लोक कल्याणकारी राज्य की संस्थापक महारानी अहिल्याबाई होलकर

Devi Ahilyabai Holkar 300th Birth Centenary Year
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Devi Ahilyabai Holkar 300th Birth Centenary Year

लेखक : शिवप्रकाश, राष्ट्रीय सह महामंत्री संगठन , भाजपा

पुण्यश्लोक महारानी अहिल्याबाई होलकर 31 मई 1725 को अहमदनगर (अहिल्या नगर) के नाम से प्रसिद्ध जनपद के चौंडी गांव में जन्मी थीं। यह वर्ष उनके जन्म का त्रिशताब्दी वर्ष है। उनके सुशासन, लोक कल्याणकारी नीतियों एवं आसेतु हिमाचल सांस्कृतिक उत्थान के कार्यों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उनका 300 वां जयंती वर्ष संपूर्ण देश मना रहा है। समाज जीवन में सक्रिय अनेक सामाजिक संगठनों ने इस कार्य को बड़े उत्साहपूर्वक संपन्न किया है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगत प्रकाश नड्डाजी के नेतृत्व में 21 से 31 मई तक 10 दिवसीय अभियान लोकमाता अहिल्याबाई की स्मृति को समर्पित किया है। महारानी अहिल्याबाई होलकर के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं उनके प्रेरणाप्रद जीवन से प्रेरित प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की गरीब कल्याण की योजनाओं एवं 'विकास से विरासत' के उनके संकल्प को जन-जन तक पहुंचाने का काम भाजपा के कार्यकर्ता कर रहे है।

बौद्धिक संवाद, प्रदर्शनी, छात्र - छात्राओं के बीच प्रतियोगिताएं, मंदिरों व घाटों की स्वच्छता, आरती एवं शोभायात्राओं के माध्यम से यह कार्य संपन्न हो रहा है। राज्यों की सरकारे एवं स्थानीय प्रशासन द्वारा भी अनेक योजनाओं एवं संस्थाओं का नाम महारानी अहिल्याबाई होलकर के नाम पर किया गया है। पश्चिमी विद्वानों ने भारत के संबंध में दुष्प्रचार करते हुए कहा कि ‘हिन्दू शासन व्यवस्था अराजक थी', जेम्स मिल ने लिखा था कि 'भारत नैतिक रूप से खोखला और स्वार्थी समाज था जो शासन योग्य नहीं था'। जबकि पश्चिमी देशों में धर्म के नाम पर भीषण अत्याचार हो रहे थे। तब भारत में महारानी अहिल्याबाई होलकर ने लोक कल्याणकारी धर्मराज्य की स्थापना की थी भारत में धर्म एक व्यापक कल्पना है। जो आर्थिक एवं नैतिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

धर्म व्यक्तिगत जीवन में अर्थोपार्जन एवं मानवीय गुणों के विकास से लेकर मोक्ष तक का मार्ग सिखाता है। वहीं शासनकर्ताओं के लिए आर्थिक समृद्धि को बढ़ाने वाली नीतियों एवं योजनाओं तथा व्यक्तिगत जीवन में परस्पर आत्मीय व्यवहार, समाज, प्रकृति आदि के साथ अपना संबंध सिखाता है। इसी को ऋषि कणाद द्वारा वैशेषिक सूत्र में कहा गया है कि -

'यतो अभ्युदय निःश्रेयस सिद्धिः स धर्मः'

जो समाज में अभुदय (भौतिक उन्नति), निश्रेय ( आध्यात्मिक उन्नति) सिखाता है वही धर्म है। शासन की विशेषताएं थीं। 500 महिलाओं की सैनिक टुकड़ी का निर्माण कर एक महिला फौज भी उन्होंने तैयार की थी। महेश्वर साड़ी आज भी उनकी महिला केंद्रित उद्योग नीति को दर्शाती है।

