भारतीय खेलों में भी समाहित सनातनी तत्वदर्शन

भारतीय खेलों में भी समाहित सनातनी तत्वदर्शन
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श्रीपादावधूत

किसी भी देश की संस्कृति सभ्यता धरोहर को नष्ट करना हो तो सबसे पहले उस देश के निवासियों को उनकी भाषा और उनके इतिहास से अलग किया जाता है। क्योंकि भाषा और इतिहास उस देश के निवासियों में आत्म गौरव का स्वाभिमान का भाव जाग्रत करते हैं। यही कार्य इस देश में पहले मुसलमानों ने और बाद में अंग्रेजों ने किया। अंग्रेजों ने तो सुनियोजित षड्यंत्रपूर्वक इस देश के समस्त बौद्धिक संपदा को लूट कर उसका अनुवाद अंग्रेजी में कर संपूर्ण दुनिया में प्रसारित किया। पूरे विश्व में जितनी भी खोजें हुई है वह सारी खोजें 17 वीं शताब्दी के बाद ही अस्तित्व में क्यों आती हैं? कारण स्पष्ट है अगर आप समझना चाहे तो। यह वहीं काल है जब इस देश पर अंग्रेजों का आक्रमण होता है। संपूर्ण देश पर धीरे-धीरे एकछत्र राज्य स्थापित हो जाता हैं और यहां की धन संपत्ति खनिज व बौद्धिक संपदा को लूटकर इंग्लैंड भेजा जाता है और वहीं से वह सारी खोज व सारे आविष्कार वह सारी बातें अंग्रेजों के नाम से संपूर्ण विश्व में प्रचारित की जाती है। इसी का एक उदाहरण है यह 'सांप-सीढ़ीÓ का खेल।

कई लोगों के लिए आश्चर्य की बात होगी कि मोक्षपट या मोक्ष पटामू के रूप में जाना जाने वाला खेल मूल 'सांप और सीढ़ीÓ था। 'भारत महानÓ आविष्कारों और नवाचारों की भूमि रहा है, हालांकि अधिकांश भारतीय शायद ही उनके बारे में जानते हैं। क्योंकि हमें यह सब ना तो बताया गया है ना पढ़ाया गया है जो पढ़ाया है वह गुलामी का इतिहास है और इस इतिहास में हम कितने जाहिल थे, गंवार थे। यही सारी गलत बातें हमें इतिहास में पढ़ाई जाती हैं और यहां का व्यक्ति उस इतिहास को पढ़कर यह मान्य भी कर लेता है।

तो आइए जानते हैं कि मोक्षपट क्या है? हालांकि इस खेल की उत्पत्ति का श्रेय संत ज्ञानेश्वर जी को दिया जाता है, लेकिन ऐसी मान्यता है कि यह दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से खेला जाता रहा है। इस खेल का उद्देश्य बच्चों में नैतिक शिक्षा देना था । जिन चौकों पर सीढ़ी शुरू होती है वे पुण्य के लिए खड़े होते हैं जबकि सांप के सिर वाले वर्ग पाप या बुराई की विशेषता का प्रतीक होते हैं। 1892 में औपनिवेशिक शासकों द्वारा इसे ब्रिटेन में संशोधनों के साथ पेश किया गया था। जब खेल को इंग्लैंड ले जाया गया तो इसमें नैतिक पाठ और धार्मिक पहलुओं हटा दिया गया पाश्चात्य सभ्यता से परिपूर्ण मूल्यों में इसे बदल कर स्नेक एंड लैडर के रूप में प्रचारित किया। पुराने भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत इस खेल में सांपों की संख्या अधिक थी एवं सीढ़ियां कम थी लेकिन अंग्रेजों ने सांप-सीढ़ी की संख्या भी बराबर कर दी गई। खेल को अमेरिका में 'यूट्स एंड लैडर्स के रूप में पेश किया गया था।Ó प्राचीन भारतीयों की अन्य खोजें सिर्फ सांप-सीढ़ी ही नहीं बल्कि भारत कई प्राचीन खेलों का जन्म स्थान है। शतरंज की उत्पत्ति भारत में सिंधु सरस्वती सभ्यता के पुरातात्विक स्थलों में 'शतरंजÓ के समान एक खेल के प्रमाण के साथ हुई थी। इसे मूल रूप से 'अष्टपदÓ कहा जाता था और 'गुप्त कालÓ के दौरान 'चतुरंगÓ के रूप में जाना जाने लगा। 'लूडोÓ पहली बार छठी शताब्दी में खेला गया था, इसकी उत्पत्ति 'पांडवों और कौरवोंÓ द्वारा खेले जाने वाले 'चौसरÓ नामक प्राचीन खेल से हुई है। इतिहासकार इस बात को प्रमाणित करते हैं कि एलोरा की गुफाओं में इस खेल का चित्रण है। मार्शल आर्ट जो बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया में फैला, भारत में उत्पन्न हुआ। दिलचस्प बात यह है कि बैडमिंटन का आधुनिक रूप भी भारत में पैदा हुआ था और बाद में औपनिवेशिक शासकों द्वारा इसे ब्रिटेन ले जाया गया।

