पर्यावरण संरक्षण दायित्वबोध से ही संभव

प्रो. अखिलेश शुक्ल
पर्यावरण के संरक्षण करने के लिए हर साल 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की थीम के अंतर्गत पूरे विश्व में प्लास्टिक प्रदूषण के बढ़ते संकट को हल करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला जा रहा है ताकी दुनियां को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाने के लिए कार्य तेजी से हो सकें। इस वर्ष 2023 में कोटे डी आइवर नीदरलैंड के साथ साझेदारी कर विश्व पर्यावरण दिवस 2023 के कार्यक्रमों की मेजबानी कर रहा हैं। जहां प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान के विषय में दुनिया भर के लोगों को जागरूक करने तथा प्लास्टिक प्रदूषण के संकट से निपटने पर जोर दिया जायेगा। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए बहुत से कारण जिम्मेदार हैं, जिनमें प्लास्टिक एक बहुत बड़ा खतरा बनकर उभरा है। दिन की शुरूआत से लेकर रात में बिस्तर में जाने तक अगर ध्यान से गौर किया जाए तो आप पाएंगे कि प्लास्टिक ने किसी न किसी रूप में आपके हर पल पर कब्जा कर रखा है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि हम पॉलीथीन या प्लास्टिक के युग में रह रहे हैं। आधुनिक समाज में प्लास्टिक मानव.शत्रु के रूप में उभर रहा है। समाज में फैले आतंकवाद से तो छुटकारा पाया जा सकता है, किंतु प्लास्टिक से छुटकारा पाना अत्यंत कठिन है, क्योंकि आज यह हमारे दैनिक उपयोग की वस्तु बन गया है। हर कोई जानबूझकर पॉलीथीन की दुष्प्रभावों से अनजान हो जाता है जो कि एक प्रकार का जहर है जो अंतत: पर्यावरण को नष्ट कर देगा।
अगर हम भविष्य में प्लास्टिक से छुटकारा चाहते हैं तो इससे पहले कि बहुत देर हो जाए तब तक पूरा वातावरण दूषित हो जाएगा। तो यह सही है जब हमें समय कदम उठाना होगा। प्लास्टिक जब उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है तो यह अन्य कचरों की तरह आसानी के नष्ट नहीं होता। एक लंबे समय तक अपघटित न होने के कारण यह लगातार एकत्रित होता जाता है और अनेक समस्याओं को जन्म देता है। जिन देशों में जितना अधिक प्लास्टिक का उपयोग होता है, वहां समस्या उतनी ही जटिल है। चिंता की बात तो यह है कि प्लास्टिक का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। प्लास्टिक से उत्पन्न कचरा पानी के स्त्रोतो जैसे कि नदियो, समुद्र तथा महासागरों में मिल जाता है और इन्हे बुरे तरीके से प्रभावित करता है। यही पानी हमारे उपयोग के लिये हम तक पहुंचाया जाता है, इससे कोई भी फर्क नही पड़ता कि हम इन्हे कितना भी छाने यह उपने वास्तविक अवस्था में कभी वापस नही आ सकता और इस पानी के उपयोग से हमारे स्वास्थ्य पर भी नकरात्मक प्रभाव पड़ता है।
हम विशेष और गंभीर मुद्दों को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाते हैं और अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने का उद्देश्य यह होता है कि हम लोगों को इस संबंध में जागरूक कर सकें और मानवता को ज्यादा मजबूत कर सके। पर्यावरण का तात्पर्य उन सबसे है जो हमारे चारो तरफ हैं जैसे प्राणी, पौधे, जल, वायु, मिट्टी आदि। जल, वायु और मिट्टी पर्यावरण के प्रमुख अंग हैं। विचार करने पर हम यह पाते हैं कि पर्यावरण शब्द प्राणियों की अन्त: क्रियाओं को प्रभावित करने वाली समस्त भौतिक एवं प्राणीय परिस्थितियों का योग है। इसे हम जीव मंडल, स्थल मंडल, वायु मंडल तथा जल मंडल का योग भी कह सकते हैं। इस तरह सरल शब्दों में चारो ओर के आवरण के भीतर जो भी है, पर्यावरण है। पर्यावरण सृष्टि का आधार है। अनादिकाल से पर्यावरण सम्पूर्ण प्राणी जगत को जीवन देता आया है। भविष्य का जीवन भी पर्यावरण पर ही निर्भर करता है। व्यक्ति