क्रांति-पुजारी अमर शहीद राजगुरु

अमर शहीद राजगुरु की आज जयंती है। वे राष्ट्र को गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति के निमित्त मातृभूमि की सेवा में अपने प्राण प्रसून अर्पित करने के लिए ही अवतरित हुए थे। उनका जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के खेड़ा गांव में हुआ था। उनके पिता श्री हरिनारायण मराठी देशस्थ ब्राह्मण थे। माता का नाम पार्वती देवी था। माता शिव भक्त थीं इसलिए अपने पुत्र का नाम शिवराम रख दिया। वस्तुत: राजगुरु उनका नाम नहीं अपितु उपाधि थी। छत्रपति शिवाजी महाराज के पौत्र शाहू जी महाराज एक बार भ्रमण करते हुए पुणे के पास चाकन गांव में पधारे थे। उस समय पंडित हरिनारायण के पिता संस्कृत के उद्भट विद्वान पं.कचेश्वर भी वहां आए हुए थे। साहू जी महाराज की पंडित जी से भेंट हुई, वह प्रसन्न हुए। पंडित जी की विद्वत्ता से मुग्ध होकर शाहू जी महाराज ने उनको गुरु मानकर उनसे आशीर्वाद लिया, इसके साथ ही उन्हें 'राजगुरुÓ की उपाधि से विभूषित किया। तब से पंडित जी के परिवार जनों को राजगुरु के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
जब शिवराम हरि राजगुरु की उम्र 6 वर्ष थी उसी समय पिता का देहांत हो गया। परिवार पर संकट आ पड़ने से वे खेड़ा छोड़कर बड़े भाई दिनकर राजगुरु के पास पुणे आ गए। बड़े भाई ने रहने पढ़ने की व्यवस्था कर दी। बाल्यावस्था से ही अंग्रेजी शासन के अत्याचार देखे। उनके बाल मन पर भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करने की भाव भूमि तैयार हो गई। पूना की राजनीतिक गर्माहट ने क्रांतिकारी विचारधाराओं से अवगत होने का अवसर दे दिया, जिससे उनके मन में क्रांति का बीजारोपण हो गया। पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था तो बड़े भाई ने अच्छी तरह से डांट दिया। घर छोड़ कर चल दिए,नासिक पहुंचे,धर्मशाला में रहे। वहां से झांसी कानपुर तथा वहां से काशी चले गए,जहां संस्कृत पढ़ी। हिंदू धर्म ग्रंथो का अध्ययन किया। संस्कृत व्याकरण ग्रंथ लघु सिद्धांत कौमुदी कंठस्थ कर ली। जीविकोपार्जन के लिए ड्रिल मास्टर की नौकरी की। काशी से नागपुर चले आए। मुनीश्वर अवस्थी की सहायता से राजगुरु संघ से जुड़ गए।1926 -27 में जब संघ नागपुर और आसपास तक ही पहुंचा था उसी काल में क्रांतिकारी राजगुरु नागपुर की भोंसले वेधशाला में पढ़ते समय स्वयं सेवक बने इसी समय सरदार भगत सिंह ने भी डॉ.हेडगेवार जी से भेंट की थी। पुन: कानपुर आ गए प्रताप के संपादक क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्रोत गणेश शंकर विद्यार्थी जी क्रांतिकारी विचारों को प्रसारित कर रहे थे। राजगुरु ने उनके विचार सुने मन, में हलचल मच गई। भेंट करने प्रताप के कार्यालय पहुंच गए। सरदार भगत सिंह से भेंट हुई उस समय बे 'बलवंतÓ के छद्म नाम से लेख लिखा करते थे। राजगुरु क्रांतिकारियों से जुड़ गए। राजगुरु अचूक निशानेबाज थे। एक बार शिव वर्मा के साथ एक गद्दार को मारने गए । उससे कहा मैं दस तक गिनती गिनूंगा तुझे भागना हो तो भाग जा। बरामनाथ भागा, दूर निकल गया, गिनती पूरी हुई, राजगुरु ने पिस्तौल से गोली छोड़ दी। खोपड़ी सर से उड़ गई।
वे बहुत ही संवेदनशील और न्याय प्रिय थे। किसी निर्दोष की हत्या या निरर्थक रक्तपात के विरोधी थे लेकिन कृतघ्नता और विश्वासघात को सहन नहीं कर पाते थे। हिंदुस्तान सोशल रिपब्लिक पार्टी के बैनर तले 'एमÓ छद्म नाम से गतिविधियों को अंजाम देते रहे। लाला लाजपत राय की मौत का बदला 17 दिसंबर 1928 को पुलिस उप कप्तान जान सांडर्स की हत्या करके लिया। बदला लेकर लाहौर से सुरक्षित आ गए थे तो डॉ.हेडगेवार जी ने राजगुरु को उमरेड में भैया जी दाणी (जो बाद में संघ के सर कार्यवाह हुए) के फार्म हाउस में छिपने की व्यवस्था की थी। क्रांतिकारियों पर अंग्रेज सरकार ने मुकदमे चलाए, सरदार भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में शाम को सात बजे 'इंकलाब जिन्दाबादÓ के घोष के साथ फांसी के फंदे को चूम कर मातृभूमि के प्रति लिए गए अपने संकल्प को पूर्ण कर दिया।राजगुरु के सम्मान में उनके जन्म स्थान खेड़ा का नाम राजगुरू नगर कर दिया गया है तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के एक महाविद्यालय का नाम शहीद राजगुरू कॉलेज अप्लाइड साइंसेज फॉर वूमेन किया गया है।
(लेखक महिला एवं बाल विकास विभाग में संयुक्त संचालक है)
