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चीन की सामरिक ताकत को समझने की जरूरत

विषयांतर हुए बगैर हम चीन के उस स्टील्थ लड़ाकू विमान जे-20 की चर्चा करना चाहेंगे, ज़िसे चीन ने चोरी छिपे अपनी वायु सेना में शामिल किया है।

चीन की सामरिक ताकत को समझने की जरूरत
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- सियाराम पांडेय 'शांत'

भारत को फ्रांस से 36 राफेल विमान मिलेंगे,इससे पहले ही चीन ने उसके समानांतर अत्याधुनिक विमान हासिल कर लिया है। यह विमान राडार को चकमा दे सकता है। राडार को चकमा तो विमान बाद में देगा,अभी तो चीन ने भारत को चकमा दे दिया है, अमेरिका को चकमा दे दिया है। यह वही विमान है जिसे 2010 में सामान्य उछल कूद और करतब दिखाने वाला विमान कहा गया था । चीन कभी भारत का दिली तौर पर मित्र नहीं रहा। हमारे पहले प्रधानमंत्री नेहरू की तो चीन के हुक्मरानों से दांतकाटी रोटी का संबंध था। भारत में पंचशील के राग अलापे जा रहे थे। चारों ओर भारत-चीन मैत्री की गूंज थी लेकिन चीन ने क्या किया? विश्वासघात । भारत पर उसने अवांछित युद्ध थोपा। भारत की हजारों वर्गमील जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया। तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश पर वह आज भी अपना दावा ठोकता है। अरुणाचल प्रदेश में तो उसने अपना हेलीपैड तक बना लिया था। भारत ने प्रबल प्रतिरोध न किया होता तो आज भी वहां काबिज रहता।

विषयांतर हुए बगैर हम चीन के उस स्टील्थ लड़ाकू विमान जे-20 की चर्चा करना चाहेंगे, ज़िसे चीन ने चोरी छिपे अपनी वायु सेना में शामिल किया है। उसने दुनिया को इसकी भनक तक नहीं लगने दी। चीन के प्रतिबंधित सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरें तो इसी ओर इशारा करती हैं। इस तरह के दो ही विमान हैं या ज्यादा,यह जांच का विषय है । फिर भी डूबकर पानी पीने की उस्तादी कोई चाहे तो चीन से बेहतर सीख सकता है। इस सुपरसोनिक विमान को उत्तरी मध्य चीन स्थित डिंगशिंग एयरफोर्स बेस में शामिल किया जाना है बल्कि यह कहें कि किया जा चुका है। अब चूंकि मामला खुल गया है,इसलिए चीन को देर -सबेर इसकी औपचारिक घोषणा करनी होगी। कूटनीति यही कहती है कि अपनी ताकत को छिपा कर रखो । चीन ने हालांकि इस विमान का सार्वजनिक प्रदर्शन शुहाई इंटरनेशनल शो के दौरान किया था। तब दुनिया इस विमान की क्षमता को ठीक से आंक नहीं पाई थी । विकथ्य है कि इस विमान में हथियार रखने की पर्याप्त जगह है। इसके पंखों के नीचे भारी हथियारों को रखने की जगह बनी है जो इसे परम्परागत लड़ाकू विमानों से अलग बनाती है। इसे चीन ने कुछ इस तरह डिजाइन किया है जो उसे रडार की पकड़ से बचने में मदद करती है।

धरती पर तैनात शत्रु देशों की मिसाइलों को भी विमान को ट्रैक करने और उस पर हमला करने में दिक्कत होती है। समझा जा रहा है कि भारतीय रफेल की चुनौतियों से निपटने के लिए चीन ने सुपरसोनिक जे-20 विमानों में बहुत कुछ सुधार भी किया है। भारतीय राफेल की तकनीकी जानने को लेकर वह बेहद परेशान रहा। इस मामले में भारत के कुछ राजनीतिक दलों ने संभवतः उसकी मदद भी की। ऐसे नेता चीन के उच्चायुक्त से भी मिले। राफेल की खरीद में घोटाले का आरोप भी लगाया। इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय भी ले गए। घी सीधी अंगुली से न निकले तो टेढ़ी अंगुली से ही सही । असल मकसद तकनीकी जानकारी को चीन तक पहुंचाना है। कोर्ट शायद इस खेल को समझ नही पा रही है। जब कोर्ट के सामने यह बात स्पष्ट हो चुकी है। एक याचिका कर्ता के वकील यहां तक कह चुके हैं कि संसद में सरकार दो बार बता चुकी है कि 36 राफेल विमानों की कीमत क्या है, फिर उसे वह सार्वजनिक क्यों नहीं करती। जो बात पहले ही सार्वजनिक है,उसके बारे में अब बताने की जरूरत ही क्या है। फ्रांस और भारत के रक्षामंत्री पहले ही बता चुके हैं कि 36 विमान 7.8 बिलियन यूरो में खरीदे जा रहे हैं। भारत के हिसाब से यह राशि 59 हजार करोड़ रुपये होती है। इसका 36 वां हिस्सा निकाल लो, एक विमान की कीमत हुई। यह जानने के लिए अदालत का, देश का महत्वपूर्ण समय नष्ट करने की क्या जरूरत है ।

