संघ संगठन नहीं अपितु विचार

संघ संगठन नहीं अपितु विचार
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भानु प्रताप मिश्र

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संदर्भ में 18300 लोगों के बीच हाल ही में एक शोध किया गया। जिसका परिणाम यह बताता है कि संघ कोई संगठन नहीं है, अपितु लोगों के बीच विचारों की समानता से एकीकृत हुआ सामाजिक स्वरूप है। इसे सामाजिक स्वरूप इसलिए कहे जाने की आवश्यकता है कि सनातन हिन्दू समाज का मूल विचार - (अयं निज: परोवेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैवकुटुम्बकम्।।) है।

इसका अर्थ कहता है कि यह मेरा अपना है और यह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त (सञ्कुचित मन) वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो सम्पूर्ण धरती ही परिवार है। जो कि शोध की प्रकिया में किए गए सैम्पलिंग में स्वयंसेवकों और गांव के आम सनातनी हिन्दू परिवारों में समान रूप से देखने को मिला। चूंकि संघ के संस्थापक डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार द्वारा दिए गए विचार और आम हिन्दू परिवारों के सदस्यों के विचार में सत प्रतिशत समानता ही संघ को सामाजिक स्वरूप प्रदान करता है।

इस शोध में कई विषयों पर आधारित प्रश्न लिए गए, जिसके सहयोग से यह समझने का प्रयास किया गया कि यदि संघ एक संगठन है, तो सनातन हिन्दू समाज उससे अलग किस प्रकार से है। उक्त शोध में मूल रूप से भगवा ध्वज का उपयोग, सनातन हिन्दू जीवन शैली, हिन्दू परिवारों की बनावट, प्रकृति के प्रति हिन्दू दर्शन, हिन्दू ग्रामीण परिवारों में अतिथि स्वागत, हिन्दू दर्शन में महिलाओं का स्थान, हिन्दू पूजा पद्धति और सांस्कृतिक बनावट में अर्न्तसंबंध, सांस्कृतिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि से व्यक्तित्व निर्माण तथा स्वावलम्बन का विचार आदि विषयों पर आधारित प्रश्न लिए गए। जिससे स्तब्ध करने वाले परिणाम निकल कर आए। परिणाम को जानने के लिए विषयों पर चर्चा से पूर्व हमें भारत के साधारणीकरण के संचार सिद्धांत पर एक नजर डालने की जरूरत है।

भारत के साधारणीकरण का संचार सिद्धांत

इस सिद्धांत को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि किसी भी व्यक्ति में समझ का विकास उसके पारिवारिक, सामाजिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक आदि परिस्थितियों के अनुसार विकसित होता है। इसीलिए संचार में सामाजिक और भौगोलिक परिवेश के अनुसार संचारक द्वारा दिए हुए, सन्देश को प्रापक पूर्ण रूप से ग्रहण कर सकता है। लेकिन इसमें भी उसकी पारिवारिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से उत्पन्न बाधा आने की सम्भावना रहती है। क्योंकि व्यक्ति के समझ के विकास में पारिवारिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी महत्वपूर्ण अवयव है।

भगवा ध्वज का उपयोग

भगवा रंग मानव की आत्म चैतन्यता का द्योतक है। यही कारण है कि भगवा ध्वज सनातन हिन्दू धर्म व संस्कृति की अस्मिता है। यहां गौर करने योग्य बात यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भगवा ध्वज की गुरू स्वरूप में पूजा की जाती है। इसका अर्थ यह है कि मानव को आत्म चैतन्यता से ही ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। इसलिए इस अवस्था का प्रतिनिधित्व करने वाले परम पूज्य भगवा ध्वज की पूजा संघ में ही नहीं, अपितु भारत के हर सनातन हिन्दू परिवार में की जाती है।

इसके अतिरिक्त सनातन हिन्दू जीवन शैली, हिन्दू परिवारों की बनावट, प्रकृति के प्रति हिन्दू दर्शन, हिन्दू ग्रामीण परिवारों में अतिथि स्वागत, हिन्दू दर्शन में महिलाओं का स्थान, हिन्दू पूजा पद्धति और सांस्कृतिक बनावट में अन्तर्सम्बन्ध, सांस्कृतिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि से व्यक्तित्व निर्माण तथा स्वावलम्बन का विचार आदि सभी विषयों से जुड़े प्रश्नों के उत्तर खोजने पर हमने पाया कि संघ सनातन हिन्दू समाज से अलग कोई संगठन नहीं, अपितु विचार है। जिसके मूल में आचार्य चाणक्य द्वारा दिया गया वह सिद्धांत है, जो यह कहता है कि व्यक्ति से व्यक्ति के एकीकरण से समाज और समाज के एकीकरण से राष्ट्र का निर्माण होता है।

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