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हिन्दी साहित्य के शलाका पुरुष निराला जी

हिन्दी साहित्य के शलाका पुरुष निराला जी
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युग विरोध और संघर्ष के कवि निराला की काव्य चेतना आधुनिक हिन्दी कविता के विकास में निराला की व्यक्तित्व एक पहेली और कृतित्व एक समस्या बन गई है जिसका मूल्यांकन और विश्लेषण अपेक्षित है।

निराला जी हिन्दी साहित्य के शलाका पुरुष थे उनका व्यक्तित्व उनके काव्य में पूर्णत: प्रस्तुत हुआ है इस तरह उनका समूचा काव्य उनके व्यक्तित्व के विकास से साथ गतिमान रहा है। उनके संपूर्ण काव्य को युगीन परिस्थितियों ने प्रभावित किया है। निराला जिस युग के कवि हैं वह युग अपेक्षाकृत युगीन परिस्थितियों से अधिकार प्रभावित रहा है। निराला जी ने जो कुछ लिखा है-अनुभूति की प्रमाणिकता के साथ लिखा है। यही कारण है कि निराला की प्रारंभिक कृतियां आशावादी स्वरों से आपूरित हैं जबकि उनके कृतित्व का उत्तरांश एक ऐसे कवि की अभिव्यक्ति है जिसे आघातों ने जर्जर कर किया है। 'राम की शक्ति पूजा' निराला की खिन्नता, क्षोभ, टूटन और परास्त आस्थाओं की पीठिका पर लिखी गई कृति है। 'राम की शक्ति पूजा' को निराला के कृतित्व के संदर्भ में देखने के लिए अनेक जीवनवृत्त और व्यक्तित्व को स्थूल रूप रेखा परिचित होना आवश्यक है।

निराला जी का वंश मूलत: उत्तरप्रदेश का निवासी है। पिता पंडित रामसहाय तिवारी अपने मूल स्थान उन्नाव से बंगाल के महिषादल राज्य मे जीविकोपार्जन के लिए चले गए थे। निराला जी रामसहायजी की दूसरी पत्नी से जन्मे पुत्र थे। बंगाल में जन्मे निराला जी का बालमन बंगीय वातावरण और संस्कृति से पूर्णत: प्रभावित रहा साथ ही पिता के कठोर अनुशासन से काफी कुंठित रहा। इसी प्राथमिक कुंठा ने निराला जी को हठधर्मिता और विद्रोह की दिशा में धकेला। उनकी शिक्षा औपचारिक ढंग से नहीं हो पाई। विद्यालयीन शिक्षा के दौरान निरालाजी बंगला और संस्कृत के विद्यार्थी रहे, किन्तु हिन्दी का एक मौलिक संस्कार उनके हृदय में सांसें ले रहा था जिसने निराला जी को सिपाहियों की सहायता से हिन्दी वर्णमाला सीखने की प्रेरणा दी। उनका यही हिन्दी संस्कार बाद में उनकी सहधर्मिनी मनोहरा देवी के सान्निध्य में परिष्कृत और प्रांजत हुआ। आज तुलसी साहित्य पढऩे के बाद हमारे मन में एक कृतज्ञ भावना रत्नावली के प्रति उपज आती है ठीक ऐसी ही भावना की प्रतीति मनोहरा देवी के प्रति जागती है। स्वयं निराला जी ने यह माना है कि उनके हिन्दी अनुराग और हिन्दी ज्ञान को उनकी पत्नी द्वारा दीप्ति और ऊर्जा मिली थी, पत्नी की मृत्यु आर्थिक विषमता पुत्री का महाप्रयाण और उससे भी बढक़र युग की आक्रामक उपेक्षा ने निराला जी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को करीब करीब विखर जाने की स्थिति तक पहुंचा दिया था। किन्तु निराला का व्यक्तित्व झुकने की अपेक्षा टूटन अधिक पसंद करता था। निराला जी का सम्पूर्ण काव्य जीवन संघर्ष, असफलता, अभाव, दुस्साहस और युग विरोध की एक विराट आयोजना है। यह एक बहुत बड़ी विडम्बना है कि निराला जी के मरण को वक्तव्यों, श्रद्धांजलि और विशेषांकों से अलंकृत करने वाले समाज ने उनके जीवित रहते उन्हें अस्वीकृति, उपेक्षा और अभाव के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया। कालक्रम के आधार पर निरालाजी के सम्पूर्ण काव्य को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है।

