दूसरों को चोर-चोर कहकर खुद चक्रव्यूह में फंसे राहुल

दूसरों को चोर-चोर कहकर खुद चक्रव्यूह में फंसे राहुल
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प्रदीप सरदाना

गुजरात हाईकोर्ट के हालिया फैसले के बाद राहुल गांधी ही नहीं कांग्रेस की मुश्किलें भी काफी बढ़ गयी हैं। राहुल गांधी के 'मोदी सरनेमÓ वाले बयान पर निचली अदालत द्वारा दी गयी सज़ा पर, हाईकोर्ट द्वारा कोई राहत देने से साफ शब्दों में इंकार करने से, राहुल की मुश्किलें और भी बढ़ गयी हैं।

गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस हेमंत एम पृच्छक ने इस मामले में अपना निर्णय सुनाते हुए जो सख्त बात कही है,उससे अब आगे भी उन्हें राहत मिलने की संभावना कम हो जाती है। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा है कि राहुल गांधी को दोषी करार दिये जाने का निचली अदालत का फैसला उनके प्रति ना इंसाफ़ी नहीं है। वह फैसला पूरी तरह सही है। इस फैसले में अदालत की एक और बात तो राहुल के पक्ष को बेहद कमजोर कर देती है। हाईकोर्ट ने कहा है, राहुल गांधी पर मानहानि का जो मामला है वह अकस्मात टिप्पणी नहीं है। उनके खिलाफ ऐसे 10 और मामले चल रहे हैं। यहाँ तक वीर सावरकर के पौत्र ने भी राहुल गांधी पर मानहानि का एक और केस दर्ज किया है।

अदालत की यह टिप्पणी संकेत देती है कि राहुल गांधी का बार-बार अपशब्द कहकर लोगों की मानहानि करना एक आदत बन गयी है। यह एक नादानी या भूल से दिया हुआ बयान कतई नहीं है। यह एक गंभीर मामला है। राहुल ने 13 अप्रैल 2019 को बेंगलुरु से करीब 100 किमी दूर, कर्नाटक के कोलार क्षेत्र की एक चुनावी रैली में कहा था-'नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेन्द्र मोदी, इन सब चोरों के नाम मोदी मोदी मोदी कैसे हैं ? अभी थोड़ा और ढूँढेंगे तो और भी बहुत सारे मोदी निकलेंगे।Ó

इस बयान के बाद राहुल गांधी भाजपा के साथ देश के करोड़ों लोगों के निशाने पर आ गए। जबकि गुजरात से भाजपा विधायक और पेशे से वकील पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के इस बयान पर शिकायत दर्ज कराके, 6 मई को सूरत की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट में मानहानि याचिका दायर कर दी।

चार साल बाद इस न्यायालय ने राहुल गांधी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 499 और 500 (आपराधिक मानहानि) के अंतर्गत दोषी करार दिया। इस संबंध में अदालत ने 23 मार्च 2023 को अपने फैसले में राहुल गांधी को दो साल की जेल की सज़ा सुना दी। हालांकि तभी जमानत मिलने से वह जेल जाने से तो बच गए। लेकिन जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार किसी सांसद या विधायक को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है। इसी के साथ वह 6 साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य हो जाता है।

इस सजा के फैसले के बाद 24 मार्च को नियमानुसार लोकसभा से राहुल गांधी की वायनाड़ सीट से सदस्यता रद्द हो गयी। इसी के चलते राहुल को 22 अप्रैल को अपना सरकारी बंगला खाली करना पड़ा। अब यदि हाईकोर्ट निचली अदालत के फैसले पर रोक लगा देता तो राहुल 2024 का चुनाव लड़ सकते थे। लेकिन ऐसा हो ना सका। असल में इस मामले में राहुल जिस अदालत में भी गए हैं उन्हें हार मिली है। मेट्रोपोलिटन अदालत के बाद वह 20 अप्रैल को सूरत की सेशन कोर्ट गए। वहाँ भी उनकी याचिका तुरंत खारिज कर दी। इसके बाद वह 25 अप्रैल को गुजरात हाईकोर्ट पहुंचे तो मई में उन्हें अदालत ने अन्तरिम राहत देने से भी मना कर दिया। उसके बाद अब जो फैसला आया है वह भी उनके विरुद्ध गया। जबकि अपनी इस सज़ा से बचने और अपना पक्ष रखने के लिए राहुल गांधी को खुद भी तीन बार अदालत के सामने पेश होना पड़ा। लेकिन वह अदालत के सामने खुद को निर्दोष साबित नहीं कर पाये।