का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह प्रकृति तथा पर्यावरण के साथ कितना तालमेल बैठाता है। विकास की अधाधुंध दौड़ से हमारा पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। वास्तव में आवश्यकता इस बात की है कि हमारे विकास की दिशा कुछ ऐसी हो जो हमारी संस्कृति और पर्यावरण के अनुकूल हो। पर्यावरण संरक्षण का कार्य तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक यह आम लोगों का आन्दोलन न बन जाये। नाटक, लेख, चलचित्र, सेमीनार, वर्कशाप, गोष्ठियां, स्वयं सेवी संस्थाएं आदि इसके संवाहक हो सकते हैं। विगत वर्षों में न्यायपालिका ने भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिये हैं। किन्तु जब तक व्यक्ति निजी स्वार्थ के लिए प्रकृति प्रदत्त संतुलन के साथ छेड़.छाड़ करना नहीं छोड़ता, तब तक हम पर्यावरण संरक्षण नहीं कर सकते हैं। मानव और पर्यावरण का अटूट संबंध है। पर्यावरण है तो मानव का अस्तित्व है किन्तु व्यक्ति अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए जल, वायु, जमीनी प्रदूषण आदि को बढ़ाता जा रहा है। व्यक्ति को पर्यावरण का ध्यान रखकर ही विकास करना होगा वरना विनाश सुनिश्चित है। भारत में पर्यावरण संतुलन की शिक्षा वैदिक काल से ही घर-घर में दी जाती रही है। भूमि को माता और व्यक्ति को उसके पुत्र की संज्ञा प्रदान की गई है। भारतीय संस्कृति में वनों एवं वृक्षों को अत्यधिक प्रदान किया गया है। वृक्षों की रक्षा को लोकाचार्य, धर्म तथा कर्तव्यों से जोड़ा गया। यज्ञ, हवन को अनिवार्य धार्मिक संस्कार निरूपित करके पर्यावरण को सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया। इस तरह भारतीय संस्कृति जितनी पर्यावरण के प्रति सचेत रही है शायद कोई दूसरी संस्कृति नहीं रही। वेदों में कहा गया है कि एक पेड़ काटना यानी दस पुत्रों की हत्या करना है। वृक्ष की महत्ता का वर्णन करते हुए वेद में उद्घोषित किया गया कि दस कुंओं के बराबर एक बावड़ी, दस बावड़ी के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर के पुत्र और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष। किन्तु पिछले दशकों में जलवायु चक्र में हो रहा असमय परिवर्तन हम सबको दिखाई दे रहा है। वास्तव में पर्यावरण प्रदूषण के लिए विश्व में विकसित देश सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। किन्तु अपने प्रभाव के कारण पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी ये हमेशा विकासशील देशों पर डालते आये हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम सब मिलजुलकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम उठायें। इस सफर में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी-अपनी भूमिका है। जिसे उसे ईमानदारी पूर्वक निभाना चाहिए। अंधेरे में बैठने से यह अच्छा है कि हम एक दीपक को जलाकर अंधेरे को कम करने का प्रयास करें। आज हम बात तो करते हैं किन्तु यथार्थ रूप में उसे परिणित करने के लिए एक कदम भी नहीं उठाते हैं। हम पर्यावरण के प्रति चिन्तातुर तो हैं लेकिन शायद अपने कर्तव्य बोध को जगाकर कुछ वास्तविक प्रयास नहीं करते हैं। पर्यावरण संरक्षण का आन्दोलन प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर से प्रारम्भ करना होगा नहीं एक दिन ऐसा आयेगा जब व्यक्ति कांक्रीट के जंगलों में निवास करता हुआ, पराबैगनी किरणों से बचने के लिए रसायन युक्त कपड़ों को पहनकर, पीठ पर आक्सीजन का सिलेण्डर लादे, नाक में गैस मास्क लगाये और कान में ध्वनि अवरोधक यंत्र लगाये हुए चलेगा। ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ ग्लोबल कूलिंग का खतरा भी मानव जगत के समक्ष है। (लेखक वरिष्ठ शिक्षाविद् हैं)
