मणिपुर में अस्तित्व की लड़ाई लड़ता मैतेई हिन्दू

मणिपुर में अस्तित्व की लड़ाई लड़ता मैतेई हिन्दू
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जगदम्बा मल्ल

चर्च द्वारा लगाई हुई आग में आज मणिपुर का मैतेई हिन्दू जल रहा है और दोष भी हमारे इन आहत बन्धु-मैतेई हिन्दुओं पर ही लगाया जा रहा है। यही चर्च की चालाकी है। चालाक और पेशेवर अपराधी अपराध और हत्या करके सबसे पहले पुलिस थाने जाकर थैली भेंट करता है और आहत लोगों के ही खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराता है। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। चर्च एक पेशेवर अपराधी ईसाई संगठन है, जो विश्वभर में करोड़ों निर्दोष ईसाई और गैर-ईसाई लोगों की हत्या करवाता है, आज भी हत्या जारी है।

हत्या, लूटपाट, आगजनी, अपहरण और बलात्कार चर्च के मतांतरण के बड़े कारगर और जांची-समझी विधि है। हिन्दू समाज और सरकारों द्वारा जानबूझ कर इस तथ्य की अनदेखी करने के कारण ही हिन्दू-ईसाई और हिन्दू-मुसलमान संघर्ष होते हैं। मेघालय में खासी ईसाई बनाम हिन्दू संघर्ष (1980), त्रिपुरा में ईसाई जनजाति बनाम हिन्दू संघर्ष (1980), मिजोरम में मिजो ईसाई और रियांग (ब्रू-बीआरयू) संघर्ष (1997), असम में कारबी और दिमासा संघर्ष (2005), कारबी-खासी (प्नार-पीएनएआर) संघर्ष (2004), कारबी-कुकी संघर्ष (2003-04), असम में जेमी नागा और दिमासा संघर्ष (2009), असम में ह्मार (एचएमएआर) और दिमासा संघर्ष (2003) और असम में ही बोड़ो ईसाई और बोड़ो हिन्दू संघर्ष (2010) और बोड़ो-मुस्लिम संघर्ष (2012), बोड़ोलैंड का उदालगुड़ी संघर्ष (2014) - इन सभी ईसाई बनाम हिन्दू संघर्षों में एक हजार से अधिक हिन्दू जनजाति और गैर-जनजाति हिन्दू ही मारे गए हैं।

चर्च प्रायोजित इन सारे संघर्षों में ईसाई ही विजयी होते आ रहे हैं। दिल्ली और राज्य सरकारें भी चर्च प्रायोजित संगठनों से ही बात करके हिन्दुओं को ही कठघरे में खड़ा करते आ रहे हैं। हिन्दू पक्ष सुना ही नहीं जाता है अथवा सुनकर भी अनसुना कर दिया जाता है। यह स्थानीय हिन्दुओं के प्रति महा अन्याय है। कारण, चर्च का भूमिगत और सतहगत जाल में सरकार और समाज दोनों ही फंस जाते हैं क्योंकि दंगा के बाद पूर्व गठित चर्च प्रायोजित शांति-समितियां तुरंत आगे आ जाती हैं और उनके ऊपर हिन्दुओं द्वारा किए जाने वाले 'अत्याचारोंÓ पर सरकार और समाज का ध्यान आकर्षित करने में सफल हो जाते हैं। सरकारें भी आनन-फानन में थोड़ा-बहुत राहत पहुंचाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती है। अपने पंथ-निरपेक्ष छवि को प्रमाणित करने के लिए राहत सामग्री भी ईसाई अपराधियों को ज्यादा देते हैं, किन्तु वास्तविक समस्या- 'चर्च, चर्च-प्रायोजित मतांतरण और चर्च-प्रायोजित आतंकवादÓ, पर जान-बूझ कर ध्यान नहीं देते। आज मणिपुर के हिन्दू जो मारे जा रहे हैं वह चर्च प्रायोजित है और इस षड्यंत्र में नागा, कुकी, मिज़ो और पूर्वोत्तर के सभी ईसाई संगठन परोक्ष अथवा सापेक्ष रूप से जड़ित हैं। केरल, मुंबई, दिल्ली, लखनऊ, गुवाहाटी, शिलांग और नागालैंड आदि सभी जगहों के चर्च संगठनों ने कुकी संगठनों को लिखित समर्थन दिया है, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजा है। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य अंतरराष्ट्रीय चर्च संगठनों से मदद की गुहार लगाई है। ये चर्च संगठन अपने-अपने देश के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों को आग्रह कर भारतवर्ष के प्रधानमंत्री को इसाइयों के समर्थन में पत्र भेजवाया है। ये चर्च संगठन World Council Churches-WCC (मुख्यालय-जेनेवा अमेरिका) और Baptist World Alliance-BWA (मुख्यालय- वर्जीनिया अमेरिका) को आगे कर अमेरिकी और ब्रिटिश राष्ट्राध्याक्षों को प्रभावित करते हैं और उनसे हिन्दू संगठनों के खिलाफ वार्ता जारी कराते हैं।

