इस पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने ही कहा,'हम नहीं चाहते कि इन अफगान आतंकी का नाश करने के लिए हम कोई बड़ा कदम उठाएं जिससे काबुल के शासन को हानि हो।Ó उनका बयान वाशिंगटन से वाइस ऑफ अमेरिका द्वारा प्रसारित किया गया था। ख्वाजा आसिफ ने पूर्ववर्ती इमरान खान की सरकार और पूर्व जनरल उमर जावेद बाजवा के फौजी गुप्तचरों की आलोचना की कि उन लोगों ने हजारों अफगान तालिबानियों को पाकिस्तान में बसा दिया है। इस पर इमरान खान ने सफाई दी थी कि उस वक्त उनकी सरकार के सामने दो ही विकल्प थे -'या तो इन तालिबानियों को गोली से उड़ा दो। अथवा उनके पुनर्वास की व्यवस्था करो।Óपाकिस्तानी सैनिक स्रोत के अनुसार ये अफगन तालिबानी अमेरिका द्वारा छोड़े गए अस्त्र-शस्त्र का इस्तेमाल कर रहे हैं। मगर ख्वाजा आसिफ ने कहा कि वे इन पाकिस्तानी तालिबान को मारने हेतु अमेरिका से मदद नहीं मांगना चाहते। प्रधानमंत्री शहनवाज शरीफ का दृढ़ विश्वास है कि उनकी सरकार ही इन इस्लामी दहशतगर्दों को ठिकाने लगा सकती है। मगर इन वजीरे आजम ने यह नहीं बताया कि विदेशी कर्ज से डूब रहे पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के कारण उनकी सेना प्रतिरक्षा में कितना कारगर होगी? इन पाकिस्तानी तालिबान ने इमरान खान की पार्टी द्वारा कुछ महीनों पूर्व शरीफ सरकार के खिलाफ विरोध और तोड़फोड़ का समर्थन किया था। तब लाहौर के सेना मुख्यालय को जला दिया गया था। पेशावर छावनी की प्रदर्शनकारियों ने नाकेबंदी कर दी गई थी।

संवाददाता हमजा आमिर की रपट के अनुसार पाक तहरीक-ए-तालिबान के कमांडर मियां सरबकार मोहमान्द ने तब इमरान खान की सलाह से ही इन सैन्य केन्द्रों को जला डाला था। सरबकार मोहमान्द जो अपने को बलूचिस्तान के पश्चिमोत्तर प्रांत जोआबा का गवर्नर बताते हैं कहा था कि पाकिस्तानी सेना पर बड़ा जोरदार हिंसक हमला जानबूझ कर किया गया था, ताकि 'शरीफ सरकार को सबक सिखाया जा सके।Ó 'अल अरबिया पोस्टÓ की रिपोर्ट के अनुसार, उस पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवादी हमले द्वारा पाकिस्तानी सेना को तालिबान के फरमान को मानने के लिए मजबूर करना था। इस साल काबुल में नए पाकिस्तानी गुट 'इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासानÓ के आत्मघाती हमलों से सैकड़ों लोग मारे गए हैं। उनमें अधिकतर शिया और हजारा मुस्लिम हैं। काबुल में गुरुद्वारों को भी निशाना बनाया गया था।

इस रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि पाकिस्तान को खुद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से सबसे ज्यादा खतरा है। टीटीपी को पाकिस्तान एक गंभीर खतरा भी मानता है। टीटीपी को तालिबान का ही एक अंग माना जाता है। वे हमले को अंजाम देने के बाद अफगानिस्तान जाकर छिप जाते हैं। पाकिस्तान के स्वात जैसे आसपास के कबायली इलाकों में वे सब फिर संगठित हो रहे हैं। तालिबान के सहयोग से पाकिस्तान ने टीटीपी के साथ शांति समझौता किया था, लेकिन वह ज्यादा दिनों टिका नहीं। पाकिस्तान विदेश कार्यालय ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में बार-बार शरीफ शासन ने अफगानिस्तान सरकार से पाक-अफगान सीमा क्षेत्र को सुरक्षित करने का अनुरोध किया था।

आतंकवादी पाकिस्तान में आतंक के लिए अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल कर रहे हैं। अफगानिस्तान में तालिबान शासन आने के बाद पाकिस्तान से उसके रिश्ते में लगातार गिरावट आ रही है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सीमा बलों के बीच प्रमुख चमन-स्पिन बोल्डक सीमा पर फिर झड़पें हुईं। दोनों देशों के बीच दशकों से सीमा विवाद बरकरार है। पिछले माह सीमा पर झड़पों के कारण चमन-क्रांसिंग कई दिनों तक बंद रहा था। चमन-स्पिन बोल्डक दोनों देशों के बीच दूसरा सबसे व्यस्त क्रासिंग है। इस मार्ग के द्वारा ही महत्वपूर्ण सामान अफगानिस्तान में बाहर से भेजा जाता हैं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान का यह खूनी संघर्ष याद दिलाता है सुन्नी इराक और शिया ईरान के उस युद्ध को जो 22 सितंबर 1980 से 20 अगस्त 1988 तक लगातार चला था। तब इराक के सेक्युलर नेता राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने ईरान के सुप्रीम नेता अयातुल्ला रूहैल्ला खुमैनी द्वारा इस्लामी क्रांति के निर्यात को बाधित कर दिया था। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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