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जीवंत लोकतंत्र पर कुठाराघात कर रहा विपक्ष

opposition is furious on lively democracy

जीवंत लोकतंत्र पर कुठाराघात कर रहा विपक्ष
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आदर्श तिवारी

जबसे नए संसद भवन की परिकल्पना नरेंद्र मोदी सरकार ने की है उसी समय से विपक्षी दलों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था, तमाम राजनीतिक विरोधों के बावजूद सरकार ने आकांक्षी भारत के नए आधुनिक संसद भवन की नींव रखी और तय समय में उसका कार्य भी पूर्ण हो चुका है। नए संसद भवन के उद्घाटन की तारीख जैसे ही करीब आई देश का सियासी पारा यकायक हाई हो गया है। एक तरफ जहां सरकार इसके उद्घाटन को भव्य बनाने की तैयारी में जुटी हुई है, वहीं विपक्ष के 19 दलों के इस आयोजन का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। भारत की नई संसद विकसित, स्वावलंबी और आत्मनिर्भर भारत का ऐतिहासिक प्रतीक चिन्ह है। ऐसे भारत का स्वप्न महात्मा गांधी , पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे हमारे मनीषियों ने देखा था। आज जब हम उस मुहाने पर खड़े हैं, ऐसे में विपक्ष द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन के बहिष्कार का रवैया ना केवल भारतीय लोकतांत्रित मर्यादा का उल्लंघन है बल्कि विपक्ष की लोकतांत्रित आस्था पर भी गहरे प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। देश के लिए यह अवसर बहुमूल्य है, भारतीय लोकतान्त्रिक परंपरा के समृद्ध और उसकी जड़ों में नई ऊर्जा का स्पंदन करने वाला है। विपक्ष ने नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार को लेकर सामूहिक पत्र जारी करते हुए जो सवाल उठाए हैं, उससे उनकी मानसिकता का पता चलता है। उस पत्र में कहा गया है कि प्रधानमंत्री का नए संसद भवन का उद्घाटन करना संवैधानिक नहीं है तथा इसे राष्ट्रपति का अपमान बतया है। विपक्ष ने इस पूरे विरोध की पटकथा को बहुत नाटकीय तरीके से शुरू किया था। पहले उन्होंने सवाल उठाया कि राष्ट्रपति के हाथों नए संसद भवन का उद्घाटन क्यों नहीं? उसके बाद ये विरोध दलित, आदिवासी और लोकतंत्र विरोधी भाजपा के नारों पर आकर सिमट गया है। उल्लेखनीय यह है कि जब भाजपा इतिहास में पहली बार किसी एक आदिवासी समाज से आने वाली महिला को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने का निर्णय लिया और गैर एनडीए राजनीतिक दलों का भी समर्थन मांगा था, लेकिन जिन दलों को आज याद आ रहा कि द्रौपती मुर्मू आदवासी हैं एवं यह आरोप लगा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार उनका अपमान कर रही है। उस समय इन राजनीतिक दलों को उनके सम्मान की चिंता नहीं हुई थी। यह जानते हुए भी कि द्रौपती मुर्मू आराम से राष्ट्रपति चुनाव जीतकर राष्ट्रपति भवन पहुंचने वाली हैं, बावजूद इसके उनके खिलाफ प्रत्याशी उतारा गया। एक आदिवासी समाज की महिला कैसे भी राष्ट्रपति ना बनें उसे रोकने के लिए इन विपक्षी दलों ने एड़ी चोटी का बल लगा दिया था। क्या तब आदिवासी समाज का अपमान नहीं हुआ था ? ऐसे कुतर्क और सुविधाजनक आदिवासी प्रेम दिखाकर विपक्ष देश के सामने खुद को ही नंगा कर रहा है। धूर्तता और दोगलेपन में राजनीति की नई परिभाषा गढ़ने वाली आम आदमी और उसके नेता आज राष्ट्रपति के सम्मान और भाजपा को दलित-आदिवासी विरोधी बताने में जुटे हुए हैं, वहीं आम आदमी पार्टी राष्ट्रपति के अभिभाषण तक का बहिष्कार कर न्यूनतम संसदीय शिष्टाचार को पहले ही तिलांजलि दे चुके हैं, उनके एक नेता ने तो सदन और उपराष्ट्रपति की मर्यादा को बार-बार तार-तार किया है। बहरहाल, नए संसद भवन के विरोध में विपक्ष की यह क्षुद्र राजनीति ना केवल भारतीय शिष्टाचार का उल्लंघन है, बल्कि विपक्ष के नकारात्मक एवं घृणापूर्ण राजनीति का भी जीताजागता प्रमाण है। अगर विपक्ष ने यह मुगालता पाल रखा है कि इस विरोध से वह जनसमर्थन प्राप्त कर लेंगे, तो यह उनकी बड़ी भूल है। यह देश के लिए गरिमामयी क्षण है। ऐसे विशिष्ठ अवसर पर विपक्ष की यह राजनीतिक पैतरेंबाजी उसके नैतिक क्षय को प्रदर्शित करता है। लोकतांत्रिक परंपरा में विरोध के इस हठधर्मिता का कोई स्थान नहीं है। आज़म अमरोहवी की एक नज्म है 'बात निकली है तो दूर तलक जाएगीÓ। जैसे ही कांग्रेस और विपक्षी दलों से ऐसे सवाल उठाए कांग्रेस शासनकाल के दौरान हुए इस तरह के आयोजनों को खंगालने पर बहुत ऐसे तथ्य सामने आए जो यह बताते हैं कि इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया और राहुल गांधी ने तमाम भवनों का शिलान्यास और उद्घाटन किया है। जो आज उन्हें उनके ही तर्क से सवालों के कटघरे में खड़ा करता है। 24 अक्टूबर,1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद के एनेक्सी भवन का उद्घाटन किया था। 15 अगस्त, 1987 को उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसदीय पुस्तकालय का शिलान्यास किया था। विदित हो की इन दोनों कार्यक्रमों में राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं किया गया था। इसी तरह कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने नए विधानसभा का उद्घाटन अथवा शिलान्यास किया है। यह बातें तो पुरानी हो गई हैं।

(लेखक स्तंभकार हैं)

Updated : 25 May 2023 7:32 PM GMT
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