क्या अपराध है भारतीयता का जागरण?

नवीन संसद उस महान तमिल शौर्य और धर्माधिष्ठित सत्ता को भी प्रतिबिंबित कर रही है जो अब तक सेकयुलर, वामपंथी बौद्धिक तत्वों की घृणा के कारण दबी रही थी। तमिल भाषा संसार की प्राचीनतम भाषाओं में एक है, उसमें शिलपद्दिकरम, मणिमेखलै जैसे दो हजार वर्ष से भी प्राचीन महान ग्रन्थ हैं। नवीन भारत अभ्युदय का पथ सदैव कंटकाकीर्ण रहा है। आज जब ब्रिटिश दास मानसिकता से संघर्षरत राष्ट्र औपनिवेशिक मानस की जकड़न से मुक्त हो भारतीयों द्वारा भारत के लिए स्वतंत्र देश में बनी नवीन संसद का भव्य उद्घाटन देख रहा है तो यह क्षण 15 अगस्त 1947 के पुण्यदायी क्षण से काम महत्वपूर्ण नहीं है। यह नवीन संसद तमिल सम्राट राज राज चोल के समय प्रयुक्त शिव के नंदी को शिखरस्थ विराजमान किए राज दंड से आलौकित, प्रेरित और स्पंदित है जो स्वतंत्रता के समय चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के परामर्श और सहायता से वायसरॉय माउंट बैटन ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक स्वरूप पं. नेहरू को प्रदान किया था।

यह एक शुद्ध निर्मल भारतीय वैदिक परंपरा का प्रतीक था, इसलिए कांग्रेस और पं. नेहरू को भाया नहीं और इसको प्रयाग स्थित सरकारी संग्रहालय में बंद कर दिया गया। यह दैवी कृपा और नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता थी कि इसकी स्मृति जगी और इसे इसके सही उपयुक्त स्थान पर प्रतिष्ठित करने का निर्णय लिया गया। ब्रिटिश असेंबली को हमने बाद में नवीन भारत की संसद के रूप में संगठित किया जिसमें लोकसभा और राज्य सभा का संचालन हुआ। लेकिन सब कुछ वही था जो ब्रिटिश ने बनाया। संसद का भवन हमारा परन्तु उसके भीतर स्मृतियां सब ब्रिटिश और दासता कीं। वहां सभी प्रारंभिक सदन अध्यक्षों के चित्रों में ब्रिटिश स्पीकरों के चित्र से सदन अध्यक्षों की परंपरा के प्रारम्भ होने का दृश्य हर दिन हमें सदन में प्रवेश करते ही चुभता था। नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने ब्रिटिशकालीन दास मानसिकता के चिह्नों को मिटाना प्रारम्भ किया और स्वदेशी चेतना से उत्स्फूर्त नावीन्य का सृजन पर्व प्रारम्भ किया। नवीन संसद वास्तव में उसी नव चैतन्य का वह प्रतीक है जिसे शिव की शक्ति और महान तमिल पराक्रमी स्मृति सेंगोल राजदंड के रूप में शक्ति दे रही है। यह ब्रिटिश दास मानसिकता के अंत का अद्घोष है। नवीन संसद भारतीय नव जागरण के सूर्योदय का, राष्ट्रीयता की आभायुक्त लोकतंत्र का संयुक्त तीर्थ है जो अपराजेय भारत के शौर्य और आध्यात्मिक आत्मा को प्रतिबिंबित करती है। नवीन संसद उस महान तमिल शौर्य और धर्माधिष्ठित सत्ता को भी प्रतिबिंबित कर रही है, जो अब तक सेकयुलर, वामपंथी बौद्धिक तत्वों की घृणा के कारण दबी रही थी। तमिल भाषा संसार की प्राचीनतम भाषाओं में एक है, उसमें शिलपद्दिकरम, मणिमेखलै जैसे विश्व विख्यात दो हजार वर्ष से भी प्राचीन महान ग्रन्थ हैं। थिरूवल्लुवर जैसे वैश्विक संत और दार्शनिक तमिल जनजीवन के हर पक्ष को प्रभावित करते आ रहे हैं।

(प्रस्तुति : तरुण विजय)

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