नियमों के पालन से ही रुक सकेंगे सड़क हादसे

नियमों के पालन से ही रुक सकेंगे सड़क हादसे
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सड़क दुर्घटनाओं को लेकर हाल ही में लोकसभा में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का यह बयान कि अधिकांश सड़क हादसों में वाहन चालकों की लापरवाही काफी हद तक जिम्मेदार है, चिंताजनक कहा जा सकता है। प्रायः देखा गया है कि वाहन चालक सड़कों पर लापरवाही से वाहन चलाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। इसे रोकने के लिए यातायात पुलिस समय-समय पर अभियान चलाती ही रहती है, लेकिन सामाजिक संस्थाओं को भी इसके लिए आगे आना होगा। निश्चय ही यदि ऐसा होता है तो काफी हद तक सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा सकेगा और बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकेगी।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के विकसित देशों के मुकाबले हमारे देश में सड़कों पर वाहनों की संख्या अपेक्षाकृत कम है, लेकिन इसके बावजूद सड़क हादसों के मामलों में हम उनसे आगे हैं। लोकसभा में सड़क हादसों को लेकर प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, एक साल में देश में लगभग पाँच लाख सड़क दुर्घटनाओं के मामले दर्ज किए जाते हैं। इसमें वे हादसे भी शामिल हैं, जो छोटे शहरों और भीतरी इलाकों में होते तो हैं, लेकिन दर्ज नहीं हो पाते। इन छोटी-बड़ी घटनाओं में हर साल करीब 1.8 लाख लोगों की मौत हो जाती है। लाखों की संख्या में लोग घायल होते हैं, जिनमें से कई ऐसे होते हैं जो दुर्घटना के बाद जीवन भर सामान्य जीवन नहीं जी पाते।

दुखद यह भी है कि मरने वालों में सर्वाधिक संख्या युवाओं की होती है। एक आंकड़े के अनुसार, मरने वालों में 66 फीसदी लोग 18 से 34 वर्ष की आयु के बीच होते हैं, जो अपने परिवार के कमाने वाले सदस्य होते हैं। इसके परिणामस्वरूप हादसे के बाद कई परिवार गरीबी के दलदल में धंस जाते हैं।

यदि देखा जाए तो बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं का मुख्य कारण तेज गति से वाहन चलाना है। सड़क परिवहन मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट बताती है कि तेज गति के कारण 68 फीसदी सड़क दुर्घटनाएँ होती हैं और लगभग इतनी ही मौतें भी दर्ज की जाती हैं। यह भी सही है कि इन मौतों और हादसों के पीछे हमारी लापरवाही ही जिम्मेदार है। ऐसे मामलों में प्रायः देखा गया है कि हम अक्सर सड़क सुरक्षा नियमों की अनदेखी करते हैं।

सड़कों पर फर्राटा भरते युवाओं को देखें तो इनमें से अधिकांश ऐसे होते हैं जो हेलमेट पहनने से परहेज करते हैं, यह जानते हुए भी कि हादसों में सिर की चोट जानलेवा बन सकती है। सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, हेलमेट न पहनने के कारण पचास हजार से अधिक लोगों की मौतें हुई हैं। वहीं सीट बेल्ट न लगाने से 16 हजार से अधिक यात्रियों की जान गई है।

इन हादसों की एक बड़ी वजह ऐसे अकुशल चालकों का होना भी है, जिनके पास ड्राइविंग लाइसेंस तक नहीं होता। आंकड़ों के अनुसार, दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार चालकों में तीस हजार से अधिक ऐसे वाहन चालक थे जिनके पास लाइसेंस नहीं था। देश में बड़ी संख्या में ऐसे चालक भी हैं, जो चिकित्सकीय रूप से फिट नहीं होते। इसके अलावा जुगाड़ और लेन-देन से लाइसेंस बनवाने वालों की भी कमी नहीं है। वे वाहन चलाने की पर्याप्त योग्यता और अनुभव के बिना ही चालक बन बैठते हैं।

हाल के वर्षों में नशे की हालत में वाहन चलाने का चलन भी बढ़ा है। कई हादसों के बाद यह खुलासा हुआ कि संबंधित चालक नशे में धुत था। हालांकि महानगरों और शहरों में नाके लगाकर शराब पीकर वाहन चलाने वालों की जांच की जाती है, लेकिन राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेस-वे पर ऐसी जांच बड़े पैमाने पर होती नजर नहीं आती। वहीं ऐसे चालकों की भी कमी नहीं है, जो मोबाइल फोन पर बात करते हुए वाहन चलाते हैं, जिससे लगातार दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। निश्चित रूप से फोन पर बातचीत करता व्यक्ति भावावेश में आ सकता है, जिससे वाहन चलाने की क्षमता प्रभावित होती है।

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