ईश्वरोपासना व साधना हेतु उपयुक्त श्रावण अधिकमास

अशोक 'प्रवृद्ध
भारतीय पंचांग में सूर्यमास और चंद्रमास (चांद्रमास) दोनों पद्धति से गणना की परिपाटी है। काल निर्धारण में वर्ष की गणना का मुख्य आधार सूर्य के चारों ओर पृथ्वी का भ्रमण है। इससे ऋतुएँ बनती हैं। सौर वर्ष का स्पष्टत: ऋतुओं के साथ सम्बन्ध है, और सूर्य की बारह संक्रांति होने के कारण चंद्र पर आधारित बारह मास होते हैं। खगोलीय गणनानुसार सूर्य 30.44 दिन में एक राशि को पार कर लेता है। यही सूर्य का एक सौर महीना माना जाता है। इस प्रकार ऐसे बारह महीनों का समय अर्थात 365.25 दिन का समय एक सौर वर्ष कहलाता है। चंद्रमा का महीना 29.53 दिनों का होता है जिससे चंद्र वर्ष (चांद्रवर्ष) में 354.36 दिन ही होते हैं। ज्योतिषीय व खगोलीय गणनानुसार सौर वर्ष का मान 365 दिन, 15 घड़ी, 22 पल और 57 विपल हैं, जबकि चांद्रवर्ष का मान 354 दिन, 22 घड़ी, 1 पल और 23 विपल है। दोनों ही वर्षमानों में प्रत्येक वर्ष 10 दिन, 53 घड़ी, 21 पल अर्थात लगभग 11 दिन का अंतर पड़ता है। इस अन्तर्मान में समानता लाने अर्थात इस अंतर के समय को समायोजित करने के लिए ही चांद्रवर्ष बारह महीनों के स्थान पर तेरह मास का हो जाता है। यह स्थिति स्वयं ही उत्पन्न हो जाती है क्योंकि जिस चांद्रमास में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती, उसी चंद्रमास को अधिकमास तथा जिस चंद्रमास में दो सूर्य संक्रांति का समावेश हो, उसे क्षयमास की संज्ञा दी गई है। क्षयमास केवल कार्तिक, मार्ग व पौस मासों में होता है। जिस वर्ष क्षयमास पड़ता है, उसी वर्ष अधिमास भी अवश्य पड़ता है परन्तु यह स्थिति 19 वर्षों या 141 वर्षों के पश्चात आती है। पंचांग के अनुसार जिस भी माह में 33 दिनों का समायोजन होता है, वह माह अपने 30 दिनों की बजाय उससे दोगुना हो जाता है। चंद्र वर्ष के अनुसर हर तीन वर्ष में अधिक मास लगता है। अधिक मास को उसी माह में वापस लगने या एक चक्र पूरा करने में 19 वर्ष का समय लगता है।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष 2023 में सावन महीने में अधिकमास पड़ा है। इसलिए सावन एक नहीं, बल्कि दो महीने का होगा। अगली बार अधिक मास भाद्रपद में आएगा। सावन 4 जुलाई 2023 से शुरू हो चुका है, और 31 अगस्त 2023 को समाप्त होगा। इसमें अधिकमास की अवधि 18 जुलाई से 16 अगस्त तक होगी। ऐसा दुर्लभ संयोग पूरे 19 वर्ष बाद बना है, जिसमें सावन महीना पूरे 59 दिनों का होगा। पहला स्वतंत्रता दिवस भी श्रावण अधिकमास में पड़ा था।15 अगस्त 1947 दिन शुक्रवार को श्रावण अधिकमास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि व पुष्य नक्षत्र, अश्लेषा थी। उस दिन सूर्योदय 06.06 बजे पूर्वाह्न, और सूर्यास्त 06.56 अपराह्न में हुआ था। इस वर्ष भारतीय पंचाग के अनुसार 15 अगस्त 2023 की तिथि विक्रम संवत 2080, शक संवत 1945, माह श्रावण पक्ष कृष्ण तिथि चतुर्दशी तिथि ही है।श्रावण अधिकमासभगवान शिव, भगवान विष्णु की उपासना के साथ ही तन्त्र- मन्त्र साधना के लिए भी बहुत उत्तम माना जाता है। इस अधिकमास मेंभारत देश को सामरिक और राजनैतिक दृष्टि सेवैश्विक पटल पर उभरने और वैश्विक नेतृत्व प्राप्त होने की दिशा में गुरुत्तर लाभ होने की ज्योतिषी उम्मीद की जा रही है। इससे देश का पूरी दुनिया में वर्चस्व बढ़ेगा, मान-सम्मान में वृद्धि होगी, भारत को शोध के क्षेत्र में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल हो सकती है।
प्राकृतिक नियमानुसार एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच कम से कम एक बार सूर्य की संक्रांति अवश्य होती है। लेकिन जब दो अमावस्या के बीच कोई संक्रांति नहीं होती तो वह माह बढ़ा हुआ या अधिक मास होता है। संक्रांति वाला माह शुद्ध माह, संक्रांति रहित माह अधिक माह और दो अमावस्या के बीच दो संक्रांति हो जाने पर क्षय माह होता है। क्षय मास कभी- कभी ही होता है। वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलने वाली भारतीय पंचांग में अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। खगोलीय गणना के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग एक मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन वर्ष में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।
