रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर की गई याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय की फटकार: क्या रेड कार्पेट स्वागत किया जाए?

Supreme Court
भारत में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसने कुछ वर्ष पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर हंगामा मचाया था और पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के भारत में आने का विरोध किया था और वह भी यह कहते हुए कि यह मुस्लिमों के प्रति अन्याय है आदि आदि। उन्हें इन देशों में प्रताड़ित होते अल्पसंख्यक दिखाई ही नहीं दिए थे, जबकि तमाम घटनाएं आज भी सुर्खियां बनती रहती हैं। मुस्लिम देशों के अल्पसंख्यकों के प्रति निर्मम भावना रखे हुए वह वर्ग म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिमों के प्रति दया भाव रखे हुए है।
भारत में रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर तमाम याचिकाएं लगातार सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जा रही हैं। ये समुदाय भारत के पड़ोसी देश म्यांमार से आया हुआ है। उन्हें उनके ही देश में रखने के लिए वहाँ के लोग तैयार नहीं हैं। इस समुदाय के लोगों की कट्टरता की कई कहानियाँ मीडिया में हैं, और वे वहाँ से निकलकर बांग्लादेश और अन्य देशों में जा रहे हैं। भारत में भी वे प्रवेश ही नहीं कर चुके हैं, बल्कि उन्हें एक षड्यन्त्र के चलते भारत की अवैध रूप से नागरिकता तक दिलवाई जा चुकी है। कई ऐसे भी उदाहरण मिले हैं, जिनमें उन्हें मुस्लिम देशों में ही विरोध का सामना करना पड़ा था। जैसे कि वर्ष 2024 में इंडोनेशिया के मुस्लिमों ने उनकी नाव को अपने यहाँ उतरने नहीं दिया था। मछुआरा समुदाय के प्रमुख मोहम्मद जबल ने यह तक कहा था कि हमारे समुदाय ने उन्हें इसलिए यहाँ पर शरण नहीं दी क्योंकि हम नहीं चाहते, कि जो अन्य स्थानों पर हुआ, वह यहाँ भी हो! अर्थात उनकी छवि मुस्लिम देशों में भी खराब है और लोग अवैध रूप से उन्हें अपने देशों में प्रवेश करने नहीं देना चाहते हैं। यह भी बात सच है कि कोई भी देश अपने यहाँ अवैध घुसपैठिया नहीं चाहता है।
अब भारत सरकार भी अवैध घुसपैठियों को निकाल रही है और उन्हें उनके मुल्कों में वापस भेज रही है। तो ऐसे में कथित मानवाधिकार वाला गिरोह जाग गया और उसके द्वारा रोहिंग्या मुस्लिमों को उनके मुल्क भेजे जाने का विरोध करते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें यह अनुरोध किया गया है कि चूंकि उनके मुल्क में उनके साथ हिंसा होती है तो उन्हें भारत में शरण दी जाए।
इसे लेकर मई 2025 में ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किया जा चुका है कि रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस जाना ही होगा। वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोसाल्विस और प्रशांत भूषण द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की गई थी। इन दोनों ने ही यह तर्क दिया था कि रोहिंग्या समुदाय को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने शरणार्थी के रूप में मान्यता दी है, तो उन्हें भारत में रहने का और जीवन जीने का अधिकार है। मगर इस सुनवाई में सलिसिटर जनरल ने कहा था कि भारत यूएन रेफ्यूजी कन्वेन्शन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, इसलिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग द्वारा दी गई इस मान्यता भारत पर बाध्यकारी नहीं है।
कथित शरणार्थियों के लिए इतने वरिष्ठ अधिवक्ता तक पहुंच आसान कैसे है?
