सरकारी काम में मानसून की दखलंदाजी

सरकारी काम में मानसून की दखलंदाजी
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निठल्ला चिंतन

प्रदीप औदिच्य

मानसून इस बार देर से आया है। वह इसका बहुत दिनों से इंतजार कर रहे थे। वह चाहते थे कि मानसून टाइम से आए । वह बड़े सख्त अफसर हैं, वह चाहते है कि सब लोग अपना काम टाइम से करें। चाहे वह कोई भी हो, इसलिए मानसून की देरी उन्हे पसंद नहीं। साहब इन दिनों बाढ़ राहत विभाग के प्रभारी है।

साहब चाहते हैं कि सब लोग काम करें, अपना काम टाइम से करेंगे, तभी देश उन्नति करेगा। साहब चाहते है कि मानसून अपना काम पूरी मेहनत और ताकत से करे। नदी नाले अपना काम टाइम से करें। कॉलोनाइजर नाले में प्लॉट बेचने का अपना काम करें, नगर निगम कचरा नदी नाले में फेकने का अपना काम करे, और बाढ़ अपना काम करे।

सरकार जन कल्याणकारी है। सरकार ने बाढ़ राहत विभाग बना दिया, उसमें कर्मचारी रख दिए विशेषज्ञ अफसर हैं। विभाग मुस्तैद है, मानसून आने से पहले उसकी तैयारी कर दी। बाढ़ आपदा प्रबंधन में कर्मचारियों की ट्रेनिंग करवा दी, सबने माना कि बाढ़ आई हुई है, कमरे में बाढ़ को माना और उससे बचाव के तरीके समझाए ये अलग बात है कि ट्रेनिग ले रहे पांच छह लोगों को तैरना ही नहीं आता था, तो क्या हुआ उड्डयन विभाग के सारे कर्मचारी पायलेट थोड़ी होते हंै।

अफसरों ने सारी तैयारी कर ली, बस अब बाढ़ आने का इंतजार है। विभाग के लोग चाहते है हम काम करें, सरकार द्वारा बाढ़ राहत के लिए दी गई राशि का सद्उपयोग हो, वह जिस काम के लिए आई है, उसी काम में खर्च हो।

पर इसके लिए मानसून को आना होगा, मानसून को जमकर बरसना होगा। मानसून की देरी से अफसर नाराज हैं। वह इस बार लेट हो रहा है। मौसम विभाग से बार-बार पूछा जा रहा है, कब तक आयेगा....।

एक बार तो साहब ने आदेश दे दिया, मानसून की लेट लतीफी और लापरवाही के कारण, शासकीय कार्य में बाधा आ रही है....

क्यों न आपका एक इंक्रीमेंट रोका जाए....।

बाद में उनके कार्य कुशल सरकारी नियमों के जानकार बाबू ने बताया कि साहब मानसून अपना कर्मचारी नहीं है। तब साहब ने गुस्से में कहा कि अगर नहीं है तो वह सरकारी काम में आड़े क्यों आता है। सरकारी काम में रोड़े अटकाने का तो अधिकारी का ही अधिकार है।

हमे ये भी बरदाश्त नहीं है कि सरकारी काम कोई सरकार से बाहर का आदमी करे। इससे जनता में यह संदेश जाता है कि सरकारी कर्मचारी निकम्मे हैं। हम ये निकम्मेपन की छवि बदलना चाहते हैं। इसलिए मानसून को टाइम से आना ही चाहिए।

साहब रोज सुबह उठकर आसमान देखते हैं। जब काले बादल नहीं दिखते तो वह मायूस हो जाते हैं। पिछली बार जब बाढ़ आई थी तब उन्होंने तेजी से कार्य किया था। उन लोगों के नाम तक बाढ़ राहत में लिख दिए थे, जिनके मकान भी नाले से दूर थे। क्या करते यदि ऐसा नहीं करते तो, बाढ़ राहत की राशि लेप्स हो जाती.... वह नहीं चाहते थे कि सरकार की राशि जनहित के कार्य में खर्च न हो।

आज साहब ने बंगले के बाहर आकर आसमान देखा,काले बादल दिखाई दिए ।साहब खुश हुए,उन्हें अपना कर्तव्यनिष्ठ होने का अवसर मिलने वाला था, बस वह ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि बाढ़ आ जाए, जिससे उनकी दो माह की तैयारी बेकार न जाए। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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