पुण्यतिथि 'प्रभात झा' : सार्वजनिक जीवन में शुचिता के शुभंकर

फोटो - अपने परिवार के साथ स्व. प्रभात झा
प्रभात झा मप्र की राजनीति,पत्रकारिता और समाज जीवन में शुचिता के शुभंकर थे।वे एक भारत एक समाज के उस नैरेटिव के प्रतिनिधि भी रहे जो जाति, प्रान्त और क्षेत्र की संकीर्णता से ऊपर होता है।बिहार से आकर मप्र के समाज जीवन में उनकी उदात्त स्वीकार्यता इस बात को प्रमाणित करती रही। एक पत्रकार से अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने वाले प्रभात झा जी का वैशिष्ट्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक का भी था।संघ के संस्कारों के बल पर उन्होंने पहले पत्रकारिता में सच्चाई और निडरता के झंडे गाड़े फिर इसी भाव के साथ वे भाजपा के बड़े नेता के रूप में स्थापित हुए।आमोखास के साथ उनका रिश्ता आत्मीयता से लबरेज रहता था इसीलिए उनके सम्पर्क में आने वाला हर शख्स उनसे मिलने के बाद इसी धारणा को लेकर जाता था कि प्रभात जी उसके लिए बहुत खास है और वह स्वयं भी प्रभात जी का खास है।रिश्तों को इस आत्मीयता से सहेजकर जीने के कारण प्रभात जी सबके भाईसाब थे।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उन्हें भूतो न भविष्यति अध्यक्ष के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने मप्र के सभी भाजपा मंडल तक यात्राएँ की। कार्यकर्ताओं से संवाद किया।इस संवाद को सतत बनाने के लिए एक सांगठनिक तन्त्र विकसित किया। वे मप्र के निवासी नही थे लेकिन उनका रिश्ता इस प्रदेश से ऐसा था कि कोई भी उन्हें बिहार का नही मानता था। वे जगत भाई साब थे।उन्होंने भाजपा में हर भूमिका को एक नया आयाम प्रदान किया।वे पार्टी के संवाद प्रमुख थे जिसे आजकल मीडिया प्रभारी कहा जाने लगा।इस पद पर रहते हुए उन्होंने प्रदेश भर में भाजपा के प्रवक्ताओं और मीडिया हैंडलर की फौज खड़ी कर दी थी। वे प्रायः रोज दो चार पत्र प्रदेश के सभी मीडिया प्रभारियों को भेजते थे। भोपाल में उनके धारदार राजनीतिक जबाब तबके मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को अक्सर सोचने पर विवश कर देते थे। आज मीडिया सेंटर का भव्य रूप असल में प्रभात जी की देन है। राज्यसभा सांसद के रूप में उन्होंने पहली बार प्रदेश भर के लिए क्षेत्र विकास निधि खर्च करने का चलन शुरू किया। यही नही हर साल सांसद निधि के व्यय का लेखा जोखा लेकर भी वह जनता के बीच आते थे इससे अन्य नेताओं के बीच भी नैतिक दबाब निर्मित होता था।
प्रभात जी समन्वय के सूत्रधार भी थे उनके रिश्ते मीडिया से लेकर विपक्ष के नेताओं से भी मधुर रहते थे। उन्होंने कभी व्यक्तिगत आरोप की राजनीति नही की इसीलिए सभी दलों के साथ उनका समन्वय बना रहा। लेकिन इसके बाबजूद वह अपनी पार्टी और संघ के विचारों के प्रति सदैव अडिग-अटल रहते थे। राममंदिर आंदोलन में उनकी पत्रकारिता का लौहा पूरे देश ने माना था। वे एक अध्ययन शील राजनेता थे जो सदैव नई जानकारी और गहरे तथ्यों के साथ संसद और बाहर बात करते थे। संसद में उनके उठाये गए मुद्दे अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा करते थे। आजकल की पीढ़ी में नेताओं का नियमित पढ़ना लिखना खत्म हो गया है लेकिन प्रभात जी इसके अपवाद थे।
आज उनकी पुण्यतिथि पर ग्वालियर समेत पूरा प्रदेश अपने इस लाडले नेता, पत्रकार और एक संवेदनशील शख्स को याद कर रहा है।
(लेखक : डॉ नितेश शर्मा, भाजपा शिक्षक प्रकोष्ठ के संयोजक हैं)
