मूल मणिपुरी संस्कृति को बचाने का संघर्ष

मई के महीने से ही मणिपुर हिंसा की चपेट में है। अभी बुधवार को भी मैतेई समाज के दो घरों को दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया। गनीमत ये रही कि आग में झोंके गए घर के निवासी हिंसा के डर से पलायन कर चुके थे। इधर सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के डीजीपी को 7 अगस्त की सुनवाई में हाजिर होने का निर्देश दिया है, मणिपुर में अब तक 167 लोगों की इस हिंसा में मौत हो चुकी है। 50 हजार से ज्यादा लोग पलायन कर चुके है जिनमें से ज्यादातर मैतेई समुदाय के है । इस हिंसा पर 6 हजार से ज्यादा एफआईआर दर्ज हो चुकी है जिसकी जांच अब सीबीआई करेगी। इस हिंसा की लपटों की धधक दिल्ली के राजनीतिक गलियारों तक भी खूब देखने को मिल रहा है। राजनीतिक शोर के बीच विपक्ष इस हिंसा को धर्म का दंगा करार देने की भरसक कोशिश कर रहा है। हिंसा के हत्थे चढ़े मणिपुर की जमीनी स्थिति को समझने के लिए स्वदेश ने दिल्ली में विस्थापित हो चुकी मणिपुर निवासी और सोशल एक्टिविस्ट खूलना लाईमायूम से बातचीत की जो जुलाई के अंतिम सप्ताह में ही अपने मणिपुर दौरे से लौट कर आई हैं। उनका कहना है कि लोग इस हिंसा को धर्म के चश्मे से देख रहे हैं लेकिन ये लड़ाई अस्तित्व के संरक्षण की है। आज के समय में मणिपुर की जमीनी हकीकत, राजनीतिक शोर-गुल से काफी अलग है। लाईमायूम का कहना है कि मैतेई समाज का मणिपुर में हजारों साल पुराना इतिहास है। मणिपुर में मैतेई समुदाय वहाँ के मूल निवासी माने जाते है, इसीलिए उन्हें मणिपुरी भी कहा जाता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक मैतेई समुदाय की संख्या लगभग 65 फीसदी है। नागा और कुकी करीब 35 से 40 फीसदी थी। लेकिन 35 से 40 प्रतिशत आबादी वाले मणिपुर के लगभग 90 फीसदी जमीन पर कब्जा रखते है । बर्मा(म्यांमार) से आए कुकी पहाड़ों में रहते है। पहाड़ों की जमीन को मैतेई को खरीदने का अधिकार नहीं हैं लेकिन कानून कुछ ऐसा है कि कुकी पूरे मणिपुर में कहीं भी जमीन खरीद सकते हैं। मैतेई जहां मणिपुर में अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ-साथ अपनी जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं वही कुकी मणिपुर में अपनी पहचान बनाकर अपने आप को मणिपुर का मूल निवासी बनाने की कोशिश में है। बात सिर्फ इतनी भी नहीं है मणिपुर के पहाड़ों में दुनिया के सबसे उन्नत किस्म की अफीम की खेती होती है। जिस पर पूरी तरह से कब्जा कुकी समुदाय का है । कुकी समुदाय का अफीम के इस धंधे में विदेशों तक से गहरा संबंध है। म्यांमार से लेकर मलेशिया , मालदीव हर जगह कुकी अपने ड्रग्स और अफीम के कारोबार के साथ फैले हुए है। खूलना लाईमायूम ने बताया कि मणिपुर की अफीम की डिमांड पूरी दुनिया में है ऐसे में कुकी पूरे मणिपुर पर कब्जा कर इसे ड्रग्स के धंधे का गढ़ बनाना चाहते हैं । जो पुराने समय के रहने वाले कुकी है उनसे कहीं ज्यादा उग्र अभी 80-90 के दशक में म्यांमार से करीब डेढ़ लाख भगाए गए कुकी मणिपुर में आकर रह रहे हैं। वही हिंसा के मुख्य कारण है। मणिपुर की ये हिंसा विदेशी ताकतों और ड्रग कारोबारियों के इशारे पर हो रहा है लेकिन अब मैतेई समुदाय भी जाग गया है । वो अपनी सांस्कृतिक पहचान बचाने के लिए ये लड़ाई लड़ रहे हैं। अब मैतेई समाज भी दंगाइयों को सबक सिखा रहा है अगर कोई भी उनके घर को जलाने की कोशिश करता है तो वो उसका मुंहतोड़ जवाब देते हैं। खूलना लाईमायूम ने सरकार से मैतेई समाज और उनकी संस्कृति को संरक्षित करने और बचाने की अपील की है।
मणिपुर के इतिहास को याद करते हुए खूलना लाईमायूम थोड़ी भावुक हो गईं और कहा कि ईसवी युग के प्रारम्भ होने से पहले से ही मणिपुर का लम्बा और शानदार इतिहास रहा है। यहां के राजवंशों का लिखित इतिहास सन 33 ई. में पाखंगबा इस भूमि के प्रथम शासक के रूप में जाने जाते हैँ । 33-154 ई तक उनका शासनकाल रहा । मणिपुर की स्वतंत्रता और संप्रभुता 19वीं सदी के आरम्भ तक बनी रही । उसके बाद 1819 से 1825 तक पलायन कर रहे बर्मी लोगों ने यहां पर कब्जा करना शुरू किया।
24 अप्रैल, 1891 को अंग्रेजों और मणिपुरी लोगों के बीच युद्ध शुरू हुआ जिसमें मणिपुर के वीर सेनानी पाउना ब्रजवासी अंग्रेजों से अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इस प्रकार 1891 में मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया और 1947 में बाकी देश के हिस्सों के साथ- साथ स्वतंत्र हुआ। चंद्रचूर सिंह इसके प्रथम शासक बन कर आए। मैतेई सनातनी है और कृष्ण उपासक हैं। मैतेई अपने हक की लड़ाई के लिए कोर्ट गए और जुलूस निकाले। उनका कहना है कि माताई मणिपुर का मूल निवासी है और उसे ट्राइब का दर्जा दिया जाये। लेकिन मैदानी क्षेत्र में रहने वाले मैतेई समुदाय को इंसाफ मिलने के बजाय हिंसा का सामना करना पड़ा और पलायन करना पड़ा। लाईमायूम का कहना था कि ऐसा नहीं सारे ईसाई इस हिंसा में शामिल है उन्होंने कहा कि ईसाई भी दो प्रकार के है मणिपुर में। कुछ ईसाई राष्ट्रवादी भी है। लेकिन मणिपुर में अभी अधिकांश कट्टरवादी है जो ईसाई धर्म को मानते हैं । खूलना के अनुसार कभी चंडीगढ़ जाइए और चंडीगढ़ विश्व विद्यालय के अर्नस मसीह से मिलिए वो बताएंगे कि कैसे माहौल खराब करने के लिए ईसाइयों ने भी चर्च जलाए है। चर्च जलाने में ईसाइयों का भी हाथ रहा है । गोवहाटी विधानसभा परिषद के स्पीकर, नोनल मोमिन जो कि गाड़ो जाती के हैं और विधान परिषद के स्पीकर हैं उन्होंने बताया कि कनवर्जन कराने वाला वर्ग भी इस हिंसा में आग में घी का काम कर रहे हैं । ऐसे में मैतेई के लिए लड़ाई अब अस्तित्व की है और संरक्षण देना सरकार का काम है। ( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)
