नीरज चोपड़ा यानी सोने पर सुहागा

नीरज चोपड़ा यानी सोने पर सुहागा
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नीरज चोपड़ा से पहले शायद ही किसी खिलाड़ी से सारा भारत सिर्फ गोल्ड की ही उम्मीद करता हो वह भी ओलंपिक या वर्ल्ड चैंपियनशिप में। नीरज चोपड़ा ने एक बार देश को गौरव के लम्हें दिये। जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप का गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया। उन्होंने 88.17 मीटर तक जैवलिन फेंका। इस तरह नीरज चोपड़ा वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। नीरज की प्रेरणा के चलते हमारे दो अन्य जैवलिन थ्रोअर क्रमश: किशोर जेना पांचवें और डीपी मनू छठे नंबर पर रहे।

ये याद रखना जरूरी है कि खेलों में एथलेटिक्स को सबसे अव्वल स्थान प्राप्त है। खेलों की जननी है एथलेटिक्स। लेकिन उसी एथलेटिक्स में भारत के हिस्से में ओलंपिक खेलों या वर्ल्ड चैपियनशिप में एकाध बार को छोड़कर कभी कोई बड़ी सफलता नहीं लगी थी। नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक खेलों में जेवलिन थ्रो (भाला फेंक प्रतियोगिता) में गोल्ड मेडल जीतकर साबित कर दिया कि भारत के खिलाड़ी एथलेटिक्स में भी दमखम रखते हैं। वे अब अपने हिस्से के आकाश को छूने के लिए तैयार हैं। नीरज चोपड़ा टोक्यो ओलंपिक खेलों से पहले ही अपनी स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतने के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे थे।

मिल्खा सिंह, गुरुबचन सिंह रंधावा, श्रीराम सिंह, पीटी उषा तथा अंजू बॉबी जार्ज जैसे धावकों ने भारत को एशियाई खेलों से लेकर राष्ट्रमंडल खेलों में कुछ पदक और सफलताएं दिलवाईं थी। पर ये सब ओलंपिक खेलों में पदक पाने से चूक गए थे। अंजू को वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य का पदक मिला था। नीरज चोपड़ा ने उस कमी को पूरा कर दिया। सच में नीरज चोपड़ा ने एक बड़ी लकीर खींच दी है। इस बार गोल्ड मेडल जीतने के जश्न के दौरान नीरज चोपड़ा ने इस बात का भी पूरा ख्याल रखा कि तिरंगे को ससम्मान सही ढंग से समेटा जाए। इन छोटी- छोटी बातों से उनके व्यक्तित्व का अंदाजा होता है।

नीरज चोपड़ा ने यह जो गोल्ड मेडल देश को दिलवाया है, उसे जीतने के लिए उन्होंने कितनी कड़ी मेहनत की होगी या कितना पसीना बहाया होगा, यह अब किसी को बताने की जरूरत तो नहीं है। उन्हें सारा देश अब करीब से जानने लगा है और अपना हीरो मानता है। उन्होंने देश को स्वर्णिम क्षण देकर सच में बहुत ही बड़ा उपकार किया। भारत इनका सदैव कृतज्ञ रहेगा।

जब नीरज चोपड़ा के हम उम्र लाखों नौजवान उम्र-जनित भावनाओं के वशीभूत हो कर तफ़रीह, ऐशो-आराम में डूबे होते हैं तब नीरज चोपड़ा कड़ी धूप, बारिश और सर्दी में सूर्योदय से शाम तक मैदान पर पसीना बहाते हैं। उन्होंने कई अवरोधों का भी सामना किया होगा। पर उन्होंने न सिफ़र् अपने मनोबल को बरक़रार रखा, बल्कि़ अपने लक्ष्य को भी कभी अपने निग़ाहों से ओझल नहीं होने दिया। नीरज चोपड़ा की सफलताओं से हरेक भारतीय को गौरवान्वित है। उनकी यह उपलब्धि देश के लिए अमूल्य और ऐतिहासिक है। ऐसे पल हमारे नसीब में अबतक बहुत कम ही आये हैं।