अनामिका (1923), परिमल (1930), गीतिका (1936), अनामिका द्वितीय भाग (1938), तुलसीदास (1938), कुकुरमुत्ता (1942), अनिमा (1943), बेला (1946), नये पत्ते (1946), अपरा (1950), अर्चना (1950), आराधना (1953) किसी भी कवि सी कृतियों का वर्गीकरण सर्वथा वैज्ञानिक ढंग प्रवृत्तिगत वर्गीकरण का है। इस प्रकार से वर्गीकरण में कवि का अपना दर्शन, संवेदना और युग चेतना की स्पष्टीकरण सन्निहित होता है, निरालाजी का कविरुप एक गतिशील (डायनेमिक) व्यक्तित्व रहा है। वे कभी भी किसी एक मान्यता या भावभूमि से आबद्ध नहीं रह सके। समय के साथ अपनी कविताओं को जो प्रगति निराला जी ने दी है उसने उनकी काव्य में एक विशिष्ट प्रकार की सौन्दर्य संयोजन कर दिया है। काव्य की प्रवृत्ति के आधार उनकी रचनाएं रहस्यवादी, छायावादी, प्रगतिवादी और प्रयोगवादी इन स्वरूपों में वर्गीकृत है-1.रहस्यवादी 2. छायावादी, 3. प्रवृत्तिवादी 4. प्रयोगवादी।

रहस्यवादी रचनाएं- ये रचनाएं निरालाजी की कवि जीवन की शैशविविस्था की कविताएं हैं। निरालाजी मूलत: छायावादी कवि माने जाते हैं। दार्शनिक मन: विलास और कल्पनालोक की पर्यटक काव्य संवेदना निरालीजी की रहस्यवादी कविताओं में प्राप्त होती है। किसी अलौकिक एवं परमसत्ता के प्रति आत्म समर्पण अथवा विस्मय या जिज्ञासा भाव रहस्यवाद कहलाता है। छायावाद और रहस्यवाद को स्पष्ट विभाजित करने वाली कोई पार्थक्य पंक्ति नहीं है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में

निरालाजी की रहस्य भावना पर स्वामी शंकराचार्य और स्वामी विवेकानन्द का गंभीर प्रमाद है। शंकराचार्य की अद्वैत भावना निराला जी का मूल दर्शन प्रतीत होती है। दूसरे शब्दों में निराला जी अद्वैतकारी हैं। 'तुम और मंै' कविता इसी अद्वैत के मौलिक संस्कारों से पूर्णत: प्रभावित है।

2. छायावादी रचनाएं- छायावाद की वृहत्यमयी में निराला जी की भी गणना की गई है। हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रारंभिक पौरोहित्य का श्रेय प्रसाद पंत और महादेवी के साथ निराला जी को भी दिया जाता है। छायावाद की प्रमुख विशेषताएं और प्रवृत्तियां निरालाजी के समूचे काव्य में वृहदांश में उपलब्ध होती हैं। अन्तस की प्रस्तुतीकरण, वैयक्तिकता का आग्रह, गीति संस्कार, वेदना का उद्वेलन प्रकृति के प्रति नव्य दृष्टिकोण और तादात्म्य स्थापन की उद्दाम लालसा, प्रेम और श्रृंगारिकता की काव्य के बहिरंग क्षेत्र में अभिनव परिवर्तन आदि जो विशिष्टतायें छायावाद की पूंजी है इसी पूंजी ने निराला जी के काव्य के एक बड़े अंश को सम्पन्नता दी है। परिमल की अधिकांश कवितायें छायावादी है-