सर्वविदित है कि राहुल को उसी अपराध की सजा मिल रही है जो उन्होंने किया। लेकिन कांग्रेस और उनकी बहन प्रियंका वाड्रा इस फैसले का जमकर राजनीतिकरण में जुट गए हैं। प्रियंका ने दिनकर की कविता समरशेष का अंश सोशल मीडिया पर डालकर युद्ध शेष और राहुल को सत्य और निडर बताने का प्रयास किया है। कांग्रेस के अन्य कई नेता भी ऐसे दर्शा रहे हैं जैसे राहुल को यह सज़ा अदालत ने नहीं मोदी सरकार ने दी है। कांग्रेस मौन सत्याग्रह करके भी यह जताना चाह रही है जैसे यह सब मोदी करा रहे हैं। सही कहा जाये तो कांग्रेस यह सब करके देश की अदालतों और न्याय प्रतिष्ठा को ही कटघरे में खड़ा करके एक और अपराध कर रही है।

सवाल यह है कि जब इस मामले में ही देश की तीन अदालतें राहुल को दोषी मान चुकी हैं। लेकिन आप इसे मोदी का खेल बताने में लगे हैं तो क्या आप अब सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएंगे? क्योंकि जब आपको देश के संविधान पर भरोसा ही नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट जाकर अपनी गुहार क्यों लगा रहे हैं?

अब राहुल के पास इस मामले में राहत पाने का यह एक अंतिम द्वार बचा है। लेकिन यदि सुप्रीम कोर्ट ने भी राहुल की याचिका खारिज कर दी। या वहाँ भी उनको हाईकोर्ट और सूरत कोर्ट की तरह दोषी माना तो राहुल 2024 का लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे। साथ ही उनको दो साल के लिए जेल भी जाना होगा। ऐसी स्थिति में उसके बाद वह आगे 6 साल चुनाव भी नहीं लड़ सकेंगे। इससे कुल 8 साल तक राहुल को राजनीति से दूर रहना होगा।

8 साल तक राजनीति से दूर रहने का अर्थ

अब राहुल गांधी 53 साल के हो गए हैं। यदि उन्हें जेल की सज़ा के साथ 8 साल राजनीति से दूर रहना पड़ा तब तक वह 61 साल के हो जाएंगे। इससे वह 2024 का ही नहीं 2029 का लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ सकेंगे। इस हिसाब से वह 2031 के बाद कोई चुनाव लड़ने के लिए योग्य होंगे। जबकि उसके बाद अगला लोकसभा चुनाव 2034 में आएगा। तब राहुल की आयु 64 बरस हो जाएगी। लेकिन बात आयु की ही नहीं यह भी है कि जो कांग्रेस राहुल गांधी के कार्यकाल में शिखर से धरातल पर पहुँच चुकी है। तब तक कांग्रेस की क्या स्थिति होगी ? फिर एक पल के लिए मान भी लें कि कांग्रेस को किसी नए नेतृत्व से थोड़ी बहुत संजीवनी मिल भी गयी तब राहुल गांधी का कांग्रेस में क्या अस्तित्व रह जाएगा? इसकी कल्पना ही की जा सकती है।

राहुल अपने बड़बोलेपन, अत्यधिक उत्साह या अहंकार में बार-बार पीएम नरेन्द्र मोदी पर झूठे आरोप लगाकर उनकी मानहानि करते रहे, चोर-चोर बोलते रहे। राहुल ने कभी नहीं सोचा होगा कि ये मामला उनके लिए इतना बड़ा संकट बन जाएगा।

एक रिपोर्ट के अनुसार राहुल गांधी पर इस समय देश में 16 आपराधिक मामले चल रहे हैं। इनमें से 8 मामलों में वह जमानत पर हैं। जिनमें 7 मामले आपराधिक मानहानि के हैं इनमें तीन केस तो मोदी सरनेम पर हैं।

इससे कुछ पहले राहुल ने राफेल मामले में पीएम मोदी को 'चौकीदार चोर हैÓ का अभियान चलाया था। लेकिन बाद में इस पर राहुल गांधी ने माफी मांग ली तो इस मामले में वह कानूनी सजा से तो बच गए। लेकिन राहुल के 'चौकीदार चोर हैÓ के शोर में भी, मोदी 2019 में 2014 से अधिक लोकसभा सीटों से जीतकर फिर से शानदार ढंग से पीएम बन गए। तभी राहुल ने सभी मोदी को चोर कहना शुरू कर दिया। इससे राहुल ने मोदी समाज के साथ-साथ पूरे ओबीसी समाज की भी नाराजगी ले ली। साथ ही उनकी संसद सदस्यता भी चली गयी। फिर अपने इस चोर-चोर के कथन पर इस बार राहुल ने माफी भी नहीं मांगी। विदेश में जाकर भी राहुल गांधी जिस तरह अपने ही देश की बदनामी करते रहते हैं, उससे भी राहुल की छवि और भी धूमिल हो गयी है। अब उनके सिर पर जेल जाने के साथ कुल 8 बरस तक चुनाव न लड़ने का बड़ा खतरा मंडरा रहा है। इससे राहुल गांधी अपने ही बनाए चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस गए हैं। इससे उनका रहा सहा राजनैतिक जीवन गहन अंधेरे में जा सकता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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