“पंचरवाले”: मुसलमानों की सामाजिक वास्तविकता पर आधारित एक यथार्थवादी दृष्टिकोण

शिराज कुरैशी: हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुसलमानों को लेकर दिया गया “पंचरवाले” वाला बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना है। विपक्ष जहां इसे सांप्रदायिक और अपमानजनक ठहरा रहा है, वहीं इस बयान के पीछे एक सामाजिक यथार्थ और तथ्यात्मक पृष्ठभूमि छिपी है जिसे समझना जरूरी है।
यह लेख इस कथन को समर्थन प्रदान करते हुए उन कारणों और परिस्थितियों का विश्लेषण करता है जो इस प्रकार की पहचान को जन्म देते हैं।
1. सामाजिक यथार्थ की तस्वीर:
प्रधानमंत्री का “पंचरवाले” कहना किसी जातिगत या धार्मिक घृणा से प्रेरित नहीं है, बल्कि यह उस सामाजिक और आर्थिक स्थिति की ओर इशारा करता है जहां भारत का एक बड़ा मुस्लिम तबका दशकों से विकास की मुख्यधारा से कटकर सीमित और परंपरागत रोज़गारों तक ही सीमित रह गया है।
सच्चर समिति रिपोर्ट (2006) और नसीमुद्दीन कमेटी रिपोर्ट से साफ होता है कि:
• मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग शहरी और ग्रामीण असंगठित क्षेत्रों में छोटे-मोटे धंधों जैसे मोटर मरम्मत, पंचर बनाना, दर्जीगीरी, कढ़ाई आदि में लगा हुआ है।
• इनमें से अधिकांश पेशे सम्मानजनक और मेहनतकश हैं, परंतु ये पेशे आर्थिक रूप से स्थिर नहीं होते।
2. समस्या का मूल कारण – पिछली सरकारों की नीतियाँ:
प्रधानमंत्री के बयान का मकसद किसी विशेष समुदाय को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि यह दर्शाना है कि दशकों तक चली तथाकथित “सेक्युलर” राजनीति ने मुस्लिम समुदाय को केवल वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल किया और उन्हें शिक्षा, आधुनिक कौशल और मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था से दूर रखा।
• शिक्षा: केवल 2.3% मुस्लिम उच्च शिक्षा में हैं।
• नौकरी: सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों की भागीदारी 5% से भी कम है।
• बैंक ऋण और उद्यमिता: मुस्लिमों को बैंक से ऋण मिलने की दर बहुत कम है, जिससे वे स्वरोज़गार या व्यवसाय में भी पिछड़ते हैं।
3. पंचरवाला क्यों प्रतीक बना?
प्रधानमंत्री का कथन एक “प्रतीकात्मक व्याख्या” है – जिसमें “पंचरवाला” केवल एक काम नहीं, बल्कि उस पूरे तंत्र की विफलता का प्रतिनिधित्व करता है जिसने मुस्लिम समाज को आगे नहीं बढ़ने दिया।
• यह एक जागृति का आह्वान है – कि अब समय है मुस्लिम समाज को अपनी पहचान पंचर से आगे बढ़ाकर डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और स्किल इंडिया से जोड़ने का।
• वे मुस्लिम जो आज भी मेहनत से गुज़र-बसर कर रहे हैं, उन्हें अब सिर्फ गुजारे भर की नहीं, गौरवपूर्ण आजीविका की ज़रूरत है।
4. मुसलमानों के लिए प्रधानमंत्री की योजनाएं:
मोदी सरकार ने मुस्लिम समुदाय को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं:
• नई मंज़िल योजना: अल्पसंख्यक युवाओं को कौशल और शिक्षा के साथ रोज़गार दिलाने हेतु।
• प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम (PMJVK): मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाएं, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का विकास।
• स्टार्टअप इंडिया में मुस्लिम युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा।
5. मुस्लिमों की अगली पीढ़ी को प्रेरणा की जरूरत:
• प्रधानमंत्री ने जब यह बात कही, तो उसका गूढ़ आशय था कि मुस्लिम समुदाय को उस स्थिति से ऊपर उठना होगा जिसे राजनीति ने उसके लिए “नॉर्मल” बना दिया है।
• पंचर जोड़ने में कोई बुराई नहीं, परंतु यदि वही अंतिम मंज़िल बन जाए, तो यह समाज के लिए चेतावनी है।
प्रधानमंत्री द्वारा “पंचरवाले” शब्द का प्रयोग किसी विशेष धर्म को नीचा दिखाने के लिए नहीं, बल्कि उन दशकों की नीतियों पर कटाक्ष है जिनके कारण मुसलमान सीमित अवसरों तक ही सिमट गए। यह बयान उस यथार्थ का आइना है जिसे नकारना केवल सच्चाई से भागना है। अब समय है कि मुस्लिम समाज इस प्रतीक से बाहर निकलकर आधुनिक भारत का सक्रिय और प्रगतिशील भाग बने।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुसलमानों को “पंचरवाले” कहे जाने पर मचा विवाद, केवल एक शब्द को लेकर पैदा हुआ हंगामा है। असल में यह बयान भारतीय मुसलमानों की उस मेहनतकश, जुझारू और संघर्षशील छवि को उजागर करता है जिसे इस्लाम में सम्मान की दृष्टि से देखा गया है।
इस्लाम में मेहनत और हुनर का दर्जा:
क़ुरआन शरीफ़:
“और यह कि इंसान को वही मिलेगा, जिसकी उसने कोशिश की।”
– (सूरह अन-नज्म, 53:39)
यह आयत स्पष्ट करती है कि इस्लाम में मेहनत करने वाले को उसका हक़ मिलता है और अल्लाह के यहां उसकी कोशिशें ज़ाया नहीं जातीं।
• “जो लोग ईमान लाए और अच्छे अमल किए, उनके लिए बेहतरीन बदला है।”
– (सूरह अल-कहफ़, 18:30)
इसका मतलब यह है कि अमल, चाहे वह मजदूरी हो, कारीगरी हो या व्यवसाय—इस्लाम उसे सम्मान देता है।
हदीस शरीफ़:
• रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“किसी ने अपने हाथ की कमाई से जो खाया, वह सबसे अच्छा खाना है।”
– (सहीह बुखारी, हदीस 2072)
• एक और हदीस में है:
“मेहनतकश व्यक्ति अल्लाह का दोस्त होता है।”
– (अल-जामिअ अस-सगीर)
यह हदीसें यह बताती हैं कि मोटर सुधारने वाला, पंचर बनाने वाला, बढ़ई, दर्जी, लोहार—all are noble professions in Islam.
