वीर बाल दिवस: धर्म, साहस और सर्वोच्च बलिदान की अमर गाथा

भारत का इतिहास केवल राजाओं और युद्धों की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन बलिदानों की गाथा है जिन्होंने इस देश की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को जीवित रखा है। 26 दिसंबर का दिन भारतीय कैलेंडर में एक ऐसी तारीख के रूप में दर्ज हो चुका है, जो हमें याद दिलाता है कि साहस की कोई उम्र नहीं होती।
'वीर बाल दिवस' केवल एक राजकीय आयोजन नहीं है, बल्कि यह 10वें सिख गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों, जोरावर सिंह (9 वर्ष) और फतेह सिंह (7 वर्ष), की अमर शहादत को नमन करने का दिन है। उन्हें यह महान त्याग क्यों करना पड़ा? इसके लिए उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर दृष्टिपात करना आवश्यक है। तभी हम जान पाएंगे कि गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबजादों को बलिदान क्यों देना पड़ा और उन्होंने कैसे भारत माता की अस्मिता बचाने के लिए खुद को कुर्बान किया।
साहिबजादों के बलिदान को समझने के लिए हमें 18वीं शताब्दी के उस दौर को समझना होगा, जब भारत पर मुगल सत्ता का क्रूर शिकंजा कसा हुआ था। उस समय दिल्ली की गद्दी पर मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन था। औरंगजेब की नीतियां धार्मिक कट्टरता और जबरन धर्म परिवर्तन पर आधारित थीं। गुरु गोविंद सिंह जी और उनके खालसा पंथ ने इस अत्याचार के विरुद्ध दीवार बनकर खड़े होने का संकल्प लिया था।
आनंदपुर साहिब के किले की घेराबंदी के बाद, जब गुरु जी का परिवार बिछड़ गया, तो माता गुजरी जी और दोनों छोटे साहिबजादों को उनके पुराने रसोइए गंगू ने लाहौर में आकर सरहिंद के नवाब वजीर खान के हवाले कर दिया। वजीर खान, जो औरंगजेब के अधीन एक सूबेदार था, ने नन्हें साहिबजादों को इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर करने के हर संभव प्रयास किए। उन्हें लालच दिया गया, डराया गया और ठंडी बुर्ज में भूखा-प्यासा रखा गया।
लेकिन गुरु गोविंद सिंह जी के इन "तेरों" ने स्पष्ट कह दिया कि 'हम उस गुरु के पुत्र हैं जिसने धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश दे दिया, हम झुकना नहीं जानते।' अंततः जब नवाब और उसके काजी साहिबजादों के इरादों को नहीं बदल पाए, तो औरंगजेब के क्रूर शासन के आदेशानुसार उन्हें दीवार में जिंदा चुनवाने की सजा सुनाई गई। 26 दिसंबर 1705 को, इन वीर बालकों ने हंसते-हंसते मौत को गले लगा लिया, लेकिन अपने धर्म और स्वाभिमान का सौदा नहीं किया।
भारत में राष्ट्रीय स्तर पर वीर बाल दिवस मनाने की शुरुआत देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 से की। दशकों तक इन वीर बालकों का बलिदान इतिहास की किताबों के कुछ पन्नों तक सीमित रहा। लेकिन 9 जनवरी 2022 को गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि हर साल 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाया जाएगा।
इस दिवस का उद्देश्य केवल शोक मनाना नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह बताना है कि भारत की नींव उन बच्चों के बलिदान पर टिकी है जिन्होंने मुगलों के क्रूर साम्राज्य की ताकत के आगे झुकने से इनकार किया था। वीर बाल दिवस का व्यापक उद्देश्य राष्ट्रीय चेतना का जागरण है। इसका मुख्य उद्देश्य देश के बच्चों और युवाओं को साहिबजादों के साहस से अवगत कराना है। यह उन्हें सिखाता है कि सत्य के मार्ग पर चलते हुए डरना नहीं चाहिए। यही वजह है कि वर्तमान भारत सरकार वीर बाल दिवस को सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक भी मानती है।
