गुलाम नवी आजाद ने गलत क्या कहा?

गुलाम नवी आजाद ने गलत क्या कहा?
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लंम्बे समय तक केन्द्रीय मंत्री रहने और गत वर्ष कांग्रेस का साथ छोड़कर डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी बनाने वाले जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नवी आजाद ने गत दिनों कहा- ''हिन्दू धर्म इस्लाम से भी पुराना है। सभी मुसलमान पहले हिन्दू ही थे। हमारे देश में मुसलमान हिन्दू से धर्मांतरण होने के बाद हुये हैं। कश्मीर में सभी मुसलमान कश्मीरी पंडितों से धर्मान्तरित हुये हैं। सभी का जन्म हिन्दू धर्म में ही हुआ है। 600 साल पहले कश्मीर में कोई मुसलमान नहीं था और वहां सभी कश्मीरी पंडित थे।ÓÓ हो सकता है कि इसमें कुछ लोगों को राजनीति दिखती हो कि आजाद भाजपा के सहारे नई राजनीतिक पारी खेलना चाहते हैं। लेकिन बड़ी बात यह कि आखिर इसमें गलत क्या है ? यही बात तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तो बहुत पहले से कहता आ रहा है। संघ का कहना है कि हम सभी चाहे हिन्दू हो या मुसलमान हम सभी एक ही पूर्वजों की संताने हैं। इसलिये हम दोनों के महापुरूष एक ही हैं, इतिहास एक है, विरासत एक है। कुल मिलाकर हममें पूजा-पद्धति, भाषा, रहन-सहन, खान-पान को लेकर चाहे जो विभेद हों, पर अनेकताओं के बावजूद हम इसीलिये एक है कि हमारी संस्कृति एक है। पर संघ जब इस बात को कहना है तो तथाकथित अपने को धर्मनिरपेक्षतावादी कहने वाले कहते हैं, कि संघ और भाजपा मुसलमानों की पहचान मिटाना चाहते हैं। हिन्दू और मुसलमान दोनों के ही परम्पराएं एक होने से जीवन-आदर्श एक ही होने चाहिए। इस संबंध में एक उदाहरण देना समीचीन होगा। एक बार इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णों से यह पूँछा गया- आाप और आपके देश के लोग मुसलमान होकर भी हिन्दू प्रतीकों से जुड़े नाम क्यों रखते हैं, तो डॉ. सुकर्णों का जवाब था कि पूजा पद्धति बदलने से पूर्वज नहीं बदलते। यही कारण है कि इंडोनेशिया में राम लीलाओं का मंचन होता है, वहां कि एयरवेज का नाम गरूण एयरवेज है। इसी तरह से ईरानी मुसलमान की रूस्तम और सोहराब जो मुस्लिम न होकर मूलत: पारसी थे उन्हें अपना राष्ट्रीय नायक मानते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुये कभी भारत के विदेश मंत्री रह चुके मोहम्मद करीम छागला ने कहा था- मैं उपासना पद्धति से मुसलमान और वंश से हिन्दू हूँ। इसका एक अर्थ यह भी हुआ कि राष्ट्र पहले और मजहब बाद में। पर विडम्बना यह कि बहुत से लोग इस्लाम में ही राष्ट्रीयता देखने लगते हैं, उसको एक सम्पूर्ण जीवन-दर्पण मान लेते हैं। तभी तो मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था- ''हिन्दू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र है, और वह कभी भी एक साथ नहीं रह सकते।ÓÓ पर गौर करने की बात यह है कि यदि ऐसा है तो फिर स्वत: मुस्लिम राष्ट्रों और मुस्लिम समुदायों में ही आपस में इतने झगड़े क्यों है। 90 के दशक के ईरान-ईराक के युद्ध को अभी तक कौन भूल सका है। बड़ी बात यह कि सुन्नी-शिया, अहमदिया यजीदी के अर्तविरोध तो जगजाहिर हैं।

स्वामी विवेकानन्द अथर्ववेद की इस बात पर बहुत जोर देते थे- ''एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति।ÓÓ यानी कि सत्य एक है, विद्वान उसकी विभिन्न रूप में व्याख्या करते हैं। इसीलिये हमारी परम्परा में कोई किसी भी पंथ को मानने वाला हो, सार रूप में सभी एक ही है।

देश में इसी मजहबी सर्वोच्चता के नजरिये के चलते ही देश में कामन सिविल कोड को देश में लागू करने का विरोध हो रहा है, जो कई मुस्लिम राष्ट्रो में कमोवेश लागू हो चुका है। ऐसी स्थिति में स्वामी विवेकानन्द की उस बात का भी समर्थन करना पड़ेगा, जिसमें उन्होंने कहा था- 'गर्व से कहो हम हिन्दू हैं।Ó उनके अनुसार ''जो अपने को हिन्दू कहते हैं, उन्होंने विश्व को ऐसा दर्शन दिया जो व्यापक है, वैश्विक है जो सम्पूर्ण बह्माण्ड को आच्छादित कर सकता है।ÓÓ

असलियत में हिन्दुत्व ही वह रसायन है जो सभी देशवासियों को भावात्मक रूप से जोड़ सकता है, और हमारी सोच को एक सामूहिक दिशा में ले जा सकता है, जैसा कि हमारे शास्त्रों में कहा गया है- ''हम सभी मिलकर चलें, सभी एक स्वर में बोलें तथा एक समान मत वाले होकर विचार करें। जैसा प्राचीन समय में देवता करत थे।ÓÓ

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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