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सेंगोल : मणि कांचन योग में हो रहा भारतीय स्व के प्रतिमान का स्थापन

सेंगोल : मणि कांचन योग में हो रहा भारतीय स्व के प्रतिमान का स्थापन
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माँ धूमावती के प्राकट्योत्सव पर लोकतंत्र के मंदिर नवीन संसद भवन का लोकार्पण और राजदंड सेंगोल की स्थापना वास्तव में मणिकांचन योग ही है। यह परम सौभाग्य का विषय है कि स्वाधीनता के अमृत काल में दासता के प्रतीक तिरोहित हो रहे हैं और उनकी जगह स्व के प्रतिमान स्थापित हो रहे हैं। इसी कड़ी में लोकतंत्र के मंदिर नवीन संसद भवन का लोकार्पण और हिंदुत्व के राजदंड सेंगोल की स्थापना की जा रही है। सौभाग्य से इस दिन महान् स्वातंत्र्र्य वीर और हिंदुत्व के पुरोधा महारथी विनायक दामोदर सावरकर की जयंती भी है।

माँ धूमावती सनातन धर्म में सातवीं महासिद्धि (महाविद्या) के रुप में शिरोधार्य हैं। 'ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहाÓ माँ धूमावती का बीज मंत्र है। माँ सभी अपकारी तंत्रों मंत्रों और शक्तियों की विनाशक, मानव जाति के लिए सर्वाधिक कल्याण कारी और अपराजेय बनाने वाली देवी हैं। इनके दर्शन ही पर्याप्त होते हैं। विधवाओं की प्रमुख आराध्य देवी हैं। दतिया में पीताम्बरा पीठ में माँ बगलामुखी के साथ माँ धूमावती विराजमान हैं। जबलपुर में चार खंबा में स्थित 'बूढ़ी खेरमाई के रुप में माँ धूमावती शिरोधार्य हैं। यह प्रतिमा 1500 वर्ष पुरानी है तथा गोंडवाना की विरासत है। दस में से सातवीं महासिद्धि माँ धूमावती को काल्हप्रिया देवी, उग्र तारा देवी के रुप में जाना जाता है। प्रलय काल में सबका विनाश होता है केवल धूमावती देवी ही विद्यमान रहती हैं। माँ धूमावती का प्राकट्य इस प्रकार हुआ कि माता पार्वती ने क्षुधातुर होकर शिव को निगल लिया पर इससे क्षुधा तो शांत हो गयी परंतु शिव के विष के प्रभाव से पार्वती के श्रीमुख से भयंकर धुआं निकला और शरीर भयानक हो गया, शिव के आशीर्वाद से यही स्वरूप मां धूमावती के रुप में पूजित हुआ। दक्षप्रजापति के यहाँ सती का भौतिक स्वरूप नष्ट हुआ पर उत्पन्न धुएं में सती मां धूमावती के रुप में विद्यमान रहीं। इतिहास गवाह है कि सन् 1962 के भारत - चीन युद्ध में तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु जी और उनके सहयोगियों ने भी पीताम्बरा पीठ में तांत्रिक पूजा और यज्ञ कराया था, तब जाकर युद्ध विराम हुआ था। ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को माँ धूमावती का प्राकट्य हुआ तदनुसार इस वर्ष 28 मई 2023 को है। इसलिए इस दिन नवीन संसद का लोकार्पण अतीव कल्याणकारी होगा।

28 मई 2023 को प्रात: 7 बजे के बाद से ही पूजन हवन प्रारंभ हो जाएगा तदुपरांत प्रात: 8.30 बजे से 9.30 बजे हिंदुत्व के शासन का राजदंड सेंगोल की स्थापना लोक सभा में की जाएगी। वस्तुत: राजदंड सेंगोल दक्षिण भारत के महान् हिन्दू चोल सम्राटों की विरासत है जो हिंदुत्व की स्वतंत्रता और संप्रभुता का प्रतीक है। सेंगोल पर भगवान शिव के नंदी बैल शीर्षस्थ हैं जो प्रसन्नता, शक्ति संपन्नता, कर्मठता बुद्धि और ज्ञान के प्रतीक हैं। सेंगोल के शिखर पर विराजमान नंदी भारतीय संविधान के पहले ही पृष्ठ पर शीर्षस्थ अंकित हैं। अलंकरण कर्ता व्यौहार राम मनोहर सिंहा हैं। भारत के महान् चोल वंश के महा प्रतापी राजा राजराज प्रथम (सन् 985 से सन् 1014) ने चतुर्दिक विजय प्राप्त करने के साथ तंजौर का शिव मंदिर बनवाया, जिसे राजराजेश्वर के नाम से जाना जाता है। भगवान् शिव राजराजेश्वर के रुप में प्रतिष्ठित हैं,इसलिए भारत में हिन्दू शासकों ने सदैव उनके प्रतिनिधि के रुप में शासन किया है। विजयनगर के राजा, विरुपाक्ष और मेवाड़ के महाराणा एक लिंग नाथ के दीवान के रुप में शासन करते थे। तंजौर के राजराजेश्वर के शैवाचार्यों ने राजराज प्रथम को अभिमंत्रित कर राजदंड के रुप में सेंगोल प्रदान किया था। राजराज प्रथम का पुत्र राजेंद्र चोल (सन् 1014 से सन् 1044) चंद्रगुप्त मौर्य और समुद्रगुप्त के समान भारत का महान् सम्राट हुआ। उसने कडारम विजय के अंतर्गत मलाया, जावा और पूर्वी द्वीप समूह को जीत लिया। श्रीलंका तो चोल साम्राज्य के अधीन था। राजेंद्र प्रथम भारत पूर्व की ओर बढ़ा और विजय प्राप्त कर, गंगा नदी का पानी लाकर सेंगोल का जलाभिषेक किया और गंगा जल चोलगंगम जलाशय में प्रवाहित किया। गंगईकोंड की उपाधि धारण की। उत्तर भारत के राजपूत राज्यों से रक्षात्मक संधियां कीं। सेंगोल के आशीर्वाद से राजेंद्र प्रथम अपराजेय रहा। इस तरह हिंदुत्व का प्रतीक सेंगोल भारत की स्वतंत्रता, संप्रभुता और विजय का प्रतीक है। भारत में भगवान् शिव की मूर्तियों के साथ राजदंड सेंगोल अंकित मिलता है। इसलिए लार्ड माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरित करते हुए, 14 अगस्त 1947 को रात्रि 10.45 बजे पं. जवाहरलाल नेहरु को राजदंड सेंगोल प्रदान किया था परंतु नेहरु जी ने पता नहीं क्यों इसे तत्कालीन इलाहाबाद, अब प्रयागराज के एक संग्रहालय में रखवा दिया। ऐंसा प्रतीत होता है कि स्व को लेकर नेहरु जी की सदैव अस्पष्टता रही है और वही परिपाटी आज भी दृष्टिगोचर हो रही है। भगवान् से प्रार्थना है कि विघ्न संतोषियों को सद्बुद्धि प्रदान करें।

(लेखक श्रीजानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष हैं)

Updated : 27 May 2023 8:50 PM GMT
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