महिला सुरक्षा पर उठते सवाल

पिछले दिनों मणिपुर, पश्चिम बंगाल और राजस्थान सहित देश के अलग अलग क्षेत्रों में महिलाओं के साथ हुई घटनाओं ने देश को व्यथित कर दिया है। वास्तव में यह सभ्य समाज के लिए बड़ी ही चिंता का विषय है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसकी कड़ी निंदा की है। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया है। बता दें कि हमारे देश में दिन प्रतिदिन महिलाओं के साथ भयावह हिंसा, सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले देखे जा रहे हैं। वहीं राजस्थान में रेप और गैंगरेप के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। पिछले दिनों कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान से भी जघन्य अपराध या यों कहे रेप कांड सामने आया, जिसने इंसानियत को शर्मसार करके रख दिया है। लिहाजा, आज सभ्य समाज को चिंतन करने की जरूरत है कि क्या समाज में महिलाएं सुरक्षित है?
मनुस्मृति के कथन पर विचार की जरूरत: उल्लेखनीय है कि राजस्थान लगातार साल दर साल दुष्कर्म के मामलों में नंबर एक पर बना हुआ है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, राजस्थान में वर्ष 2020 में 5310 मामले दर्ज हुये थे, जो देश में सबसे ज्यादा हैं। मालूम हो कि मनुस्मृति में कहा गया है-'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।Ó लगातार स्त्रियों के साथ हो रहे बलात्कार और उसके बाद उन्हें जला देने की घटनाओं ने मनुस्मृति के उक्त कथन पर विचार करने को मजबूर कर दिया है। दुनिया की आधी आबादी को अगर सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार नहीं दिया जा सकता तो फिर निश्चित तौर पर समाज की रक्षा भी नहीं की जा सकती। हमारे देश में आज भी अनेक मामले ऐसे हैं, जो न्यायालयों में दशकों तक न्याय की बाट जोहते पड़े हुए हैं। खासतौर पर यौन हिंसा से संबंधित मामलों पर त्वरित कार्यवाही की लगातार मांग किए जाने के बावजूद व्यावहारिक स्तर पर इनका जल्दी निपटान संभव नहीं हो पा रहा है।
महिलाओं के प्रति अपराध में सोशल मीडिया की भूमिका: एनसीआरबी की रिपोर्ट की ओर से जारी किए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 में देश में महिलाओं पर एसिड अटैक की कुल 126 घटनाएं सामने आई थी। इनमें से पचास घटनाएं पश्चिम बंगाल में घटी है। वहीं चालीस के आंकड़े के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा, नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट 2018 में इसका खुलासा हुआ था। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार एसिड अटैक के मामले में प. बंगाल शीर्ष स्थान पर तथा बलात्कार के मामले में 11वें स्थान पर है। नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि यौन हिंसा से जुड़े तमाम मामले लंबित पड़े हुए हैं, महिलाओं के प्रति हिंसा के लंबित मामलों का प्रतिशत 89.6 रहा है। न्याय तंत्र की इस विफलता के ही कारण महिलाओं के प्रति यौन अपराध में कमी नहीं आ रही है। साथ में आज इंटरनेट की अश्लीलता पर प्रतिबंध लगाने के लिए उचित कदम उठाने की भी जरूरत है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर महिलाओं के बारे में अभद्र टिप्पणी करना, लोगो को गालियां देना, उनका मखौल उड़ाना, ये सब आज सोशल मीडिया की वजह से आम हो गया है। आज लोगों के उत्पीड़न का अभिकरण सोशल मीडिया ही है, फिर वह चाहे बलात्कार की घटनाएं हो या फिर अवैध धन की मांग हो।
महिलाओं के प्रति सोच में बदलाव जरूरी: समाज और परिवार में महिलाओं की प्रतिभा को कम करके आंकना, उन्हें परिवार तक सीमित रखने का तर्क देना, उन्हें केवल शरीर के रूप में स्वीकारना, यह मानना कि उनमें निर्णय लेने की क्षमता का अभाव होता है, ऐसी तमाम बातें महिलाओं को अपनी अस्मिता को स्थापित करने से रोकते हैं। अत: अब केंद्र व राज्य सरकारों के साथ समाज पर यह जिम्मेदारी है कि वे इस प्रकार के सामाजिक मानसिकता और उससे उपजते अपराधों पर नियंत्रण के लिए सामाजिक और भौतिक ढांचे का विकास करें। दुनियाभर के समुदायों को बाल यौन उत्पीड़न की चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है, जो आज यह एक वैश्विक महामारी बन चुकी है, जिससे दस में से एक बच्चा प्रभावित होता है। यूके ने उत्पीडन के बाद अपराधियों से निपटने और पीडितों की सहायता के लिए कई प्रकार की सेवाओं की शुरूआत की है। भारत को भी कुछ इसी के तर्ज पर प्रयास करने की जरूरत है। साथ ही महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन को सुरक्षित बनाना होगा। नगरों में पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था भी जरुरी है और सीसीटीवी कैमरे भी लगाने होंगे। असुरक्षित क्षेत्रों में पुलिस पेट्रोलिंग बढ़ानी होगी। (लेखक स्तंभकार हैं)