नीरज चोपड़ा ने जब जेवलिन हाथ में लिया तब उनकी मेहनत पर यक़ीन और भरोसा उनके चेहरे पर अंकित था। इस भरोसे ने देश की उम्मीदों को भी परवान चढ़ा दिया था और उन्होंने अपने 140 करोड़ हमवतनों को मायूस भी नहीं किया। उन्होंने देश की झोली उम्मीदों से भी ज़्यादा भर कर दे दी। नीरज चोपड़ा मिल्खा सिंह और श्रीराम सिंह की तरह भारतीय सेना के एक और शानदार खिलाडी के तौर पर उभरे है, जिन्होंने एथलेटिक्स में बेहतरीन प्रदर्शन किया।

नीरज चोपड़ा की लगातार सफलता के चलते अब कुछ बातें भविष्य में होती नजर आ रही हैं। पहली तो यह कि अब हमारे धावकों के सामने नीरज चोपड़ा का उदाहरण होगा कि अगर वे ओलंपिक में पदक ले सकते हैं तो हम क्यों नहीं। इससे देश भर के लाखों नौजवान एथलेटिक्स में आएँगे। वे मेहनत करेंगे और वर्ल्ड और ओलंपिक खेलों में मेडल लाने की हर चंद कोशिश करेंगे। उन्हें सफलता भी मिलेगी। दूसरी संभावना यह भी लग रही है कि अब देश भर के युवाओं का एथलेटिक्स के प्रति आकर्षण ज्यादा बढ़ेगा। नौजवान इस खेल को भी अब अपने करियर के रूप में लेंगे। याद रख लें कि खेलों में करियर बनाना कोई घाटे का सौदा नहीं रह गया है। आप जैसे ही एक मुकाम को छूते हैं तो आपको कोई अच्छी नौकरी तो मिल ही जाती है। उसके बाद धन और दूसरी सुविधाएं भी खिलाडियों को मिलने ही लगती हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को विज्ञापनों से भी मोटी कमाई होने लगती है।

हालांकि किसी भी नौजवान को अपने करियर के शुरू में यह नहीं सोचना चाहिए कि उसे फलां-फलां पदक जीतने पर कितना धन मिलेगा। खिलाड़ी को लक्ष्य तो सिर्फ शिखर पर जाने का होना चाहिए।

कुछ कुंठित मानसिकता के लोग हमारे यहां सुविधाओं का बहुत रोना रोते हैं। कहने वाले तो यह कहते हैं कि सुविधाओं के अभाव में प्रतिभाएं दम तोड़ देती हैं। अगर उन्हें सुविधाएं मिलती तो वह कुछ और जौहर दिखाते। पर भारत की तुलना में बहुत कम सुविधाएं मिलने पर भी अफ्रीकी देशों जैसे केन्या, इथोपिया और युगांडा के धावक अपने देशों को कई-कई गोल्ड मेडल जितवाते हैं। क्या इन अफ्रीकी देशों में खिलाड़ियों को भारत से अधिक सुविधाएं मिलती है? कतई नहीं। हमारे देश के कम से कम 100 शहरों में खेलों का इंफ्रास्ट्रक्चर कायदे का विकसित हो चुका है। खेलों में या जीवन के किसी भी अन्य क्षेत्र में कामयाबी तो तब ही मिलती है, जब आप में सफल होने का जुनून पैदा हो जाता है। कहने वाले कहते हैं कि हमारे अधितकर खिलाड़ी नौकरी मिलने के बाद सोचते हैं कि उन्हें जीवन में सब कुछ मिल गया। वे फिर शांत हो जाते हैं। श्रेष्ठ खिलाड़ी वही होता है जो बार-बार प्रयास करता है। नीरज चोपड़ा का आदर्श जमैका के आठ बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता बोल्ट होने चाहिए। बोल्ट की जीत की भूख खत्म ही नहीं होती थी। नीरज चोपड़ा का अगला लक्ष्य 2024 के पेरिस ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जीतना होना चाहिए। कितना अच्छा हो कि तब दूसरे और तीसरे स्थान पर भी हमारे ही धावक रहें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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