Home > विशेष आलेख > "शरिया कोर्ट" ... जिहादी सोच

"शरिया कोर्ट" ... जिहादी सोच

शरिया कोर्ट ... जिहादी सोच
X

- विनोद कुमार सर्वोदय

भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में शरिया कोर्ट के गठन का विचार एक और जिहादी सोच का परिचय करा रही है। यह अत्यंत दुःखद है कि भारत का इस्लामीकरण करने की कट्टरपंथी मुसलमानों की मानसिकता यथावत बनी हुई है। मुगलकालीन बर्बरतापूर्ण इतिहास को हम भूले नही है।जब सन 1947 में हिन्दू-मुस्लिम धार्मिक आधार पर देश का विभाजन हो गया और मुसलमानों की इच्छानुसार उन्हें भारतभूमि का एक तिहाई भाग काट कर पाकिस्तान के रूप में दे दिया गया तो फिर वे क्यों वर्षो से अपने लिए पृथक शरिया न्यायालय बनाने के लिए कुप्रयास कर रहे हैं ? क्या इस अदूरदर्शी निर्णय से भारतीय मानस निरंन्तर आहत नही हो रहा ? स्वतंत्रता के 70 वर्षो के उपरांत भी इन मुस्लिम कट्टरपंथियों में "भारत" को "दारुल-इस्लाम" बनाने की दूषित मानसिकता अभी भी क्यों जीवित है ?

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा देश के प्रत्येक जिले में शरिया कानून के अनुसार न्यायालय बनाने के विचार के पीछे ऐसी ही घिनौनी मानसिकता सक्रिय हो गयी है। इसी जिहादी सोच को शरिया कोर्ट के बहाने भी बढ़ाया जा रहा है। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की शरिया अदालत (दारुल - कजा) कमेटी के संयोजक काजी तबरेज आलम के अनुसार शरिया अदालत के गठन करने के पीछे मुख्य कारण मुस्लिम माहिलाओं को न्याय शीघ्र मिलना, देश की वर्तमान न्यायालयों पर बोझ कम होना और सरकार का धन भी कम व्यय होना बताया गया है। लेकिन क्या ऐसा सोचा जा सकता है कि इस्लामिक जगत कभी भी भारत सहित सम्पूर्ण विश्व को दारुल-इस्लाम बनाने के अतिरिक्त किसी अन्य योजना पर कार्य करेगा ?

क्या भारत में मुसलमानों को लाभान्वित करने वाली अनेक योजनाएं उनके कट्टरपन व साम्प्रदायिक आक्रामकता को कम कर पायी ? क्या कश्मीर व वहां के अलगाववादियों पर भारी राजकोष लुटा कर उनमें कभी भारत भक्ति का भाव उत्पन्न करने में कोई सफलता मिली ? क्या धर्म के नाम पर जिहाद करने वाले आतंकवादियों के विरुद्ध कभी कोई मुस्लिम संगठन सक्रिय हुआ ? ऐसे अनेक प्रश्नों के सकारात्मक उत्तर की प्रतीक्षा में देशवासी बेचैन है। इनके तुष्टिकरण व सशक्तिकरण से इनका जिहादी जनून कम नही हो रहा बल्कि भारतभूमि के भक्तों का अस्तित्व संकटमय हो रहा है।

निसंदेह मुगलकालीन व वर्तमान इतिहास साक्षी है कि भारत की एकता व अखंडता को ललकारने वाली मुस्लिम मानसिकता केवल इस्लामिक शिक्षाओं व उसके दर्शन का दुष्परिणाम है। "शरिया कोर्ट" बनाने के बहाने आक्रांताओं की अरबी संस्कृति को हम पर थोंपने की यह एक षड्यंत्रकारी योजना है।अतः धर्मनिरपेक्ष देश में संविधान के अनुसार चलने वाले न्यायालयों के अतिरिक्त धर्म आधारित न्यायालयों का कोई औचित्य नही है। हमें सावधान रहना होगा कि शरिया कोर्ट का विचार जिहादी सोच का ही परिणाम है। ऐसा कुप्रयास करने वाले मानवतावादी व उदारवादी विचारधारा के विरुद्ध वातावरण बना कर भारतीय संस्कृति व धार्मिक आस्थाओं को भी आहत करना चाहते है।

Updated : 12 July 2018 2:53 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


Next Story
Top