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नि:स्वार्थ समाजसेवा का सम्मान

पद्म पुरस्कारों का राष्ट्रीय स्तर पर महत्व होता है। विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को भारत सरकार द्वारा यह पुरस्कार दिया जाता है।

नि:स्वार्थ समाजसेवा का सम्मान
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पद्म पुरस्कारों का राष्ट्रीय स्तर पर महत्व होता है। विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को भारत सरकार द्वारा यह पुरस्कार दिया जाता है। प्राय: ऐसे लोगों को यह पुरस्कार मिलता रहा है ,जिनका योगदान प्रत्यक्ष दिखाई देता है। इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। लेकिन केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इस संबन्ध में एक नायाब कदम बढ़ाया है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ नया करने की इच्छाशक्ति का प्रमाण भी है। इसके अंतर्गत बुनियाद बन कर समाज सेवा करने वालों को सम्मानित करने का निर्णय किया गया। भवन की बुनियाद दिखाई नहीं देती। लेकिन विशाल महलों, अट्टालिकाओं का अस्तित्व उसी पर निर्भर करता है। लेकिन लोग सामने दिखने वाले भवन की प्रशंसा करते है, बुनियाद की चर्चा भी नही होती। ऐसे ही समाज में बहुत से लोगों ने अपना जीवन लगा दिया , लेकिन वह खुद नींव की तरह ही बने रहे। पद, वैभव, यश की कोई कामना नहीं की।

पुरस्कार या सम्मान देने वालों की भी उनपर नजर नहीं पड़ी। नरेंद्र मोदी ने नींव पर भी ध्यान दिया। अनेक लोग दिखाई दिए। जिनके मन में किसी पुरस्कार की रंचमात्र भी इच्छा नहीं थी। वह इन सीमित विचारों से बहुत आगे निकल चुके थे। ऐसे अनेक लोग इस सरकार में पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किए गए। उत्तर प्रदेश पहुंच कर नरेंद्र मोदी की यह सोच आगे बढ़ी। राज्यपाल राम नाईक ने उत्तर प्रदेश से पद्म पुरष्कार प्राप्त करने वालों का राजभवन में सम्मान करने का निर्णय किया था। लगातार दो बार उन्होंने ऐसे कार्यक्रम राजभवन में आयोजित किये।

संस्कार भारती के संस्थापक योगेंद्र जी का प्रसंग रोचक है। उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। राष्ट्रपति भवन कार्यालय से उनकी जो जीवनी जारी हुई, उसमें उनका जन्म वर्तमान मध्यप्रदेश में बताया गया। राम नाईक को यह बात बराबर नहीं लगी। वह भी छह दशक से जमीनी समाज सेवा में रहे है। योगेंद्र जी जैसे समाज सेवियों के सम्पर्क में रहे। राम नाईक ने राष्ट्रपति कार्यालय को पत्र लिखा। इसके बाद पता चला कि योगेंद्र जी का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ था। राम नाईक का प्रयास सफल हुआ। उन्होंने राजभवन में योगेंद्र जी का सम्मान किया। उस समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी थे। इस प्रकार राम नाईक और योगी आदित्यनाथ भी नींव को सम्मान देने संबन्धी नरेंद्र मोदी के विचार पर अमल कर रहे है। पच्चीस जून को लखनऊ में समारोह आयोजित किया गया। जिसमें योगी आदित्य नाथ ने योगेंद्र जी और ब्रह्मदेव शर्मा भाई जी को सम्मानित किया।

समारोह का आयोजन संस्कार भारती ने किया था। पच्चीस जून को ही आपात काल लगाया गया था। तारीख के अनुसार योगी आदित्यनाथ ने यह मुद्दा भी उठाया। सपा और कांग्रेस का नाम तो नहीं लिया। लेकिन उनसे इस विषय में सवाल अवश्य किया। आपातकाल थोपने वाले आज लोकतंत्र की बात कर रहे हैं। भ्रष्टाचारी, सदाचार की बात कर रहे, साम्प्रदायिक, मानवता की बात कर रहे और जातिवादी सामाजिक न्याय की बात कर रहे हैं। उन्होंने सभागार में उपस्थित लोगों से ऐसे विरोधाभासी लोगों और स्थितियों को जवाब देने के लिए तैयार रहने का आह्वान किया। पद्मश्री बाबा योगेन्द्र और ब्रह्म देव भाई जी का सम्मान भी किया। योगी आदित्यनाथ ने कला, संस्कृति, शिक्षा और कुंभ मेले को जोड़ कर राष्ट्र गौरव की व्याख्या की।