प्रगतिवादी रचनाएं-निरालाजी की काव्य चेतना का काल्पनिक लोक में बहुत दिनों तक मन नहीं लगा। छायावाद में जो पलायन वृत्ति थी-स्थितियों के साक्षात्कार से बचने की जो प्रवृत्ति थी उसने निरालाजी को यथार्थ के धरातल पर आने को प्रेरित किया। कविधर्म का निर्वहन भी यथार्थ के धरातल पर अपेक्षाकृत अधिक हो सकता था-साथ ही आघातों ने निराला जी के काल्पनिक प्रभाव को जर्जर कर देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। संभवत: इन्हीं दो स्थितियों से प्रभावित होकर निरालाजी का झुकाव वर्ग भेद, बह्याडबर और रूढिग़्रस्त समाज के चित्रांकन की ओर उन्मुख हुआ। अनामिका के द्वितीय भाग के पश्चात निरालाजी प्रगतिवाद की ओर उन्मुख हुए हैं। कुकुरमुत्ता की कथा में एक रूपक के माध्यम से निरालाजी ने विभिन्न, वर्गीकरण वाले समाज की कथा दी है। 'भिक्षुक' और 'विधवा' जैसी कविताएं निरालाजी का प्रगतिवादी दृष्टिकोण प्रकट करती है।

प्रयोगवादी रचनाएं-निराला के कृतित्व के संदर्भ में प्रयोगवाद का वह अर्थ नहीं जो कि आज के महत्वपूर्ण की व्यांदोलन प्रयोगवाद का हैं। निरालाजी का प्रयोग परिपाटी विद्रोह और नवीनता के स्वागत का है। उनका प्रयोग शिल्प में नए-नए प्रयोग करने का प्रयोग है। 'कुकुरमुत्ता' और 'बेला' की अधिकांश कविताएं इसी प्रकार के प्रयोग का परिचय देती हैं।

सम-सामयिक समानधर्मा श्री सुमित्रानन्दन पंत ने अपने ग्रंथ छायावाद पुनर्मूल्यांकन में लिखाहै निरालाजी ने कृतित्व में अनेक पहलू है। सर्वप्रथम तो उनकी सबल बौद्धिक रचनाएं हैं जिनमें उनकी अद्वैत दृष्टि को अखण्ड तेज, असीम सौन्दर्य तथा निगूढ़ सांकेतिक कला वैभव है। यह उनके काव्य की ज्योतिर्मय भूमि है। वे अत्यंत हठी अहमन्य होने के साथ अत्यंत भाव प्रवण और संवेदनशील तो थे ही इसलिए उनके हृदय में बाहरी भीतरी प्रभावों व्यक्तिगत जीवन संघर्षों, महत्वकांक्षाओं के दंशों तथा प्रवंगों के साथ आशा निराशा, आल्हाद-विषाद के ज्योति अंधकार या दुर्धर्ष उद्वेल न रहता था।

निराला के कृतित्व के संदर्भ में भावनागत व्यायकता, शिलागत नावीन्य उदात्त प्रवणशीलता, अनुभूतिगत व्यायकता उनके वैशिष्ट्य बोध के परिचायक हैं। संघर्ष युगविरोध अभाव और दुस्साहस के समुच्चय निराला की काव्य चेतना को अत्याधिक सपुष्ट किया है- एतदर्थ छायावादी कवियों में उनका स्थान स्वमेव ही उत्कृष्ट कोटि को संस्पर्श करता हुआ आज भी प्रासंगिक है।

-अनिल अग्निहोत्री

Updated : 10 Feb 2019 2:49 PM GMT
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Naveen Savita

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