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मार्क्सवादी एकेडेमिक्स से मुक्त होती विपक्षी राजनीति

आदित्य कुमार गिरि

मार्क्सवादी एकेडेमिक्स से मुक्त होती विपक्षी राजनीति
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वेबडेस्क। एक लंबी झिझक के बाद अब जाकर कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक लाइन पकड़ ली है। कांग्रेस के नीति निर्धारकों ने यह समझ लिया है कि भाजपा को हराने के लिए मार्क्सवादी एकेडेमिक्स के मुहावरों में नहीं बढ़ा जा सकता। उसकी लगातार हार की यही वज़ह है कि वह भाजपा की मूल ताकत को समझ नहीं पा रही थी।अब उसने समझ लिया है कि पेट्रोल कितना भी महंगा हो जाए तब भी भाजपा रहेगी क्योंकि लोग फ़िलहाल महंगाई के सम्बन्ध में सोच भी नहीं रहे। वे अपनी सांस्कृतिक अस्मिता को लेकर सचेत हुए हैं। ऐसे में कांग्रेस सहित विपक्ष के सारे नारे बेकार साबित हो रहे हैं।

विपक्ष के पास कोई विज़न नहीं, इसलिए नहीं क्योंकि उन्हें विषय नहीं सूझ रहा बल्कि इसलिए क्योंकि भाजपा ने इतना मज़बूत ट्रेंड सेट किया है कि उसके विपरीत कोई विचार काम ही नहीं आ रहा है। इसलिए ही तो कभी वैक्सीन को भाजपा का बताया जा रहा, कभी फ्री वैक्सीन को छल बताया जा रहा, कभी एम्स के उद्घाटन से कुछ नहीं होता कहकर, कभी सौ करोड़ वैक्सिनेशन का दावा ग़लत है, कहकर भाजपा के खिलाफ़ माहौल बनाने की कोशिश हो रही है।असल में यह सारे छिटपुट प्रयत्न भाजपा को कैसे श्रीहीन किया जाए कि प्रयास में किये जा रहे हैं।

यह सारा प्रयास पुराने प्रगतिशील लाइन पर हो रहे हैं। लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा कि लोगों ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया है। अब लोग आगे की ओर देख रहे हैं। उन्हीं पुरानी बातों और शब्दावलियों में राजनीतिक कॉउंटेरिज़्म असफल रह रहा है।आज से बीस-बाइस साल पहले पुरुषोत्तम अग्रवाल ने एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने प्रगतिशील लोगों को टोका था कि वे हिन्दू जनता की सांस्कृतिक ज़रूरतों को दरकिनार कर रहे हैं। यह बड़ी भूल है, इसी का खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है। वे कह रहे थे कि हमारे मित्र कहते हैं कि मंदिर चाहिए या रोटी-इस प्रश्न में वे हिन्दू जनता की सांस्कृतिक भूमिका को इग्नोर कर रहे हैं। क्या कोई जाति ऐसी होगी जो रोटी के लिए अपनी सांस्कृतिक महत्ता को छोड़ दे।

मुझे लगता है यह सबसे ज़रूरी बात है जिस बात को अग्रवाल सरीखे लोगों ने बरसों पहले समझ लिया था उसे कांग्रेस सहित विपक्ष के लोग अबतक नहीं समझ सके हैं। विपक्ष खाली मैदान में तलवार भांज रहा है और उधर नरेंद्र मोदी अजेय बने बैठे हैं।इधर कांग्रेस को यह समझ आ गया है कि हिन्दू वोटर्स बगैर बेड़ा पार नहीं लगेगा इसलिए अब हिंदूवाद और हिंदुत्त्व के मुहावरे के ज़रिए कांग्रेस हिन्दू कार्ड खेलने का सोच चुकी है। यूपी के दलित माथे पर साफा बांधे जयश्रीराम कहने में पीछे नही । मायावती और दलित विचारक इतने असहाय हो गए हैं कि जिन्हें हिंदुओं से अलग करना था वे ख़ुद हिन्दू-हिन्दू करने लगे हैं।