यह अत्यंत अचंभे की बात है कि जहां भारत में हजारों मामले सर्वोच्च न्यायालय से लेकर निचली अदालतों में लंबित हैं और भारत की न्याय व्यवस्था लगातार इस पर बात कर रही है कि कैसे इतने लंबित मुकदमों को शीघ्र सुलझाया जाए, ऐसे में शरणार्थियों को कैसे इतने वरिष्ठ अधिवक्ता सुलभ हो जाते हैं और सुलभ ही नहीं होते हैं, अपितु उनकी याचिकाओं पर सुनवाई भी सर्वोच्च न्यायालय में होने लगती है? आम लोग यह प्रश्न सही उठाते हैं कि भारत में आम लोगों की तुलना में बाहर से आए रोहिंग्या मुस्लिमों और आतंकवादियों को न्याय सरलता से मिल जाता है। आतंकियों के लिए रात को भी सुनवाई होने लगती है और साथ ही आतंकियों और घुसपैठियों के मानवाधिकारों पर तमाम बहसें होने लगती हैं, परंतु भारत के आम नागरिकों के मानवाधिकारों पर यह वर्ग बात नहीं करता है।
जो भारत में अवैध रूप से प्रवेश करते हैं, उन्हें रहने के लिए निवास आदि तो सहजता से प्राप्त होता है, उन्हें आवश्यक दस्तावेज भी मिल जाते हैं, परंतु उन्हें इतने महंगे और वरिष्ठ वकील कैसे मिल जाते हैं यह एक यक्ष प्रश्न है, जिसका उत्तर अभी तक नहीं मिला है। और अवैध घुसपैठिये कैसे न्यायालय में बहस का मुद्दा बन सकते हैं यह और भी अबूझ प्रश्न है। इस विडंबना पर क्षोभ ही व्यक्त किया जा सकता है। और अभी भी तमाम याचिकाएं रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में सुनी जा रही हैं।
एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय ने की कड़ी टिप्पणी
रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर एक मामले में चल रही सुनवाई को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने यह प्रश्न याचिकाकर्ताओं से किया कि क्या भारत सरकार ने कभी भी रोहिंग्या मुस्लिमों को आधिकारिक रूप से शरणार्थी का दर्जा दिया? और सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट संकेत दिए कि यदि किसी भी व्यक्ति को उस देश के शरणार्थी के रूप में वैधानिक दर्जा नहीं प्राप्त है और वह अवैध रूप से सीमा पार करके देश में प्रविष्ट हुआ हो तो उसे यहाँ पर रुकने का कोई भी अधिकार नहीं है।
दरअसल मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ उस प्रत्यक्ष बंदीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह दावा किया गया था कि मई के महीने में दिल्ली पुलिस ने कुछ रोहिंग्या लोगों को उठाया था, मगर उनका कोई पता अभी तक नहीं चला है। और उनका पता लगाया जाए और उनका निर्वासन कानूनी प्रक्रिया के अनुसार ही हो।
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने प्रश्न किया था कि क्या इन्हें भारत सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से शरणार्थी का दर्जा प्राप्त है? ये लोग अवैध रूप से देश में घुस आते हैं तो उन्हें रहने देने की बाध्यता क्या है? फिर उन्होनें फटकार लगाते हुए कहा कि “क्या ऐसे घुसपैठियों के लिए रेड कार्पेट स्वागत किया जाना चाहिए?”
सर्वोच्च न्यायालय की ओर से यह स्पष्ट किया गया कि जो इस देश का नागरिक नहीं है, और जिसे इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है तो उसे वापस भेजने में आखिर नुकसान ही क्या है। उन्होनें यह भी कहा कि पहले कोई व्यक्ति गैरकानूनी तरीके से देश में घुस आए और यह दावा करे कि उसे यहाँ पर भोजन, आवास और बच्चों को शिक्षा जैसे अधिकार मिलें, तो क्या कानून को इस सीमा तक खींचना उचित है? और इसके साथ ही उन्होनें यह भी कहा कि देश में पहले से ही भारी संख्या में गरीब लोग हैं और जिनकी सहायता पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
भारत के नागरिकों के संसाधनों पर बाहर के अवैध घुसपैठियों का कोई अधिकार नहीं है
किसी भी देश के संसाधन उसके नागरिकों के लिए ही होते हैं और उनपर अवैध रूप से प्रवेश करने वाले लोगों का अधिकार नहीं होता है। अवैध रूप से प्रवेश करने वाले लोग स्थानीय परंपराओं से अपरिचित होते हैं, वे संसाधनों के प्रति, संसाधनों के प्रति मूल्यों के प्रति उस सीमा तक जुड़े हुए नहीं होते हैं, जितना स्थानीय लोग जुड़े होते हैं, वे संसाधनों का आदर भी करने में असमर्थ होते हैं। आज यूरोप के तमाम देश अवैध शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहे हैं और इसके साथ ही वे सांस्कृतिक प्रदूषण का सामना कर रहे हैं। वे ही इस बात को लगातार उठा रहे हैं कि बाहर से आने वाले अवैध शरणार्थी उनकी स्थानीय मान्यताओं का आदर नहीं करते हैं और उनके देश के संसाधन घुसपैठियों पर लुटाए जा रहे हैं। और वहाँ पर भारी संख्या में लोग विरोध दर्ज करा रहे हैं। भारत में भी आम लोगों में यह शिकायत आम है कि देश के संसाधनों पर देश के ही नागरिकों का अधिकार होना चाहिए और जिन न्यायालयों में भारत के नागरिकों पर सुनवाई होनी चाहिए, वहाँ पर रोहिंग्या लोगों को अधिकार और मिलें, उस पर तमाम याचिकाएं दायर की जा रही हैं।
