विशेष आलेख: अब विजय शाह को मंत्री रहने का अधिकार नहीं…

Vijay Shah Controversy
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार रात राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में पाकिस्तान के साथ हुए सैन्य टकराव में अद्भुत शौर्य और कौशल का प्रदर्शन करने वाली भारतीय सेना के पराक्रम को भारत की नारी शक्ति को समर्पित किया। दुर्भाग्यपूर्ण है कि उसी नारी शक्ति का प्रधानमंत्री के संबोधन के महज़ 24 घंटे के भीतर ही घोर अपमान हुआ है।
'ऑपरेशन सिंदूर’ में भारत की नारी शक्ति का प्रतीक बनकर उभरीं हमारी दो सैन्य अधिकारी-कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह-इस समय भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में नारी शक्ति और भारतीय शौर्य की प्रतीक बन चुकी हैं।
लेकिन विडंबना देखिए कि उन्हीं कर्नल सोफिया कुरैशी, जो अपनी प्रारंभिक शिक्षा के नाते मध्यप्रदेश की बेटी हैं, को उसी राज्य के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह ने एक सार्वजनिक सभा में जिस तरह से उल्लेखित किया है, उसे यहां लिखना भी शर्मनाक है।
भारत के भाल पर अपनी शौर्यगाथा का तिलक लगाने वाली नारी शक्ति को इस तरह सरेआम शब्दों से निर्वस्त्र करना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकता।
यह पहली बार नहीं है जब विजय शाह ने ऐसी बातें या हरकतें की हों। गूगल में सर्च करके देखिए, उनके ऐसे काले चिट्टों की लंबी फेहरिस्त मिल जाएगी। उन्होंने तो उस मुख्यमंत्री की पत्नी तक को नहीं बख्शा था, जिनके मंत्रिमंडल में और जिनके अधीन रहते हुए वे सत्ता का सुख भोग रहे थे।
यह मध्यप्रदेश का भी दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि सत्ता के दंभ में चूर कुछ लोग आए दिन ऐसी ओछी हरकतें कर बैठते हैं, जिससे संपूर्ण सरकार और संगठन को मुंह छिपाते घूमना पड़ता है। और चोरी ऊपर से सीनाजोरी यह कि हर बार एक ही तर्क (या कहें कुतर्क) दिया जाता है—'मेरी बात को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया।’ अब तय करना होगा कि 'मुझे गलत समझा गया’ की ढाल और 'माफी’ के कवच का इस्तेमाल करने वालों को और कितनी बार अभयदान मिलेगा? क्या ऐसे कृत्य भुला दिए जाने योग्य हैं या क्षमा के लायक हैं?
ताजा घटना इसलिए भी अत्यंत गंभीर हो जाती है क्योंकि इसमें स्वयं प्रधानमंत्री के नाम और कार्य का भी एक आपत्तिजनक अंदाज में उल्लेख किया गया। क्या अब इस तरह सार्वजनिक मंचों से, प्रशंसा के नाम पर, प्रधानमंत्री की भी एक प्रकार से खिल्ली उड़ाई जाएगी?
मध्यप्रदेश सरकार का नेतृत्व कर रहे डॉ. मोहन यादव ने कार्यभार संभालने के बाद कई कठोर फैसले किए हैं। समय-समय पर उन्होंने अपने सहयोगियों को संयम, अनुशासन, नैतिकता और लोकलाज की सीख दी है। लेकिन यदि पानी को सिर से ऊपर गुजरने दिया जाए, तो वह जान भी ले सकता है। इसलिए इस बार ऐसी सख्त कार्रवाई करनी होगी जिससे भविष्य में कोई भी ऐसा दुस्साहस करने से पहले सौ बार सोचे। इस घटना के बाद विजय शाह को एक मिनट भी मंत्रिमंडल में रहने का अधिकार नहीं है।
'ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर यदि भारत आज पूरी दुनिया में गर्व से अपना मस्तक ऊंचा किए हुए है, तो ऐसे लोगों को कैसे सहन किया जा सकता है, जो इस राष्ट्रीय गर्व को शर्म में बदलने जैसा घटिया कार्य कर रहे हैं?
