जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती

उटना स्थित गांधी मैदान में गुरुवार को नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर एक साथ कई रिकॉर्ड बनाए। नीतीश कुमार पिछले कई चुनावों की तरह इस बार भी बिहार की जनता का भरोसा जीतने में कामयाब रहे। इस बार जनता ने प्रचंड जनादेश देकर एक तरह से विपक्ष को संदेश दिया है कि भाजपा की 89 और जदयू की 85 सीटों वाले गठबंधन के किसी भी फैसले को राजनीतिक तौर पर चुनौती देना विपक्षी दलों के लिए आसान नहीं होगा।
243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में इसी प्रचंड बहुमत के बावजूद नीतीश कुमार के लिए कई मुश्किलें छिपी हो सकती हैं। बिहार के मतदाताओं ने जिन वादों के आधार पर नीतीश पर भरोसा जताया है, जनता की उम्मीदें उन वादों को पूरा करने पर होंगी। खासकर नौकरी, रोजगार, उद्योग, पेंशन, मुफ्त बिजली जैसे कई वादे हैं, जिन्हें पूरा करना और बनाए रखना बिहार जैसे आर्थिक रूप से कमजोर राज्य के लिए आसान नहीं होगा।
कहा जाता है कि नीतीश के सामने एक बड़ी चुनौती उनकी सेहत और बढ़ती उम्र को लेकर हो सकती है। नीतीश कुमार अब 74 साल के हो गए हैं और मीडिया से न के बराबर बात करते हैं। हिन्दी भाषी राज्यों में बिहार ही एकमात्र राज्य है, जहां भाजपा अब तक अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई है। इस बार भी सबसे बड़ी पार्टी होकर भाजपा, नीतीश कुमार की सहयोगी की भूमिका में है। यह स्थिति भविष्य में राजनीतिक रूप से उनके सामने चुनौती खड़ी कर सकती है।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजग ने जो बड़े वादे किए हैं, उनमें शामिल हैं- गरीबों को मुफ्त राशन, 125 यूनिट मुफ्त बिजली, पांच लाख तक के मुफ्त इलाज की सुविधा, 50 लाख नए पक्के मकान और सामाजिक सुरक्षा पेंशन। भारी दबाव के चलते संभव है कि महाराष्ट्र की तर्ज पर बिहार में नीतीश सरकार अपनी योजनाओं में बदलाव कर दे। 125 यूनिट मुफ्त बिजली जैसी योजना चला पाना आसान नहीं होगा। बिहार की वित्तीय स्थिति को देखते हुए वहां राजस्व जुटाने का कोई नया जरिया भी नहीं है। जनता की उम्मीदें नीतीश कुमार से ज्यादा भाजपा से होंगी।
जanta जानती थी कि यह नीतीश का अंतिम चुनाव है, इसलिए उन्हें सम्मान और विदाई में वोट दिया गया है। नीतीश कुमार ने जब पहली बार पूरे कार्यकाल के लिए बिहार की सत्ता संभाली थी, उस समय केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संप्रग की सरकार चल रही थी। बिहार में साल 2006 में सायकल योजना, 2006 के अधिनियम के तहत पंचायत में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण और 2007 में जीविका योजना शुरू हुई। इन तमाम योजनाओं ने नीतीश को महिलाओं के बीच लोकप्रिय बनाया। इसके दम पर नीतीश की पार्टी जदयू ने साल 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल की।
लेकिन ये योजनाएं अब पुरानी हो चुकी हैं। भाजपा और जदयू ने जनता से अब कई नए वादे किए हैं, जिनका बिहार की जनता हर गुजरते दिन के साथ इंतजार करेगी। नीतीश कुमार के दौर में बिहार में जो एक और बदलाव देखने को मिला, वह लॉ एंड ऑर्डर को लेकर था। माना जाता है कि इस दौरान नीतीश कुमार ने राजनीतिक रूप से भी रणनीति बनाई और भाजपा को खुद से आगे नहीं निकलने दिया।
बिहार में भाजपा-जदयू गठबंधन में कई बार भाजपा बड़ी पार्टी होने के बावजूद नीतीश कुमार की सहयोगी रही। यह तय है कि इस सरकार में संतुलन बनाने और मजबूती प्रदान करने में भाजपा 'ड्राइविंग फोर्स' होगी। इसी वजह से चिराग पासवान पहली बार विधानसभा में अपनी पार्टी को 19 सीटों तक पहुंचा पाए। जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को भी भाजपा के सहयोग से फायदा हुआ है।
