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राष्ट्रीय राजनीति पर टिकी ममता बनर्जी की नजर

बहुत जल्दी ही एनडीए के घटक दलों में कौन रहेगा और कौन जाएगा यह स्पष्ट हो जाएगा।

राष्ट्रीय राजनीति पर टिकी ममता बनर्जी की नजर
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- दिव्य उत्कर्ष

लोकसभा चुनाव के लिए अब ज्यादा समय नहीं बचा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही इस कोशिश में है कि चुनाव को देखते हुए अपने गठबंधन की स्थिति स्पष्ट कर ली जाये। बहुत जल्दी ही एनडीए के घटक दलों में कौन रहेगा और कौन जाएगा यह स्पष्ट हो जाएगा। इसके साथ ही विपक्ष भी इसी कोशिश में है कि उसके प्रस्तावित फेडरल फ्रंट की तस्वीर जल्दी से जल्दी सामने आ जाए, ताकि फेडरल फ्रंट के नाम पर देश के मतदाताओं के बीच काम शुरू किया जा सके और मोदी सरकार को उखाड़ने में सफलता मिल सके।

फेडरल फ्रंट बनाने की कोशिश में ममता बनर्जी सबसे अधिक सक्रिय हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री होने के बावजूद वे केंद्र सरकार के खिलाफ एक सशक्त मोर्चा बनाने के इरादे से लगातार समय निकालकर अन्य दलों के नेताओं से मुलाकात कर रही हैं, ताकि सबको एक साथ गोलबंद किया जा सके। सच्चाई ये भी है की ममता बनर्जी अब खुद को पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं रखना चाहती हैं। उनका इरादा राष्ट्रीय स्तर पर बनने वाले फ्रंट की अगुवाई करने का है। यही कारण है कि वे मई 2016 में दोबारा मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद से ही क्षेत्रीय पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश में जुटी हुई हैं।

ममता बनर्जी निश्चित रूप से एक मजबूत जनाधार वाली नेता है और छात्र जीवन से ही उन्होंने राजनीति की बारीकियां सीखी है। वे युवा कांग्रेस में भी काफी लंबे समय तक रहीं और बाद में कांग्रेस की एक प्रमुख नेता के रूप में अपने आप को स्थापित करने में सफल रहीं। पश्चिम बंगाल के वामपंथी गढ़ को ढहाने में ममता बनर्जी का प्रमुख योगदान रहा है। अकेले दम पर उन्होंने पश्चिम बंगाल में लेफ्ट फ्रंट का मुकाबला किया और कांग्रेस आलाकमान का साथ नहीं मिलने पर बाद में उन्होंने अपनी अलग पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाकर लेफ्ट फ्रंट की सरकार का पूरी शक्ति के साथ सामना किया। उनकी यह कोशिश रंग भी लाई और उन्होंने वाम मोर्चा सरकार को पश्चिम बंगाल की सत्ता से उखाड़ फेंका।

आज पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तूती बोल रही है और उनको वहां चुनौती दे पाना फिलहाल न तो लेफ्ट फ्रंट के लिए संभव है और न ही कांग्रेस के लिए। यह ठीक है कि बीजेपी ने पिछले कुछ सालों में बंगाल में अपने जनाधार में अच्छी बढ़ोतरी की है, उसका वोट प्रतिशत भी बड़ा है, लेकिन इस बढ़े वोट प्रतिशत को पार्टी किस हद तक 2019 में अपनी चुनावी सफलता के रूप में बदल पाएगी, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। इसलिए स्पष्ट है कि पश्चिम बंगाल में फिलहाल ममता बनर्जी का एकछत्र राज है और तमाम आरोपों से घिरने के बावजूद उनके समर्थक वर्ग में अभी तक बिखराव की स्थिति नहीं बनी है।

