आतंक को प्रश्रय देने का अर्थ आतंक का शिकार होना

नीरज कुमार दुबे
जिस तरह रोस्तोव में येवगेनी प्रिगोझिन के साथ सेल्फी लेने और उनसे हाथ मिलाने के लिए रूसियों में होड़ लगी हुई थी उससे यह भी प्रदर्शित होता है कि पुतिन को आंख दिखाने और पुतिन शासन को चुनौती देने की हिम्मत दिखाने वाले को जनता सराह रही है। यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में रूस की ओर से मोर्चा संभालने वाली निजी सैन्य कंपनी वैगनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोझिन ने बगावत का फैसला वापस लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को बड़ी राहत प्रदान की है। हालांकि वैगनर ग्रुप ने अपने आका पुतिन को जिस तरह आंखें दिखाईं उससे दुनियाभर को यह संदेश गया है कि आतंक को पालना और निजी सैन्य समूहों को बढ़ावा देना कितना खतरनाक हो सकता है। भले कोई देश या राष्ट्राध्यक्ष दूसरों के खिलाफ उपयोग करने के लिए आतंक को पाले लेकिन एक दिन वही आतंक या निजी सैन्य समूह उसके लिए भस्मासुर साबित होता है। इसके अलावा, वैगनर ग्रुप की बगावत के बाद जिस तरह बेलारूस के राष्ट्रपति ने बीच बचाव करवा कर रूस को कुछ मांगों को मानने के लिए मनाया, वह यह भी दर्शाता है कि अपने लगभग ढाई दशक के कार्यकाल में पुतिन पहली बार कमजोर पड़े हैं।
इसके अलावा, जिस तरह रोस्तोव में येवगेनी प्रिगोझिन के साथ सेल्फी लेने और उनसे हाथ मिलाने के लिए रूसियों में होड़ लगी हुई थी उससे यह भी प्रदर्शित होता है कि पुतिन को आंख दिखाने और पुतिन शासन को चुनौती देने की हिम्मत दिखाने वाले को जनता सराह रही है। जनता ने जिस तरह वैगनर ग्रुप के मुखिया को सराहा वह यह भी संकेत देता है कि पुतिन के खिलाफ रूसियों के मन में बगावत की आग भभक रही है। दरअसल रूसी जनता पहले दिन से नहीं चाहती थी कि यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ा जाए। पुतिन ने अपनी सनक में आकर जो युद्ध छेड़ा है उसकी बड़ी कीमत रूसी जनता भी चुका रही है और इस युद्ध के लंबे खिंचते चले जाने से वह आजिज भी आ चुकी है। यही नहीं, रूसी सेना का एक बड़ा धड़ा भी बेहद नाराज बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि यदि राष्ट्रपति पुतिन ने वैगनर ग्रुप की बगावत को लेकर अपने रक्षा मंत्री या अन्य वरिष्ठ अधिकारियों पर कोई सख्त कार्रवाई की तो बगावत का झंडा बुलंद किया जा सकता है। जहां तक वैगनर ग्रुप जैसे निजी सैन्य समूहों को बढ़ावा देने की बात है तो इतिहास गवाह है कि आतंक को प्रश्रय देने वाले खुद उसके सबसे बड़े शिकार बने हैं। जरा याद कीजिये कैसे अमेरिका ने ही एक समय ओसामा बिन लादेन को आगे बढ़ाया और एक समय ऐसा आया कि इस आतंक की चोट 9/11 के रूप में अमेरिका को ही झेलनी पड़ी थी। एक सशक्त उदाहरण अपने पड़ोस पाकिस्तान में भी है। पाकिस्तान ने तमाम आतंकी संगठनों को भारत में आतंक फैलाने के लिए तैयार किया लेकिन आज तहरीक-ए-तालिबान और उसे जैसे तमाम आतंकी संगठन खुद पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजा रहे हैं। पाकिस्तान ने तालिबान को भी प्रश्रय देकर उसे अफगानिस्तान की सत्ता तक पहुंचाने में मदद की थी लेकिन आज वही तालिबान उसके सिर पर चढ़कर बोल रहा है। वैगनर ग्रुप भी एक तरह से पुतिन की ओर से निर्मित किया गया निजी सैन्य समूह है जिसने अब धमकी देकर अपने आका के माथे पर पसीना ला दिया। यही नहीं, चीन अक्सर संयुक्त राष्ट्र में किसी पाकिस्तानी आतंकवादी को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने के प्रयासों में बाधा डालता है तो उसे लगता है कि उसने मुंबई में हुए 26/11 के हमलावरों को बचाकर भारत को झटका दिया है। लेकिन चीन को पाकिस्तान में कार्यरत चीनियों पर बढ़ते आतंकी हमलों को देखकर यह समझ आ जाना चाहिए कि आतंकवाद अपने जन्मदाता या प्रश्रयदाता को भी नहीं बख्शता है। वैगनर ग्रुप ने भले 2014 में पुतिन की ओर से क्रीमिया पर और 2023 में यूक्रेन के बखमुत पर कब्जा किया लेकिन अब वह सिर्फ भाड़े के टट्टू के रूप में काम करने को राजी नहीं है। येवगेनी प्रिगोझिन अब अपने लिए बड़ी भूमिका चाहते हैं। भले फिलहाल वह बेलारूस के मनाने पर मान गए हों लेकिन उन्होंने जो तेवर दिखाए हैं वह आने वाले समय में भी पुतिन के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकते हैं। यदि येवगेनी प्रिगोझिन को पश्चिमी या नाटो देशों का साथ मिल गया तो यह पुतिन के लिए बड़ी मुश्किलों का सबब बन सकता है क्योंकि वैगनर ग्रुप रूस की सैन्य क्षमताओं के बारे में बहुत कुछ जानकारी रखता है। इस प्रकरण ने यह भी दर्शाया है कि रूस की सैन्य शक्ति को जितना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता था, हकीकत वैसी नहीं है। यदि खुद को महाशक्ति कहलाने वाला देश युद्ध के समय लड़ने के लिए लड़ाके निजी कंपनी से आउटसोर्स करे तो सवाल उठेगा ही कि परेड के दौरान जिस सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया जाता था कहीं वह फैन्सी ड्रेस शो तो नहीं था? (लेखक स्तंभकार हैं)
