अतिवृष्टि की समस्या के नए समाधान की दरकार

अतिवृष्टि की समस्या के नए समाधान की दरकार
X

अतुल शेठ

पिछले दिनों उत्तरांचल से लेकर पहाड़ी क्षेत्रों में और दिल्ली में जो बरसात हुई है और जो दृश्य हम सब ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर देखे हैं उससे सहज ही मन में डर होना और विचलित होना बहुत सामान्य सा है। इस परिदृश्य में अगर हम भारत के किसी भी शहर को आंकते हैं और साथ में जो बरसात उस शहर में पिछले 40 साल,100 साल में जो अधिकतम पानी गिरा है,इसे तकनीकी भाषा मैं 40 साल की बाढ़ और 100 साल की बाढ़ कहते हे,ओर उस शहर में जो बसाहट पिछले 40-50 साल में हुई है तो हम एक डरावने मुहाने पर अपने आप को पाते हैं। उदाहरण के लिए इन्दौर शहर में सितंबर माह में 24 घंटे में 17 इंच पानी गिरने का जो रिकॉर्ड है और उससे भी ज्यादा शायद 42-4& के आसपास का जो रिकॉर्ड है। उसकी अगर अब पुनर्वित्त होती है ,तो शहर की कल्पना करके और शहर के जो हालात होंगे वो कल्पना के परे है। उससे हम सब ने चेतना चाहिए और जागरूक होकर योजना बनानी चाहिए। अन्यथा शहरों की अकल्पनिया दुखद और असहाय स्थिति निर्मित होगी । 40 साल की बाढ़ और 100 साल की बाढ़ का अनुभव और आवश्यकता का आज शहरों के नवनिर्माण में कहीं भी उपयोग नहीं किया जाता है। इसके कई उदाहरण हमारे सामने हैं, पिछले सालों में जब चेन्नई में बाढ़ आई थी तो पूरा के पूरा हवाई अड्डा तीन-चार दिन तक पानी में डूबा रहा था और शायद वो इसी बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में था जहां 100 साल में बाढ़ आती है। मुंबई में भी जब कुछ साल पहले पानी 1 दिन में &0 इंच गिरा था तब वहां की मीठी नदी जो बाद में नाला बन गयी थी ,पूरा स्वरूप ही बदल दिया था नवनिर्माण में जो हमारी राष्ट्रीय नीति है, की नदी हो तो दोनों और अधिकतम जो बाढ़ आती है उसके बाद &0 मीटर तक कोई निर्माण नहीं होना चाहिए वैसे ही अगर नाला हो तो अधिकतर बाढ़ के स्तर से 9 मीटर तक कोई निर्माण नहीं होना चाहिए ।साथ ही जो प्राकृतिक जमीन है ,स्वरूप है, उसको बरकरार रखना चाहिए। मगर हमने थोड़े से लालच में और अज्ञानता वश इन बातों का ध्यान कहीं भी शहरों के निर्माण में और शहरों की अधोसंरचना के विकास में इन बातों का ख्याल नहीं रखा है।

शहरों में नए-नए मार्ग, नए-नए पुल जो बना दिए जाते हैं, उसमें भी इन बातों का ख्याल नहीं रखा जाता है। मार्गों के अंदर बरसात के पानी की निकासी के लिए जो क्रॉस ड्रेनेज बनाई जाती है या तो वह बनाई ही नहीं जाती है और बनाते भी है तो उसका जो आकार है वह बहुत छोटा होता है अर्पयाप्त होता है। इसके कारण हम सड़कों पर पानी का एक ओर से आकर दूसरी ओर से निकलना देखते है। यह बहुत सामान्य सभी शहरों में हो गया है। उसी प्रकार पुलों में भी थोड़ी सी लागत बचाने के लिए या बरसात के पानी की गिनती में चूक के कारण उसके जो अबेटमेंट है किनारे हैं, वह बढ़ाकर जो बोकदे होते हैं पानी की निकासी के वह छोटे बना दिए जाते हैं। और जब यह बाढ़ आती है तो वह नाकाफी सिद्ध होते हैं और आजू बाजू की सड़कों को अबेकमेन्ट को वह पानी बाह कर ले जाता है। इन सब में लंबे समय में देखा जाए तो राष्ट्रीय हानि बहुत ज्यादा होती है जिसका आकलन भी स्थानीय स्तर पर करने का कोई पैमाना नहीं है। इस कारण स्थानीय शासन कुछ रुपयों की बचत और अज्ञानता के कारण पूरे समाज और देश को लंबे समय की परेशानी और पैसों की बर्बादी के लिए मजबूर करता है। पिछले 40-50 सालों में जो शहर का अकल्पनीय ,अनियोजित और बेतरतीब विकास हुआं है वर्षा की दृष्टि से इसके बहुत भयंकर और दुष्परिणाम अब हम इन शहर में और अपनों के बीच होते देख रहे हैं। क्योंकि 40 साल की बाढ़ और 100 साल के बाढ़ का समय, हम कह सकते हैं कि सभी शहरों में अगले सालों में आएगा और यह जो विकास हमने पिछले सालों में किया है, उसमे जो गलतियां हो गई है , और जो बनावट और बसाहट हो गई है ,यह सब इन अतिवृष्टि के समय में नाकाफी सिद्ध होंगे। इतिहास में भी हमने पढ़ा है कि 5 से 10000 साल पहले मोहनजोदड़ों की बसाहट में भी बरसात की नालियों की व्यवस्था थी। मगर समय के साथ हम यह सब चीजें भूल गए। शहरों में पहले खुली बरसात की नालियां हर घर के सामने होती थी,और घर में जाने की पुलिया बनती थी। यह अंग्रेजों के द्वारा शहरों के विकास की मूलभूत कल्पना थी बरसात के लिए, हमने इस कल्पना को भुला दिया। सुंदरता के नाम पर, स्वक्षता के नाम पर, दीवार से दीवार, रोड होना फुटपाथ होना और पेवर होना यह सामान्य से आज और इन सब में जो बरसात की व्यवस्था थी ,वह दफन हो गई। आधुनिक शहरों में कहीं भी चौराहे पर पुलिया नहीं मिलती है ना कलवर्ट मिलती है। जबकि पहले हर चौराहे पर पुलिया और कलवर्ट बनती थी, जिससे बरसात के पानी की आवाजाही होती थी। और इस पुलिया और कलवर्ट के अंदर शहरों के कचरे ने अपना अहम रोल निभाया है, प्लास्टिक की बोतल प्लास्टिक की थैलियों ने इन नालियों को भी चौक करा है, इससे बचने का स्थानीय शासन ने उपाय यह निकाला कि इन नालियों को बंद कर दिया । आरसीसी रोड के ऊपर से पानी को बाहाना यह प्रचलन पिछले कुछ समय में आने लगा है।