प्रजा के प्रति वात्सल्य भाव के कारण उन्हें जनता ने लोकमाता की उपाधि प्रदान की थी। अपने राज्य की आर्थिक उन्नति के साथ-साथ भारत के सांस्कृतिक उत्थान में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। मालवा राज्य की महारानी होने के बाद भी सांस्कृतिक उत्थान का कार्य उन्होंने आसेतु हिमाचल किया। जो उनकी अखिल भारतीय दृष्टि को प्रकट करता है। सभी धाम, सभी ज्योतिर्लिंग, समस्त शक्ति पीठ सहित असंख्य मंदिरों का निर्माण, नदियों के घाटों का निर्माण, यात्रियों के रुकने के लिए धर्मशालाओं की व्यवस्था यह उनके द्वारा होने वाले अतुलनीय कार्यों की श्रृंखला है। हिमालय में स्थित बद्रीनाथ, केदारनाथ, काशी स्थित भगवान श्री विश्वनाथ, सोमनाथ, द्वारिका, पुरी जगन्नाथ, रामेश्वरम, सभी के पुनर्निर्माण में उनकी भूमिका है। देशभर में उनके द्वारा कराए गए इन कार्यों की संख्या लगभग 12,500 से अधिक है। इसका भी वैशिष्ट्य है कि यह कार्य उनको प्राप्त स्वयं की सम्पत्ति से कराया राजकोष से नहीं ।

संस्कृत पाठशाला का प्रारंभ एवं विद्वानों का सम्मान उनकी शिक्षा के प्रति गहरी रूचि को प्रकट करता है। शिवकामिनी अहिल्याबाई अपने शासन को शिव का शासन मानती थी । इस कारण उनकी शासन मुद्रा । । पर उनका नाम नहीं अपितु 'श्री शंकरः आज्ञे वरुणः' अंकित था। वह सर्वस्व त्यागी भाव से प्रजा सेवा ही प्रभु सेवा मानकर अपना शासन चलाती थीं । विदुर नीति में अच्छे राजा का वर्णन करते हुए कहा है- भारत में धर्म के आधार पर चलने वाले शासन को ही आदर्श शासन माना गया है। जिसमें सभी सुखी एवं निरोगी हो । अर्थात भौतिक दृष्टि से आर्थिक समृद्ध, सभी को स्वस्थ जीवन प्रदान करने वाली नीतियां, परस्पर प्रेम, भय रहित वातावरण, सभी अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन कर सकें ऐसा वातावरण ही आदर्श राज्य का उदाहरण बना। ऐसा योग्य शासन प्रभु श्रीराम ने दिया, इसलिए रामराज्य सभी के लिए आदर्श एवं अनुकरणीय राज्य हो गया। रामराज्य के इसी आदर्श का पालन करने का प्रयास सम्राट विक्रमादित्य, राजा भोज, सम्राट हर्षवर्धन जैसे अनेक राजाओं ने किया ।

विदेशी आक्रमणों के समय इन्हीं मूल्यों की रक्षा करने के लिए महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज सरीखे शासनकर्ताओं ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। 300 वर्ष पूर्व महारानी अहिल्याबाई भी इन्हीं शाश्वत मूल्यों का पालन करने वाली महारानी थीं। महारानी अहिल्याबाई ने अपने ससुर की मृत्यु के पश्चात 1767 में मालवा राज्य का शासन संभाला। नर्मदा के प्रति भक्ति, व्यावसायिक एवं सामरिकता से उन्होंने अपनी राजधानी नर्मदा के तट पर महेश्वर को बनाया। 28 वर्ष उन्होंने अपनी मृत्यु पर्यन्त यह शासन सत्ता संभाली। किसानों के विकास की योजनाएं, भूमिहीन किसानों को भूमि प्रदान करना, जनजातीय विकास, अपने शासन को अपराध मुक्त करना, रोजगारपरक अर्थनीति, महिला सशक्तिकरण उसके लिए महेश्वरी साड़ी का निर्माण एवं सैनिक कल्याण उनके

'चक्षुषा मनसा वाचा कर्मणा च चतुर्विधम् ।

प्रसादयति यो लोकं तं लोको न प्रसीदति । ।

' जो राजा नेत्र, मन, वाणी और कर्म इन चारों से प्रजा को प्रसन्न करता है प्रजा उसी से प्रसन्न रहती है। इन्हीं गुणों के कारण महारानी अहिल्याबाई होलकर को 'पुण्यश्लोक' उपाधि से विभूषित किया गया। महारानी अहिल्याबाई की 300 वीं जयंती पर हम सुशासन एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण के केंद्र बनकर विश्वकल्याण के प्रति प्रतिबद्ध हों। यही लोकमाता अहिल्याबाई के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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