उन्होंने कुंभ मेले को एक सौ बानवे देशों से आने वाले सैलानियों के लिए यादगार बनाने के लिए संस्कार भारती से सहयोग का आह्वान किया। यहां कलाकारों को अपनी कला को प्रदर्शित करने का अवसर भी मिलेगा। शिक्षा और कला एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रयाग कुंभ में करोड़ों लोग आएंगे। कुंभ को कला और संस्कृति का केंद्र बनाया जा सकता है। संस्कार भारती संस्था के माध्यम से योगेंद्र जी ने कलाकारों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया। उन्नीस सौ चौबीस को बस्ती में विजय बहादुर श्रीवास्तव के घर जन्मे योगेन्द्र के सिर से दो वर्ष की अवस्था में ही माँ का साया उठ गया। फिर उन्हें पड़ोस के एक परिवार में बेच दिया गया। इसके पीछे यह मान्यता थी कि इससे बच्चा दीघार्यु होगा। उस पड़ोसी माँ ने ही अगले दस साल तक उन्हें पाला। छात्र जीवन में उनका सम्पर्क गोरखपुर में संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख से हुआ। यहीं उन्होंने समाज सेवा का संकल्प लिया।

विद्या भारत के माध्यम से समाज में शिक्षा की अलख जगाने में लगे ब्रह्मदेव जी को भी योगी आदित्यनाथ ने सम्मानित किया। इन्होंने भी नींव की भांति समाज की भव्य संरचना में जीवन लगा दिया। ऐसे ही लोगों के योगदान से आज विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान रूप में प्रतिष्ठित है। इसके अन्तर्गत भारत में लगभग अठारह हजार शैक्षिक संस्थान कार्य कर रहे हैं। यह शिक्षा के सभी स्तरों प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च पर कार्य कर रही है। इसके अलावा यह शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान करती है। इसका अपना ही प्रकाशन विभाग है जो बहुमूल्य पुस्तकें, पत्रिकाएँ एवं शोध-पत्र प्रकाशित करता है। यह भारत का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन है। भारत में छियासी प्रांतीय एवं क्षेत्रीय समितियाँ विद्या भारती से संलग्न हैं।

इनके अंतर्गत तेईस हजार से अधिक शिक्षण संस्थाओं में डेढ़ लाख से अधिक शिक्षकों के मार्गदर्शन में चौतीस लाख छात्र-छात्राएं शिक्षा एवं संस्कार ग्रहण कर रहे हैं। इनमें से पचास शिक्षक प्रशिक्षक संस्थान एवं महाविद्यालय, तेईस सौ से अधिक माध्यमिक एवं नौ सौ तेईस उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, साढ़े छह सौ पूर्व प्राथमिक एवं पांच हजार से अधिक प्राथमिक, चार हजार से अधिक उच्च प्राथमिक एवं छह हजार से अधिक एकल शिक्षक विद्यालय तथा साढ़े तीन हजार से अधिक संस्कार केंद्र हैं। आज नगरों और ग्रामों में, वनवासी और पर्वतीय क्षेत्रों में झुग्गी-झोंपड़ियों में, शिशु वाटिका आदि संचालित की जा रही है। वस्तुत: इस प्रकार के कार्यक्रम व्यापक सोच पर आधारित होते है। इनका उद्देश्य मात्र दो महान समाजसेवियों को सम्मानित करने तक सीमित नहीं होता। इसके माध्यम से समाज को दिशा मिलती है। यश कामना से दूर रहकर समाज कार्य के लिए जीवन समर्पित करने वालों से प्रेरणा लेनी चाहिए।

( लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं )


Updated : 29 Jun 2018 1:31 PM GMT
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डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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