यही कारण है कि अब वह फेडरल फ्रंट के जरिए खुद को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं। तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंदोपाध्याय का कहना है की अगर फ्रंट बनता है और चुनाव में उसे सफलता मिलती है, तो ममता बनर्जी बड़ी कुशलता के साथ उसका नेतृत्व कर सकती हैं। उनमें नेतृत्व के सारे गुण मौजूद हैं और अगर फेडरल फ्रंट की सरकार बनी तो ममता बनर्जी की अगुवाई में वो सरकार देश की आम जनता का भला करने में सफल रहेगी। सुदीप बंदोपाध्याय का कहना है कि ममता बनर्जी के पास जमीनी स्तर पर काम करने का जितना अनुभव है, उतना क्षेत्रीय दल के किसी दूसरे नेता के पास कम ही है। ममता सात बार सांसद रह चुकी हैं, तीन बार वह केंद्रीय मंत्री भी रह चुकी हैं। ममता बनर्जी को एनडीए और यूपीए दोनों के साथ काम करने का अनुभव रहा है। इसके अलावा वे दो बार मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। फिलहाल पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल चल रहा है।

निश्चित रूप से जमीनी स्तर पर काम करने के उनके अनुभव और चुनावी राजनीति में उनकी सफलता की वजह से प्रस्तावित फ्रंट की अगुवाई करने के लिए उनका दावा काफी मजबूत है। फ्रंट की जो कल्पना अगस्त 2017 में ममता बनर्जी ने दी थी, उसमें उन्होंने स्पष्ट किया था कि सभी क्षेत्रीय पार्टियां, जो अपने राज्यों की प्रमुख राजनीतिक शक्ती हैं, मिलकर फेडरल फ्रंट बनाएंगी। कांग्रेस इस फ्रंट का सपोर्ट कर सकती है, लेकिन उसे इस फ्रंट के नेतृत्व की आकांक्षा नहीं पालनी चाहिए। वह फेडरल फ्रंट की सहयोगी हो सकती है, नेता नहीं। स्पष्ट है कि अगर ममता बनर्जी ऐसा कह रही हैं, तो उनका इरादा कांग्रेस को अपने सहयोगी के तौर पर ही रखने का है, अपना नेता मानने का नहीं।

तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता के. चंद्रशेखर राव भी ममता बनर्जी की इस बात का समर्थन कर चुके हैं कि प्रस्तावित फ्रंट की अगुवाई क्षेत्रीय दलों के ही किसी नेता द्वारा की जाएगी, किसी राष्ट्रीय दल के नेता को इसकी कमान नहीं सौंपी जाएगी। जाहिर है कि अगर ऐसा हुआ, तो क्षेत्रीय दलों के बीच सबसे सशक्त नेता के रूप में ममता बनर्जी का मजबूत दावा बनता है। अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं में ऐसा कोई भी नेता नहीं है, जिसके पास राष्ट्रीय राजनीति के साथ ही राज्य की राजनीति करने का भी इतना अनुभव हो और वह पूरे फ्रंट की अगुवाई कर सके। ऐसे में अगर आज ममता बनर्जी फेडरल फ्रंट के जरिए प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने का सपना पाल रही हैं, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। स्वाभाविक रूप से अगर क्षेत्रीय दलों के इस प्रस्तावित फ्रंट की सरकार बनी, तो वह प्रधानमंत्री पद की सबसे मजबूत दावेदार होंगी।

हालांकि बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती भी राजनीतिक मंचों पर कई बार प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जता चुकी हैं, लेकिन उनकी पूरी राजनीति समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के समर्थन पर ही टिकी है। और कांग्रेस के साथ रहकर प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना कभी भी पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि आज की तिथि में कांग्रेस के लिए प्रधानमंत्री पद का अगर कोई उम्मीदवार है तो सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी। अगर वे कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय दलों के फ्रंट में भी शामिल होती हैं, तब भी कांग्रेस मायावती का प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन करेगी, ऐसी उम्मीद बहुत कम है। ऐसे में प्रस्तावित फ्रंट की अगुवाई के लिए ममता बनर्जी का दावा फिलहाल सबसे मजबूत नजर आता है। हालांकि इस राजनीति के अंत में क्या होगा, यह तो समय आने पर ही पता चलेगा।

(लेखक आईसीएफएआई यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक हैं)

Updated : 21 July 2018 2:14 PM GMT
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