भारत को अध्यात्म की भूमि के रूप में जाना जाता है, हमारे पूर्वज कई क्षेत्रों में बहुत उन्नत थे। हमारे ऋ षि कई अन्य क्षेत्रों के अलावा गणित और खगोल विज्ञान से लेकर चिकित्सा जैसे विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञ थे। उन्होंने इन शक्तियों का उपयोग किया और कई वैज्ञानिक खोजें कीं। इनका उपयोग आम नागरिकों के जीवन को आसान बनाने के लिए किया गया था। इन प्रतिभाशाली ऋ षि-मुनियों दिमागों की एक झलक है, जिन्होंने भारत को ज्ञान की भूमि बनाया और यहां तक कि खेलों के माध्यम से मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा के दोहरे उद्देश्य को भी बहुत आसान ढंग से समाज में स्थापित किया। चर्चा सांप-सीढ़ी के खेल पर करते हैं। इस खेल के बारे में सबसे पहला उल्लेख 13वीं शताब्दी के महाराष्ट्र के संत श्री ज्ञानेश्वर महाराज से मिलता है।

डेनमार्क के इतिहासकार मिस्टर जेकॉब और पुणे के इतिहास संशोधक वा. ल. मंजुल इन्होंने सबसे पहले ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध किया कि इस खेल को संत ज्ञानेश्वर महाराज ने अपने दो छोटे भाई-बहनों सोपान और मुक्ताबाई को खेलने हेतु यह खेल उनके निवास स्थान के बाहर एक चट्टान पर बना करके दिया था। आपको विदित ही होगा कि संत ज्ञानेश्वर जी, निवृत्ति नाथ, सोपानदेव और मुक्ताबाई यह चार भाई बहन थे। इनमें दो बड़े भाई ज्ञानेश्वर और निवृत्तिनाथ जब भिक्षा लेने ने के लिए जाते थे तब अपने दो छोटे भाई-बहनों को यह खेल खेलने के लिए देते थे। यह खेल खिलाने के पीछे उनका उद्देश्य सिर्फ इतना ही था कि 2 बड़े भाइयों की अनुपस्थिति में दो छोटे भाई-बहन इस खेल को खेल कर अपना समय व्यतीत करें, साथ ही छोटे बच्चों को इस खेल के माध्यम से अच्छे संस्कार भारतीय संस्कृति के उद्देश्य उनकी शिक्षा यह सब मिलती रहे। इतनी उदात्तता को लेकर तैयार किया गया था यह 'सांप-सीढ़ीÓ का खेल। लेकिन दुर्भाग्य देखिये अंग्रेजों ने इसे अपने नाम से चिपका कर हमारे सामने रखा और हमने आंख मूंदकर विदेशी है, आयातित हैं, तो अच्छा ही होगा इसके आधार पर स्वीकार कर लिया। डेनमार्क के इतिहासकार मिस्टर जेकॉब ने 'मध्ययुगीन भारत में खेले जाने वाले खेलÓ यह विषय लेकर अपनी पीएचडी की उपाधि प्राप्त की तब उन्हें 'इंडियन कल्चर ट्रेडीशन के संदर्भ में डेक्कन महाविद्यालय पुणेÓ के 'प्रोफेसर रा. चि. ढेरेÓ के हस्तलिखित संग्रह से दो मोक्षपट प्राप्त हुए अर्थात 'सांप-सीढ़ीÓ के खेल प्राप्त हुए। इसी प्रकार विजुअल फैक्टफाइंडर हिस्ट्री टाइमलाइन इस पुस्तक में वर्ष 1199 से 1209 इस कालखंड में पूरे दुनिया में जो भी कोई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी या अविष्कार हुए उसमें संत ज्ञानेश्वर महाराज द्वारा कौड़ी और पांसों के माध्यम से एक खेल खेला गया। इस प्रकार का उल्लेख प्राप्त हुआ। 13 वीं शताब्दी के कवि संत ज्ञानेश्वर महाराज द्वारा रचित इस खेल में सीढ़ियां सद्गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं और सांप अवगुणों का। खेल कौड़ियों और पासों से खेला जाता था। बाद में समय के साथ, खेल में कई संशोधन हुए लेकिन अर्थ वही है अर्थात अच्छे कर्म हमें स्वर्ग में ले जाते हैं और बुरे कर्म पुनर्जन्म के चक्र में ले जाते हैं। एक बोर्ड पर सौ वर्ग होते हैं, सीढ़ियां ऊपर ले जाती हैं, सांप नीचे ले आते हैं। यहां अंतर यह है कि वर्ग सचित्र हैं। (क्रमश:)

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