जो लोग राफेल सौदे पर एतराज कर रहे हैं,उन्हें यह भी सोचना होगा कि भारत के पास आज भी 70 और 80 के दशक के पुरानी पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं। भोथरे हथियारों से जंग नहीं लड़ी जाती। उन्हें तो गर्व होना चाहिए कि सेना को अत्याधुनिक करने का जो काम 20-25 साल पहले होना चाहिए था,वह अब हो रहा है।विपक्ष को पता है कि राफेल 3800 किलोमीटर उड़ान भर सकता है । उसकी बदौलत वायुसेना भारत में रहकर चीन और पाकिस्तान पर हमला कर सकती है। उन्हें तो भारत के खिलाफ चीन की तैयारियों पर विचार करना चाहिए था। चीन ने इस साल के प्रारम्भ में ही एच-6 जी इलेक्ट्रॉनिक युद्धक विमान हासिल कर लिया था। पड़ोसी राष्ट्र सामरिक दृष्टि से मजबूत हो रहें हैं और इस देश के कुछ लोग भारत को मजबूत करने की कोशिशों का ही विरोध कर रहे हैं,इससे अधिक विडंबना पूर्ण स्थिति और क्या हो सकती है? जिस तरह सर्वोच्च न्यायालय ने प्रशांत भूषण को फटकार लगाई है,कुछ वैसी ही फटकार उसे राहुल गांधी को भी लगानी चाहिए। उनसे यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि जो जानकारी उस तक सीलबंद लिफाफे में पहुंची है,वह उन तक कैसे पहुंच गई।अदालत को दी गई जानकारियां अगर चुनावी सभाओं का विषय बनेंगी तो इससे तो न्यायपालिका की प्रतिष्ठा ही प्रभावित होगी। न्याय पालिका देश का विश्वास है,उस पर अविश्वास यह देश बर्दाश्त नहीं कर सकता। यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी भाजपा में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। अब अगर वे मोदी के विरोध के लिए राफेल डील को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। प्रशांत भूषण और संजय सिंह राफेल डील को रद्द करने की मांग कर रहे हैं तो इससे फायदा किसे है? चीन को,पाक को । मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। उस पर सुनवाई चल रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि नीर क्षीर विवेक होगा।

इसमें शक नहीं कि भारत इन दिनों बाह्यान्तर दबाव झेल रहा है। चीन उसे निरंतर घेर रहा है। पाकिस्तान भी उससे मिला हुआ है। कभी चीन के सैनिक देश की सीमा में घुस आते हैं। कभी चीन के लोग आ जाते हैं।और नही तो नेपाल के रास्ते आ जाते हैं। ऐसी अनेक घटनाएं हो चुकी हैं। चीन और वहां के लोग अपनी हरकतों से बाज आते ही नहीं। भारत को परेशान करते रहना ही जैसे उनका अभीष्ठ हो। भारतीय सीमा में घुसकर वे पहाड़ियों पर लाल रंग से चीन लिख जाते हैं। भारत से लगते देशों में रोड बनाना,वहां अपना रेल तंत्र खड़ा करना,बंदरगाह बनाना,भारत सापेक्ष देशों की लोकतांत्रिक सरकारों को अस्थिर करने,उन्हें कर्ज के महाजाल में फंसाने की फितरत भी चीन कम नही कर रहा है। भारत के पड़ोसी देश इस बात को समझते भी हैं,लेकिन इनके और न उनके ठौर वाली स्थिति है। चीन पाकिस्तान के रास्ते बस चला रहा है। यह बस पाकिस्तान तक ही सीमित हो ,ऐसा भी नही है,यह कई देशों को चीन से जोड़ेगी। पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर की भूमि चीन को दे रखी है।

चीन और पाक के समर्थक भारत में भी कम नहीं हैं। ऐसे में मोदी सरकार को बेहद सजगता और गंभीरता के साथ देश को मजबूती देनी होगी। राफेल समझौता देश की जरूरत है लेकिन सरकार को भी अपनी विश्वसनीयता पर ध्यान देना होगा । आरोप लग रहे हैं तो सरकार को अपना पक्ष रखने चाहिए। चीन की निरंतर मजबूती भारत के हित में नहीं है। भारत चीन से मजबूत हो,अपनी सीमाओं की सुरक्षा कर सके,फिर उड़की जमीन पर किसी देश का कब्जा न हो,विचार तो इस पर होना चाहिए।

Updated : 18 Nov 2018 7:37 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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