भारतवर्ष पर गिद्ध दृष्टि गड़ाये बैठे पोप भारतवर्ष के खिलाफ तुरंत वार्ता जारी करते हैं। हम हिन्दू संगठन के लोग इन ईसाई हत्यारों का सटीक जवाब नहीं दे पाते हैं। इस कारण हमारी छवि विकृत करने में ईसाई देश-विरोधी और हिन्दू-द्रोही शक्तियां सफल हो जाती हैं। मणिपुर में भी ईसाई आतताइयों ने मैतेई हिन्दुओं को मारा, उनके घर जलाए, बेटी-बहनों के साथ बलात्कार किए, दर्जनों मंदिरों को जला डाला और हमारे देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को तोड़ डाला। फिर भी इन प्रताड़ित मैतेयी हिन्दुओं को ही कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। परिणामत:, हमारे अति व्यस्त गृहमंत्री अमित शाह जी को इस समस्या को सुलझाने के लिए मणिपुर में मई 29-31 और 1 जून 2023 को चार दिन रहकर इम्फाल, मोरे और चुराचन्दपुर सहित कुकी क्षेत्रों का प्रवास करना पड़ा है। गृहमंत्री का किसी समस्या को सुलझाने के लिए मणिपुर जैसे छोटे राज्य में चार दिन रहना पड़ा हो यह अप्रत्याशित है। समस्या की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है क्योंकि 22 जून 2023 को प्रधानमंत्री मोदी जी अमेरिका के लम्बे प्रवास पर जा रहे हैं, जहां अनेक महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर होने वाले हैं। चर्च इसे प्रभावित करने का षड्यंत्र कर रहा है। 1952 में अदूरदर्शी और महा हिन्दूद्रोही नेहरू ने मणिपुर के हिन्दू राज्य का एक बड़ा भूभाग काबा घाटी (22,210 वर्ग किमी) बौद्धानुयाई बर्मा (म्यांमार) को दे दिया। मैतेई हिन्दुओं ने इसका कड़ा विरोध किया, किन्तु जिद्दी नेहरू ने इनकी एक न सुनी। मन-मसोस कर हमारे मैतेई हिन्दू बन्धुओं को अपना काबा घाटी छोड़कर मणिपुर में विस्थापित होना पड़ा। इनमें से काफी मैतेई अपनी सुविधानुसार पहाड़ों पर भी बस गए क्योंकि 1949 से पूर्व मैतेयी हिन्दू भी जनजाति श्रेणी में थे। मैतेयी हिन्दुओं के साथ अन्याय करते हुए नेहरू ने इनको सामान्य श्रेणी में ला दिया। मणिपुर का 92प्र. क्षेत्रफल जनजाति इलाका (पर्वतीय अंचल) होने के कारण इन मैतेई हिन्दुओं को उस क्षेत्र से खदेड़ दिया गया क्योंकि अब 1949 से ये जनजाति नहीं रहे। प्रारंभ में ऐसा लगा कि मणिपुर के पूरे क्षेत्रफल का 80प्र. भाग, इम्फाल घाटी, मैतेयी हिन्दुओं (53 प्र. मैतेई+17 प्र. मुस्लिम व अन्य हिन्दूगण) के लिए आरक्षित है और 92 प्र. क्षेत्रफल में 30 प्र. जनजाति आबादी रहेगी, किन्तु मैतेयी हिन्दुओं का यह परिकल्पना गलत साबित हुआ। इनके कान तो तब खड़े हो गए जब ईसाई जनजातियों की गिद्ध दृष्टि इम्फाल घाटी पर भी टिक गई। सारी सरकारी तथा गैर-सरकारी नौकरियों पर कुकी और नागा इसाइयों ने कब्जा ज़मा लिया। नौकरियों और जमीन को हड़पने के साथ कुकी, नागा और मीजो मिशनरियों ने मैतेयी हिन्दुओं के हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति पर चारों तरफ से धावा बोल दिया है। प्रत्येक सीमावर्ती मैतेयी गांवों में एक या अनेक चर्च बनाए जा रहे हैं। ये चर्च कुकी और नागा ईसाई आतंकवादियों के पनाहगार स्थली हैं। चर्च के छतों पर मारक हथियार और मादक द्रव्य छिपाए जाते हैं। हिन्दुओं द्वारा विरोध करने पर आतंकवादी बन्दूक की गोली दिखाते हैं। गुवाहाटी हाईकोर्ट के इम्फाल शाखा ने 27 मार्च 2023 को बिरेन सिंह की राज्य सरकार को आदेश दिया कि मैतेयी समाज को जनजाति घोषित करने के लिए केंद्र सरकार को लिखे।

(लेखक स्तंभकार हैं)

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