सदैव - अटल

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शिवप्रकाश

भारत रत्न, पूर्व प्रधानमंत्री, स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी का यह शताब्दी वर्ष है। 25 दिसंबर 1924 को उनका जन्म ग्वालियर, मध्य प्रदेश में माता श्रीमती कृष्णा देवी एवं पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी के परिवार में हुआ था। 16 अगस्त 2018 को वे अपनी इहलीला पूर्ण कर स्वर्गवासी हो गए। अपनी आयु के 94 वर्षों की इस कालावधि में जिया गया उनका उद्देश्यपूर्ण जीवन आज भी समस्त देश के लिए अनुकरणीय है।

स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन मेधावी छात्र, प्रखर वक्ता, स्वतंत्रता सेनानी, संवेदनशील पत्रकार, भाषा-स्वाभिमानी, निर्भीक एवं कुशल प्रशासक तथा राष्ट्रीय अखंडता एवं संस्कृति के अनन्य पुजारी जैसे गुणों का समुच्चय था। अपने इन्हीं गुणों के कारण वे केवल अपने प्रशंसकों में ही नहीं, वरन् अपने विरोधियों के दिलों पर भी राज करते थे। उनके गुणों से प्रभावित होकर रूस के राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि, “वे एक उत्कृष्ट राजनेता थे। उनका नाम भारतीय राजनीति में एक पूरे युग के साथ जुड़ा हुआ है।”

श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जीवन राष्ट्र की अखंडता एवं एकात्मता के लिए समर्पित था। भारत के साथ कश्मीर विलय को लेकर वे प्रारंभ से ही डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ जुड़ गए थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का यह संदेश कि, “बिना परमिट मैं कश्मीर में प्रवेश कर गया हूँ, यह संदेश संपूर्ण देश में भिजवा दो,” इसके साथ वे जीवनपर्यंत भावनात्मक रूप से जुड़े रहे। कश्मीर विषय पर सत्ता के बाहर रहते समय संघर्ष एवं प्रधानमंत्री बनने के बाद समाधान यह उनके जीवन का लक्ष्य रहा। उनका प्रसिद्ध वाक्य, “पाकिस्तान कश्मीर के बिना अधूरा है तो भारत पाकिस्तान के बिना अधूरा है,” सदैव उनकी भारत के प्रति भक्ति एवं अखंडता के भाव को प्रकट करता है।

तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की कश्मीर एवं हिंदू शरणार्थी विषय पर लचर एवं अदूरदर्शी नीति का उन्होंने सदैव विरोध किया। संसद से सड़क तक उन्होंने चीनी साम्राज्यवादी नीति का विरोध किया। तिब्बत का चीन के कब्जे में जाना भारत की उत्तरी सीमा के असुरक्षित होने का कारण बनेगायह उनका दृढ़ विचार था। 1959 में संसद में कहा गया उनका प्रसिद्ध वाक्य, “तिब्बत की आज़ादी की लाश पर हम चीन के साथ अपनी दोस्ती का महल नहीं खड़ा कर सकते,” आज भी स्मरणीय है।

गोवा एवं दमन-दीव में 1961 की सैन्य कार्रवाई का समर्थन करते हुए अटल जी ने कहा था कि, “यह युद्ध नहीं, भारत की खोई हुई सांसों की वापसी है,” और “यह केवल भूभाग की वापसी नहीं है, यह भारत के आत्मसम्मान की पुनः स्थापना है।” वेरुवाड़ी पर बहस करते हुए उन्होंने संसद के माध्यम से सरकार को चेतावनी दी थी कि, “सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह देश की भूमि को दान में दे; यह राष्ट्र की संपत्ति है, किसी व्यक्ति या सरकार की जागीर नहीं।”

अटल जी ने ‘राष्ट्रधर्म’, ‘पांचजन्य’, ‘वीर अर्जुन’ और ‘स्वदेश’ के माध्यम से पत्रकारिता क्षेत्र में प्रवेश किया था। उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि, “पत्रकारिता का अर्थ सिर्फ खबरें छापना नहीं है, बल्कि राष्ट्र को दिशा देना है।” समाचार पत्र समाज के लिए दर्पण के साथ-साथ दीपक के समान होता है। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रवादी पत्रकारिता के माध्यम से इसी लक्ष्य को साधने का प्रयास किया। आज के पत्रकारिता जगत में उनका यह विचार प्रेरणादायी एवं मार्गदर्शक है।

प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने देश के विकास में नए आयाम जोड़ने का कार्य किया। उनका शासन संवेदनशील था। आर्थिक विकास, ढांचागत विकास, सुरक्षा, शिक्षा एवं गरीबी दूर करने के लिए उनके प्रयास सराहनीय हैं। राजग के 24 दलों से बनी उनकी सरकार बेहतर संतुलन एवं समन्वय का अतुलनीय उदाहरण थी। बहुदलीय सरकार होने के बाद भी उन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा एवं संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादाओं को उन्नत किया।