भारतीय इतिहास में मेहनतकश मुस्लिम वर्ग का योगदान:
मुगल काल से लेकर आज़ादी तक:
• कारखानों में काम करने वाले मुस्लिम कारीगर– बुनकर, लकड़ी का काम, धातुशिल्प, कांच, मीनाकारी आदि में भारत को विश्व में पहचान दिलाने वाले कारीगर अधिकतर मुसलमान थे।
• हिन्दुस्तान की कशीदाकारी, चिकनकारी (लखनऊ), दरजीगीरी, हथकरघा उद्योग—इन सबमें मुस्लिम मेहनतकशों की पीढ़ियों का योगदान रहा है।
• 1857 की क्रांति में भाग लेने वाले बहुत से मुस्लिम सैनिक, लोहार, कुम्हार, कारीगर वर्ग से थे—जिन्हें बाद में अंग्रेजों ने बेरोजगार और बेज़मीन बना दिया।
स्वतंत्र भारत में:
• मुस्लिम समुदाय ने माइक्रो-उद्योग (छोटे कारखाने, पंचर बनाना, लोहे-लकड़ी का काम, आदि) में सबसे अधिक संख्या में भाग लिया।
• बरेली, मुरादाबाद, मेरठ, हैदराबाद, मुंबई, कोलकाता जैसे शहरों में मुस्लिम मज़दूर और कारीगरों ने शहरी अर्थव्यवस्था को खड़ा किया।
प्रधानमंत्री के बयान का वास्तविक अर्थ – मेहनतकश को सम्मान देना
• “पंचरवाले” कहना किसी को तिरस्कार की दृष्टि से नहीं, बल्कि यह दिखाता है कि आज का मुसलमान संघर्ष करता है, हार नहीं मानता, और अपने हुनर से पेट पालता है।
• यह कथन यथार्थवादी है—क्योंकि सच्चर समिति और नेशनल सैंपल सर्वे जैसी सरकारी रिपोर्टें बताती हैं कि अधिकांश शहरी मुस्लिम असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं।
क्या पंचरवाले होना शर्म की बात है? इस्लामी नज़रिया क्या कहता है?
कभी नहीं।
• एक हदीस के मुताबिक, जब सहाबा ने देखा कि एक व्यक्ति के हाथ सख्त हो चुके हैं मेहनत से, तो रसूलुल्लाह (स.अ.) ने कहा:
“यह वो हाथ हैं जिन्हें जहन्नम की आग नहीं छू सकती।”
– (मिश्कात अल-मसाबिह)
प्रधानमंत्री की योजनाएं – मेहनतकश मुसलमानों के लिए:
• स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया, मुद्रा योजना– इनमें मुसलमानों की भागीदारी बढ़ाने के लिए विशेष योजनाएं बनाई गईं हैं।
• नई मंज़िल योजना: मदरसों से पढ़कर निकले छात्रों को आधुनिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण देना।
• PMJVK (प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम): मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य के अवसर बढ़ाना।
“पंचरवाले” शब्द को अपमान के रूप में नहीं, सम्मान और आत्मनिर्भरता के प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए। इस्लाम खुद मेहनत करने वाले को ऊँचा दर्जा देता है। प्रधानमंत्री का यह कथन उस वास्तविकता को उजागर करता है जिसे दशकों से राजनीतिक पार्टियाँ छुपाती रहीं—कि मुसलमानों को केवल वोटबैंक बना कर रखा गया, उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक बनने की राह नहीं दी गई।
अब समय है कि मुस्लिम समाज अपने मेहनतकश पहचान को गर्व से स्वीकार करे, और पंचर से लेकर राष्टनिर्माण तक का सफर तय करे—जिसे मोदी सरकार रास्ता दे रही है।