अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष बनाम सरकार

अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष बनाम सरकार
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लोकसभा में तीन दिनों तक चले अविश्वास प्रस्ताव पर बहस ने आगामी 2024 लोकसभा चुनाव तक की राजनीतिक ध्वनियों की दिशा तय कर दी है। राजनीति में सामान्य रुचि रखने वालों में से भी शायद ही कोई हो जिसने अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा अवसर मिलने पर लाइव न देखी या सुनी हो। पार्टियों और नेताओं के लिए यह केवल एक-दूसरे को घेरने, उत्तर देने, व्यंग्य और कटाक्ष करने का ही अवसर नहीं होता, बल्कि नेताओं -कार्यकर्ताओं -समर्थकों को बोलने व तर्क करने के लिए विषय-वस्तु, शब्दावलियां भी प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती है। कम से कम भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने बोलते समय इस पहलू का अवश्य ध्यान रखा। बावजूद यह संभवत: पहला अविश्वास प्रस्ताव था जिसमें सरकार की ओर से बोलने वालों को विपक्ष के तथ्यों, तर्कों व आरोप की काट के लिए शोध या छानबीन कर विषयवस्तु लाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। विपक्ष चाहे जितनी अपनी वाहवाही करे कि उसने प्रधानमंत्री को बोलने के लिए विवश कर दिया, सच यह है कि उनकी तैयारी ऐसी नहीं थी जिससे सरकार को घेरा जा सके। विपक्ष के नेताओं का एक भी भाषण नहीं जिसे सुनने के बाद लगे कि सरकार के लिए इसका उत्तर देना कठिन या असंभव होगा या वह निरुत्तर हो जाएंगे। आप आरोप लगाएं, हमले करें और उनमें अधिकृत तथ्य नहीं हो तो संसद की बहस में उसके मायने नहीं होते। सच कहा जाए तो सरकार की ओर से विशेषकर गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण या प्रधानमंत्री तक ने अपनी ओर से ही संबंधित विषय रखे ताकि वह सब संसद के रिकॉर्ड में आ जाए और रुचि रखने वालों को उपलब्ध हो।

आईएनडीआईए के गठन के बाद 26 दलों के संगठित विपक्षी समूह के लिए यह नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल का सबसे बड़ा अवसर था जिसमें वह स्वयं की क्षमता प्रमाणित कर सकते थे। वे साबित कर सकते थे कि हमारे पास इतनी योग्यता है जिससे हम सरकार को उन्हीं के तथ्यों और तर्कों से कटघरे में खड़ा कर सकते हैं, देश के भविष्य को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समानांतर हर विषय पर हमारे पास ऐसी रूपरेखा और सोच के साथ व्यक्तित्व भी हैं जो बेहतर सरकार चला सकते हैं। क्या कोई स्वीकार करेगा कि आईएनडीआईए इन कसौटियों पर स्वयं को खरा उतारने में सफल हो सका? कांग्रेस की ओर से तरुण गोगोई ने अवश्य अपने भाषण में विषयवस्तु रखी, लेकिन वह इतनी प्रभावी नहीं थी जिनसे सरकार को उत्तर देने में कठिनाइयां पैदा हो। राहुल गांधी जब दूसरे दिन बोलने के लिए खड़े हुए तो सोचा गया कि भारत जोड़ो यात्रा तथा सजा के कारण चार महीने से ज्यादा समय तक लोकसभा सदस्यता से वंचित रहने के बाद उनके भाषण में अवश्य तथ्यों के साथ कटाक्ष एवं आक्रमण होंगे।

आखिर आईएनडीआईए की सबसे बड़ी पार्टी के शीर्ष सक्रिय नेता होने के कारण संसद में आगे बढ़कर अपने वक्तव्य से उन्हें ही नेतृत्व संभालना था। जब आप 37 मिनट के भाषण में 15 मिनट से ज्यादा भारतयात्रा पर बोलेंगे और शेष सरकार को देशद्रोही से लेकर भारत माता की हत्या करने वाले बाबा बताने में ही समय लगा देंगे तो आपके पास मणिपुर से लेकर आर्थिक, सांस्कृतिक, रक्षा, विदेश नीति, आंतरिक सुरक्षा आदि पर बोलने के लिए समय कहां रहेगा। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी का वक्ताओं में नाम भी नहीं था। ऐसा लगता है जब गृह मंत्री अमित शाह ने तंज कसा तो नाम शामिल किया गया। ऐसा लगा जैसे वे प्रधानमंत्री के लिए अपमानजनक, अशोभनीय शब्दों और तुलनाओं की पोटली लेकर उपस्थित हुए हो। परिणामत: भाजपा के सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त से उनकी भिड़ंत होते-होते बची। वीरेंद्र सिंह ने सदन में अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांग ली पर अधीर रंजन इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्हें न केवल निलंबन झेलना पड़ा बल्कि मामला विशेषाधिकार समिति के पास चला गया है।

सरकार की ओर दृष्टि डालिए तो दो भाषणों पर सबसे ज्यादा ध्यान था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह। संसद के अंदर गृह मंत्री अमित शाह ने अभी तक के भाषणों से योग्यता और क्षमता को बार-बार प्रमाणित किया है। भाजपा के विरोधी टिप्पणीकार भी कह रहे हैं कि उनका भाषण सबसे प्रभावी था क्योंकि उसमें हर उन पहलुओं से संबंधित तथ्यात्मक विवरण और तर्क थे, हर ऐसे प्रश्न के उत्तर थे जो विरोधी लगातार उठाते। इसके साथ उन्होंने अपनी ओर से और ऐसी बातें रख दीं जिनसे सरकार का पक्ष मजबूत होता हो और भाजपा के नेताओं - कार्यकर्ताओं को तो बोलने के लिए विषय वस्तु मिलते ही हो देश के आम लोगों को भी लगे लगे कि वाकई सरकार ने हर स्तर पर काम किया है और आगे भी कर रही है। मणिपुर पर उन्होंने करीब आधा घंटा बोला जिसमें उत्तर-पूर्व की कुछ और कुछ बातें भी थीं। वे अपने भाषण से यह संदेश देने में सफल रहे कि विपक्ष के सारे आरोप निराधार व राजनीति से प्रेरित हैं। मणिपुर में हिंसा भड़कने के 24 घंटे के अंदर ही सरकार ने वे सारे कदम उठाए और अभी भी सक्रिय है ताकि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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