उत्तर से दक्षिण एवं पूर्व से पश्चिम को जोड़ने के लिए उनके द्वारा प्रारंभ की गई “स्वर्णिम चतुर्भुज योजना” तथा मुख्य मार्ग से गांव को जोड़ने वाली “प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना” भारत के आर्थिक विकास के आधार स्तंभ बनीं। उनका मानना था कि, “सड़कें राष्ट्र की धमनियां हैं; अगर ये रुक गईं तो देश का विकास रुक जाएगा।” कनेक्टिविटी ही प्रगति की कुंजी है। निरक्षरता एवं निर्धनता का गहरा संबंध है, अतः निरक्षरता को दूर करने के लिए “सर्व शिक्षा अभियान” तथा आर्थिक दबावों के बावजूद गरीबों को भुखमरी से उबारने के लिए “अंत्योदय अन्न योजना” उनकी ऐतिहासिक पहल थी। सूखे से राहत एवं जल के समुचित उपयोग के लिए “नदी जोड़ो परियोजना” जैसी पहल उनकी दूरदर्शिता को प्रकट करती है।

आज की संचार क्रांति श्री अटल जी की ही देन है, जिसे मोबाइल फोन का लोकतांत्रिकरण कहा गया। देश की प्रगति में विज्ञान के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने “जय जवान, जय किसान” के साथ “जय विज्ञान” का उद्घोष किया।

11 एवं 13 मई 1998 को भारत द्वारा पोखरण में किए गए परमाणु विस्फोट उनके अदम्य साहस, कुशल रणनीति एवं दूरदर्शिता को प्रकट करते हैं। पोखरण विस्फोट के समय आवश्यक गोपनीयता का पालन, आर्थिक प्रतिबंधों से देश को उबारने की उनकी रणनीति तथा किसी भी दबाव के आगे न झुकते हुए भारत को वैश्विक पटल पर एक जिम्मेदार राष्ट्र का स्थान दिलाना उनके राष्ट्रीय स्वाभिमान को दर्शाता है। उनका वक्तव्य कि परमाणु शक्ति संपन्न देशों द्वारा भारत को पंचमहाभूत कहकर ललकारा जाना—इसका उत्तर केवल अटल जी ही दे सकते थे।

भारत के हितों का संरक्षण करते हुए पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध, चीन के साथ संबंधों की पहल तथा अमेरिका सहित बड़े देशों के साथ संतुलित संबंध रखते हुए उन्होंने भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को महत्व दिया। आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक जागृति उनके प्रयासों का परिणाम थी। शक्ति के साथ शांति उनकी विदेश नीति का आधार थी; इसी कारण शांति के लिए वे स्वयं बस लेकर लाहौर गए। मुशर्रफ द्वारा युद्ध थोपे जाने पर उनके नेतृत्व में कारगिल में हमारी सेनाओं ने मुंहतोड़ जवाब दिया। वे शांति प्रणेता भी थे और युद्ध विजेता भी।

“राष्ट्र प्रथम” व्यवहार के वे जीवंत प्रतीक थे। विपक्षी नेता होने के बाद भी राष्ट्र की आवश्यकता पर वे समस्त मतभेद भुलाकर सदैव देश के साथ खड़े रहे। बांग्लादेश युद्ध के अवसर पर प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का समर्थन किया तथा 1994 में कश्मीर मुद्दे पर भारत का पक्ष रखने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव के आग्रह पर भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर भारत को सफलता दिलाई। आर्थिक नीतियों पर प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर का सहयोग यह उनका आदर्श लोकतांत्रिक विपक्षी व्यवहार था, जो आज भी अनुकरणीय है।

प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रीय स्वाभिमान से ओतप्रोत एक आदर्श नेता थे। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी भाषा में दिया गया उनका भाषण स्वभाषा के प्रति उनके प्रेम को प्रकट करता है। महापुरुषों के प्रति सम्मान, भारतीय संस्कृति का आचरण एवं भारतीय वेश के प्रति स्वाभिमान उनके जीवन की विशेषताएं थीं। सभी स्तर की शिक्षा मातृभाषा में हो इस पर उनका सदैव आग्रह रहा, जिसे आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में साकार किया जा रहा है।

पोखरण परमाणु विस्फोट के उपरांत प्रतिबंध लगाए जाने पर अमेरिकी राष्ट्रपति श्री बिल क्लिंटन को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा था कि, “भारत अपनी सुरक्षा के लिए किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकेगा।” यह स्वाभिमानी भारत का संदेश था। श्री अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रख्यात कवि भी थे। राष्ट्र की अखंडता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र एवं उनके निस्पृह स्वभाव को अभिव्यक्त करने वाली अनेक कविताओं की उन्होंने रचना की। अपनी भाषण शैली से वे विरोधियों से लेकर सामान्य जनता तक को मंत्रमुग्ध कर लेते थे। सदैव भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए वे समर्पित रहे। लोकतंत्र की रक्षा हेतु अस्वस्थ होते हुए भी उन्होंने कष्टकारी आपातकाल का समय कारावास में बिताया। अनैतिक माध्यमों को स्वीकार न करते हुए उन्होंने सरकार खोना स्वीकार किया यह उनके लोकतांत्रिक चरित्र का सर्वोच्च उदाहरण है।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना संपूर्ण जीवन मातृभूमि की सेवा में समर्पित किया। उनके लिए, “भारत भूमि का टुकड़ा नहीं, यह जीता-जागता राष्ट्रपुरुष है। इसका कण-कण पवित्र शंकर सा है, नदियां गंगा समान हैं। यह वंदन और अभिनंदन की भूमि है। हम जिएंगे भी राष्ट्र के लिए और मरेंगे भी राष्ट्र के लिए।” उनके मन के ये भाव आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरणा देते हैं। उनकी जन्मशताब्दी के अवसर पर हम सभी भारत को समृद्ध, शक्तिशाली एवं विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लें। यही स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


शिवप्रकाश

(राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री, भाजपा)

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