उधर लालू परिवार अम्बेडकर की राम कृष्ण विरोधी शपथ के विपरीत मज़े की पूजापाठ करता है। यानी मार्क्सवादी एकेडेमिक्स का जाति विमर्श इनदिनों कमज़ोर हो गया है और हिन्दू अस्मिता मज़बूत हुई है। अम्बेडकर की विचारधारा हिंदूवाद में भी विश्वास नहीं रखती थी। वे तो दलितों के लिए जिन सिद्धांतों को शपथों के माध्यम से कह गए थे, वे आज सबसे अधिक कमज़ोर हैं क्योंकि ओबीसी जातियां उनकी बातों से सहमत नहीं। मायावती मंदिर नहीं जातीं, के ऑयर नारायणन मंदिर नहीं जाते थे लेकिन मुलायम लालू परिवार तो एकदम भक्त ही है।

कांग्रेस अब ख़ुद को हिंदूवादी सिद्ध करना चाहती है और भाजपा के हिंदूवाद(हिंदुत्त्व) से ख़ुद को अलगाकर हिन्दू वोटर्स में पैठ बनाना चाहती है। राहुल गांधी की आज की रैली इसी आधार पर फ्रेम्ड है यानी कांग्रेस को समझ आ गया है कि हिन्दू जनता की उपेक्षा की कीमत पर सत्ता नहीं मिलेगी। असल में हिंदूवाद और हिंदुत्त्व के मध्य विभेदक रेखा सबसे पहले रोमिला थापर ने खींची थी। पुरुषोत्तम अग्रवाल आदि बाद में इससे जुड़े। वैसे देखा जाए तो इसकी नींव ही सावरकर ने रखी थी लेकिन कांग्रेस के लिए इसका मेनिफेस्टो रोमिला थापर का ऋणी रहेगा। भारत के विविधतावादी फेब्रिक्स को बचाने के लिए बनाया गया तर्क। हालांकि दलित विचारसरणी इस तरह के विभाजक रेखा को नहीं मानती। वह हर तरह के हिंदूवाद से दूरी रखना चाहती है।

वैसे फ़िलहाल जिनलोगों को भी लगता है कि वे हिंदूवाद और हिंदुत्त्व की विभाजक रेखा खींचकर भाजपा को कमज़ोर कर देंगे वे अब भी भुलावे में हैं। राहुल को लेकर ममता बनर्जी ने एकदम ठीक कहा है। नरेंद्र मोदी के मज़बूत नैरेटिव का उत्तर राहुल गांधी जैसे पार्ट टाइमर्स के पास नहीं है। विषय अच्छा है, कोशिश भी अच्छी है लेकिन राहुल से न हो पाएगा, यह भी सच है। मोदी का इतना बड़ा आख्यान है कि उसका कांउटर गिलहरी प्रयासों से नहीं होगा। राहुल फिर गिरेंगे।

अगर आप इन दिनों नरेंद्र मोदी को यूपी में सुन रहे होंगे तो जानते होंगे कि वे बहुत बहुत तैयारी से राजनीति में आये हैं। किसानों के मुद्दे पर माफी मांगकर भी वे अडिग हैं। समय के साथ बदलना, अकड़ छोड़ना और सहजता स फिर राजनीति करने लग जाना यह सब अभी और किसी नेता में नहीं दिख रहा। हिंदुत्त्ववादी इतने मज़बूत इससे पहले कभी नहीं थे, वे भयंकर तैयारी और समझ से आये हैं। वाजपेयी के पराभव से उन्होंने बहुत सीखा है जबकि कांग्रेस जनता को ग्रांटेड ले रही है।कांग्रेस के 'मूव' को ओवैसी लगातार चोट पहुंचा रहे हैं। बीजेपी को अब बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ रही, कांग्रेस को जीतना है तो मेटा नैरेटिव बनाना होगा, राहुल के पास थोड़ी भी योग्यता नहीं है।

( लेखक बंगाल में हिंदी के प्राध्यापक है )

Updated : 17 Dec 2021 7:33 AM GMT
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