तिरंगे की शान के लिए दिया बलिदान

तिरंगे की शान के लिए दिया बलिदान
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बलिदान दिवस पर विशेष

रमेश शर्मा

स्वतंत्रता आँदोलन में संघर्ष की अहिसंक धारा में भी सैकड़ों बलिदान हुये हैं। 1942 के भारत छोड़ो आँदोलन में ही देश के पचास से अधिक स्थानों पर गोलियाँ चलीं और सौ से अधिक सेनानी बलिदान हुये। अंग्रेजों का ऐसा ही बर्बर गोलीकांड 12 अगस्त 1942 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुआ था। जिसमें मौके पर ही दो सेनानियों के बलिदान हुये। इनमें एक रमेशदत्त मालवीय की आयु तो मात्र चौदह वर्ष की थी । और दूसरे लाल पद्मधर सिंह महाविद्यालयीन छात्र थे। गाँधीजी ने नौ अगस्त 1942 से अंग्रेजों भारत छोड़ो आँदोलन आरंभ करने की घोषणा की थी। लेकिन अंग्रेजों ने देश व्यापी गिरफ्तारियाँ कीं और आठ अगस्त की रात्रि तक ही काँग्रेस के सभी नेता बंदी बना लिये गये थे । लेकिन जन भावनाएँ बहुत प्रबल थीं और यह एक प्रकार से जन आँदोलन बन गया। नेताओं की गिरफ्तारी के बाद स्वप्रेरणा से छात्र आगे आये। बैठकों का क्रम चला और महाविद्यालय के छात्रों ने 12 अगस्त से एक जुलूस निकालने का निर्णय किया।

12 अगस्त 1942 की दोपहर यह जुलूस लोकनाथ मोहल्लेे से आरंभ हुआ और कोतवाली की ओर बढ़ा । जैसे ही जुलूस कोतवाली के पास पहुंचा पुलिस ने रोकना चाहा और झड़प होने लगी। कोतवाली में सेना की बलूच रेजीमेंट टुकड़ी मौजूद थी। इस टुकड़ी ने गोली चालन आरंभ कर दिया। जुलूस में छात्र और छात्राएँ अलग-अलग तिरंगा लेकर चल रहे थे। लाठी से घायल होकर छात्रा नयनतारा सहगल गिर पड़ीं उनका ध्वज भी छात्र लाल पदमधर सिंह ने उठाया और आगे बढ़े। एक गोली उनके सीने को चीरकर निकल गई। यह दृश्य वहाँ खड़े चौदह वर्षीय बाल वीर रमेश दत्त मालवीय देख रहे थे । उन्होंने एक पत्थर उठाकर उस सार्जेन्ट को फेंककर मारा जिसकी गोली लाल पदमधर सिंह को लगी थी। निशाना अचूक था । पत्थर सीधा उसकी आँख में लगा। और उसने गोली इस बालवीर को मार दी । गोली उनके चेहरे पर लगी और आरपार हो गई। बालवीर रमेशदत्त गिर पड़े। इस प्रकार इस आँदोलन में लाल पद्मधर सिंह और रमेशदत्त मालवीय दोनों का मौके पर ही बलिदान हो गया।

1942 के आँदोलन में बलिदान होने वालों में रमेश दत्त मालवीय को सबसे छोटी आयु का बलिदानी माना जाता है। कहीं-कहीं इनके नाम को रमेश दत्त तिवारी भी लिखा है । इनका जन्म 7 जुलाई 1928 को प्रयागराज में ही हुआ था। रमेश चंद्र के पिता भानुदत्त तिवारी शहर के नामी वैद्य थे । माता श्यामा देवी भारतीय परंपराओं में रची बसी थीं। यह परिवार आज भी उसी मोहल्ले में रहता है । जब 12 अगस्त 1942 को छात्रों ने जुलूस निकाला तब रमेशदत्त नौवीं कक्षा के छात्र थे। पुलिस लाठीचार्ज और गोली चालन से गिरते छात्रों को देखकर उनका खून खौल उठा और सार्जेन्ट को पत्थर मार दिया। कलेक्टर डिक्शन ने रमेश दत्त को पत्थर मारते देख लिया था । उसने इस बालवीर को गोली मारने का आदेश दे दिया । गोली इनकी आँख के नीचे चेहरे पर लगी और आरपार निकल गई। वे धरती पर गिरे और इनका बलिदान हो गया ।

प्रयागराज में 12 अगस्त 1942 में हुये आँदोलन में दूसरे बलिदानी लाल पद्मधर सिंह मध्यप्रदेश में सतना जिले के रहने वाले थे। इनका जन्म 11 अक्टूबर 1914 को सतना जिले के ग्राम कृपालपुर में हुआ था। आरंभिक शिक्षा सतना और रीवा में हुई थी। वे जब बी.एस.सी. की पढ़ाई कर ही रहे थे। उसी समय भारत छोड़ो यात्रा का आव्हान हुआ और वे इससे जुड़ गये। उन्होंने स्वयं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों को एकत्र किया और जुलूस निकालने का निर्णय किया। इस आँदोलन का आव्हान और नेतृत्व वे ही कर रहे थे। 12 अगस्त को इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों की सभा हुई । सभा के बाद विश्वविद्यालय परिसर से यह जुलूस हाथों में तिरंगे लेकर चल पड़ा। इसका नेतृत्व लाल पद्मधर सिंह कर रहे थे। कलेक्टर डिक्सन ने आदेश दिया और पुलिस अधीक्षक आगा ने जुलूस पर बल प्रयोग आरंभ कर दिया। पहले लाठीचार्ज और फिर गोली चालन। लाठी गोली की बिना परवाह किये लाल पद्मधर हाथ में तिरंगा लेकर आगे बढ़े । तभी कलेक्टर ने आदेश दिया- 'शूट हिमÓ और कलेक्टर के आदेश पर गोली चली और लाल पद्मधर सिंह का सीना चीर गईं। इस प्रकार लाल पद्मधर सिंह का बलिदान हो गया । आज भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संघ की शपथ लाल पद्मधर सिंह के नाम पर ही ली जाती है। इस आँदोलन में नारायण दत्त तिवारी हेमवती नंदन बहुगुणा, चंद्रभूषण त्रिपाठी, कमला बहुगुणा, राजमंगल पांडेय आदि छात्र नेताओं ने भाग लिया था। बाद में जिनकी गणना देश के प्रमुख राजनेताओं में रही है। घटना के बाद छात्रसंघ भंग कर दिया गया था जो 1945 में बहाल हुआ। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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