बड़े शहरों में 1980 के बाद जितनी भी कॉलोनी बनी है ,उसमें कहीं भी बरसात के पानी की निकासी का कोई योजनाबद्ध काम नहीं हुआ है, ना ही किसी विभाग ने ध्यान दिया है, ना ही कोई विभाग इसके लिए जवाबदार है। देश में बाढ़ नियंत्रण विभाग है, वो अधिकतर नदियों के बाढ़ के लिए है, शहरों की बाढ़ के लिए नहीं। वैसे ही जितनी भी सड़कों के निर्माण हुए हैं,उसमें शहर की भौगोलिक स्थिति का,भारतीय सर्वेक्षण विभाग के द्वारा उपलब्ध टोपोग्राफिक सीट का, कोई भी समावेश ,पुल पुलिया और कलवर्ट रोड के लेवल आदी बनाने में नहीं हुआ है । शहर के प्राकृतिक बहाव के जो रास्ते और जगह थी उसको हमने अवरुद्ध कर दिया है। पिछले 40 सालों में शहर के आंतरिक रोड के नवीनीकरण के अन्तर्गत पुराने मकान जो रोड से 1-1.5 फिट ऊपर थे,वो 1-2 फिट रोड से नीचे हो गए हैं। लंदन में 1880 में रोड या चौराहे का जो लेवल था आज भी वो ही है। हमारे यहां साल दर साल रोड की उंचाई बढ़ती जाती है, इसे नियंत्रित करने का न कोई नियम हैं, न कोई विभाग हैं कहीं। विदेशों में शहरों का बाढ़ प्रबंधन प्लान होता है, लेवल 1...लेवल 4,5 आदि, जिसे बरसात की मात्रा और समय के हिसाब से परिभाषित किया जाता है, ओर हर लेवल पर शहर में क्या-क्या होगा वो परिभाषित और स्पष्ट होता हैं ,ओर उस हिसाब से आपदा प्रबंधन होता है। हमारे देश में यह किसी भी शहर के लिए यह शायद नहीं है। देश में इस बारे में अध्ययन के लिए ग्रेजुएट और पोष्ट ग्रेजुएट कोर्स भी नहीं हे,इस पर सरकार ने तुरन्त कार्यवाही करने की आवश्यकता हैं। वैसे ही आपदा प्रबंधन के अंतर्गत जिस तरह भूकंप के बारे में काफी जानकारी लोगों को सरकार ने दी है, वैसे ही अतिवृष्टि और बाढ़ की स्थिति में, आपदा प्रबंधन में आम जनता ने क्या क्या सावधानियां रखना चाहिए, इस बारे में भी जन जागरण करने की आवश्यकता है । स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी इसको सम्मिलित करने की आवश्यकता है, नहीं तो यह हमारी दुर्दशा का कारण बनेगा।

किसी भी शहर के नीति नियंताओं ने स्वयं पहल करके, और शहर की भौगोलिक स्थिति का अध्ययन और आंकलन करके ,जो -जो प्रावधान करना चाहिए ,उसे तुरंत करना चाहिए। और कम से कम उस छेत्र में ,उस मार्ग पर ,जहां जहां जल बहता था, जहां से बरसात का पानी उस शहर की नदी,नालो में आता था ,उन क्षेत्रों को चिन्हित करके, लोगों को जानकारी देकर, रखना चाहिए और योजना बनाना चाहिए, जिससे कि शहर में जब भी ऐसी अतिवृष्टि होगी तब पहाड़ी क्षेत्रों की तरह, शहर की ऊंचाई के कारण और जो ढलान उपलब्ध है ,उसके कारण बहुत तेजी से पानी जिस क्षेत्र में आएगा और जहां अवरोध होगा वहां कोहराम मचाएगा। अत: शहरों के सभी संबंधित लोगों ने और स्थानीय राज्य और केन्द्र के विभागों ने इस दिशा में पहल करके , हर शहर का बरसात के पानी के लिए एक मास्टर प्लान और कार्य योजना बनाना चाहिए। वहीं प्रत्येक शहर में आपदा प्रबंधन के लिए खासकर बाढ़ के अंदर अतिवृष्टि के काल के लिए विचार करके संसाधन उपलब्ध रखना चाहिए। लम्बे समय की सार्थक योजना बनाकर कार्य करना चाहिए,तभी हम 21वी सदी के शहर बना सकते हैं। ( लेखक स्वदेश के पूर्व संचालक एवं चर्चित निर्माण विशेषज्ञ हैं)

Next Story