नकली नोटों का कारोबार देशद्रोह और आतंकवाद

ब्रजेश कुमार तिवारी
सरकार व रिजर्व बैंक द्वारा नकली नोटों को रोकने के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। जैसे-जैसे सुरक्षा बढ़ाने के लिए नोटों में नए फीचर्स शामिल किए जाते हैं, वैसे-वैसे उनकी नकल करने की तकनीक भी विकसित होती जाती है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने पाया है कि इन उच्च गुणवत्ता वाले नकली नोटों को भारत भेजने के लिए नेपाल और पाकिस्तान के मार्ग का उपयोग किया जा रहा है। ये नोट कथित तौर पर पाकिस्तान में छापे जाते हैं और उनमें भारतीय मुद्रा की अधिकांश विशेषताएं अनुकूलित की जाती हैं, जिससे आम आदमी के लिए नकली-असली नोटों के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है।
बाजार में नकली नकदी आने से मौजूदा धन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है, जो बाजार में मुद्रास्फीति को बढ़ाती है। इससे उत्पादों और सेवाओं की भारी मांग होने लगती है। इसके अतिरिक्त ऐसे नकली नोटों का उपयोग आतंकवादियों द्वारा भारत के खिलाफ किया जा रहा है। जाली नोट किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए घातक हैं। इस पर पार पाना भारतीय रिजर्व बैंक व सरकार के लिए वाकई बड़ी चुनौती है। नकली नोटों की छपाई विश्वभर में एक ऐसा आपराधिक मामला है, जिसके असल मास्टरमाइंड का आज तक पता ही नहीं चला है। यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी बड़ी चुनौती है। चूंकि यह काला धंधा विश्व स्तर पर होता है, इसलिए तमाम देश मिलकर अगर इसका समाधान तलाशें, तो सफलता मिल सकती है। देशों के बीच परस्पर दोस्ती और एक-दूसरे की अर्थव्यवस्था के प्रति सम्मान का भाव जरूरी है। यह भारत का दुर्भाग्य है कि उसके पड़ोस में दुश्मनी का भाव रखने वाले सत्ताधीश हैं और उनकी शरण में ऐसे अपराधी बहुत हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाकर दोहरा लाभ उठाना चाहते हैं। आर्थिक विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि नकली नोटों का कारोबार आतंकवाद या देशद्रोह से कम नहीं है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ नोट नकली हो सकते हैं, बाजार में नकली सिक्कों की शिकायत भी बढ़ती जा रही है। चिंता इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि नकली सिक्कों की पहचान और भी मुश्किल है। गौर करने की बात है कि बीते साल पांच रुपये वाले नकली सिक्कों के 58 ट्रक जम्मू सीमा पर पकड़े गए थे। कौन, कहां, कैसे असली से दिखने वाले नकली सिक्कों की ढलाई में लगा है? सुरक्षा एजेंसियों को युद्ध स्तर पर ऐसे फर्जीवाड़े पर लगाम कसनी चाहिए।
अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बनी इस खतरनाक समस्या का इलाज मुश्किल तो है, पर नामुमकिन नहीं है। नकली नोटों के साथ ही करेंसी लॉजिस्टिक्स (नकदी का रखरखाव) के प्रबंधन की समस्याओं को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रस्तावित डिजिटल रुपए का खुदरा इस्तेमाल इस दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। अनेक देशों में सरकारें मुद्रा बहुत कम छापती हैं और तमाम बड़े लेन-देन डिजिटल ही होते हैं। डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देकर बड़े नोटों का चलन अगर बंद कर दिया जाए, तो जाली नोटों की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है। निकट भविष्य में डिजिटल लेन-देन को ही अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करना है और यही भारतीय बैंकिंग व भुगतान प्रणाली के लिए आगे का सही रास्ता है, लेकिन इस रास्ते की बाधाओं को दूर करना होगा। डेलॉयट रिसर्च एजेंसी के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में अभी 110 करोड़ लोग मोबाइल फोन का उपयोग कर रहे हैं, जिसमें 72 करोड़ स्मार्टफोन का उपयोग कर रहे हैं, परंतु ऑनलाइन धोखाधड़ी के चलते अभी सिर्फ चार करोड़ लोग ही मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल करते हैं। सरकारें जिस दिन मोबाइल बैंकिंग को चाक-चौबंद कर देंगी, उसी दिन से जाली नोट इतिहास होने लगेंगे। भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, बैंकिंग प्रणाली द्वारा पहचाने गए 500 रुपए के नकली नोटों की संख्या पिछले वर्ष की तुलना मेें 14.6 प्रतिशत बढ़कर 91,110 नग (पीस) हो गई है। सभी प्रकार के नकली नोटों की संख्या 2.25 लाख नग है। आरबीआई ने इस दौरान 100 रुपए के 78,699 नकली नोट और 200 रुपए के 27,258 नकली नोटों की सूचना दी है। ऐसा क्यों हो रहा है? हम भूले नहीं हैं। 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया गया था। इसके बाद पूरे देश में 500 और 1,000 रुपए के नोट बंद हो गए थे। नोटबंदी के फैसले से काला धन पर रोक, देश को कैशलेस बनाने, नकली नोट पे चोट, चरमपंथ व आतंकवाद पर अंकुश लगने तक की उम्मीद थी। उसी समय छपे नए नोटों के बारे में रिजर्व बैंक ने दावा किया था कि इनमें सुरक्षा के जो इंतजाम या फीचर रखे गए हैं, उनकी नकल काफी मुश्किल है, मगर अब स्वयं रिजर्व बैंक के आंकड़े बता रहे हैं कि वह दावा धरा का धरा रह गया। (लेखक शिक्षाविद् हैं)
