ओबामा अमेरिकी विद्रूपताओं पर दृष्टिपात करें

चेतनादित्य आलोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक सात बार अमेरिका की यात्रा कर चुके हैं। उनकी वर्तमान यात्रा अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा थी, जब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन पलक-पांवड़े बिछाये उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। वैसे तो प्रधानमंत्री मोदी के अपने कार्य काल के दौरान सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप एवं जो बाइडेन के साथ बेहद अच्छे संबंध रहे हैं, जिसकी शुरुआत 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के प्रथम कार्य काल के दौरान हुई, जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे, लेकिन जो बाइडेन के कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की होने वाली वर्तमान यात्रा अन्य सभी यात्राओं से बिल्कुल भिन्न है, क्योंकि इस बार उन्हें विशिष्ट अतिथि के रूप में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन एवं उनकी पत्नी तथा अमेरिका की प्रथम महिला जिल बाइडेन द्वारा अमेरिका की राजकीय यात्रा पर बुलाया गया। इस बार अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी का जैसा अभूतपूर्व स्वागत हुआ, वैसा भव्य और दिव्य स्वागत बराक ओबामा के कार्यकाल से लेकर अब तक की अवधि में भारत या एशिया ही नहीं, बल्कि दुनिया के किसी भी कोने के किसी भी राजनेता, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का नहीं हुआ है।
वैसे देखें तो ऐसे तमाम अवसरों पर हमेशा से ही प्रधानमंत्री मोदी के विरोधी उनकी चमचमाती उपलब्धियों को दागदार बनाने की कोशिशें करते रहते हैं। जाहिर है कि इस बार भी कुछ-न-कुछ तो ऐसा-वैसा होना ही था। इसलिए भारतीय प्रधानमंत्री की घेराबंदी करने के लिए उनके अमेरिका आगमन से ठीक पहले ही कथित रूप से धर्म का धंधा करने वाले टूलकिट से जुड़े लोगों ने भारत तथा मोदी विरोधी अमेरिकी सांसदों से एक पत्र अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को लिखवाया और उनसे मानवाधिकारों एवं अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा उठाने का आग्रह किया। भारत तथा मोदी विरोधी कुछ अमेरिकी सांसदों ने मोदी के स्वागत समारोह और अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में मोदी के संबोधन का भी बहिष्कार किया। इतना ही नहीं, इन सभी लोगों ने भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिकी यात्रा के दौरान सोशल मीडिया के मंचों पर पोस्ट आदि के माध्यम से मोदी विरोधी अभियान को प्रमुखता से आगे बढ़ाने का कार्य भी किया। इस अभियान में जुटे इन तमाम लोगों ने एक तरफ भारत को तोड़ने की मंशा रखने के आरोपित उमर खालिद के समर्थन में अमेरिका में पोस्टर लहराये, तो दूसरी ओर खालिस्तान समर्थकों को भी भारत विरोधी नारे लगाते हुए देखा-सुना गया।
सबसे बड़ी बात यह कि इस अभियान की आग को हवा देने का कार्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने भी किया। सीएनएन को दिए एक साक्षात्कार में ओबामा ने भारत के मुसलमानों की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि यदि मैं प्रधानमंत्री मोदी से मिलता तो उनसे कहता कि यदि वे अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं करेंगे, तो भारत के विखंडित होने की संभावना बनी रहेगी। यही नहीं, उन्होंने राष्ट्रपति जो बाइडन को भी यह सलाह दे डाली कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी से भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर बात करनी चाहिए। वैसे देखा जाए तो प्रधानमंत्री मोदी पर अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों को लेकर हमले हमेशा से ही होते रहे हैं। इस भारत विरोधी मुहिम में विदेशी मीडिया घरानों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी बड़ा योगदान रहा है। अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं, जब बीबीसी ने गुजरात दंगों के 20 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद उस पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई और खूब प्रचारित-प्रसारित भी किया। इसी तरह अमेरिकी राष्ट्रपति भवन व्हाइट हाउस में रिपोर्टर के तौर पर तैनात अमेरिकी अखबार 'दि वाल स्ट्रीट जरनलÓ की पत्रकार सबरीना सिद्दीकी ने व्हाइट हाउस में आयोजित प्रेसवार्ता में भारतीय लोकतंत्र और मानवाधिकार हनन को लेकर पीएम मोदी से सवाल पूछा, जिसकी काफी चर्चा हो रही है। पीएम मोदी ने सबरीना द्वारा पूछे गए प्रश्न का बेहद सटीक एवं उपयुक्त जवाब दिया। पत्रकार सबरीना का भारत और पड़ोसी देश पाकिस्तान से विशेष संबंध रहा है। दरअसल, आठ दिसंबर 1986 को जन्मीं सबरीना के पिता जमीर भारत-पाकिस्तान मूल के अमेरिकी नागरिक हैं। उल्लेखनीय है कि जमीर का जन्म भारत में, जबकि उनका लालन-पालन पाकिस्तान में हुआ था। सबरीना की मां निशात सिद्दीकी पाकिस्तानी मूल की मशहूर शेफ हैं, जो 'निशात किचेनÓ नाम से रेस्टोरेंट का संचालन करती हैं। जहां तक बराक हुसैन ओबामा की बात है तो उनके मन में भी भारत एवं मोदी विरोधी भावना बहुत पुरानी है। याद कीजिये, 2015 में जब ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे, तब प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में वे भारत आए थे। (लेखक स्तंभकार हैं)
