कानून बदलेंगे, न्याय व्यवस्था सुधरेगी

कानून बदलेंगे, न्याय व्यवस्था सुधरेगी
X

भारत में लम्बे समय से न्यायिक व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता महसूस की जाती रही है मैकाले की न्यााय व्यवस्था दण्ड केन्द्रित थी न कि न्याय केन्द्रित जितने भी अपराधिक कानून अधिनियमित हुये वो सभी दण्ड केन्द्रित रहे। हालांकि स्वतंत्रता के बाद अंग्रेजों के बनाये कानून जिसमें सामंती व्यवस्था की बू आती थी समय-समय पर सरकार द्वारा इन कानूनों में संशोधन किये गये ताकि इन कानूनों को भारतीय परिदृश्य के अनुरूप बनाया जा सके किन्तु उक्त संसोधन अपर्याप्त साबित हुये।

संसद के मानसून सत्र में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 03 नये विधेयक प्रस्तुत किये जो कानून को ना सिर्फ भारतीय परिदृश्य के अनुरूप बनाने वाले है बल्कि त्वरित न्याय प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगे इन विधेयकों के माध्यम से भारतीय दण्ड संहिता 1860, दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973, एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम विधेयक पास होने के बाद कानून का रूप लेंगे।

वर्तमान समय में कुल लंबित केस लगभग साढ़े चार लाख के करीब है ये स्थिति है जिला एवं तालुका अदालतों की अगर लंबित केसो की बात करें तो 30 वर्ष से भी अधिक समय से ग्वालियर जिले में लंबित प्रकरणों की संख्या लगभग 3 लाख के आस-पास है निचले न्यायालयों से लेकर उच्चतम न्यायालयों तक न्यायालय 'वादों की बहुलताÓ के चलते त्वरित न्याय प्रदान नहीं कर पाते और देर से मिला निर्णय न्याय नहीं करता क्योंकि विलम्ब न्याय को पराजित करता है तो वही दूसरी तरफ जल्दबाजी में दिया गया निर्णय भी न्याय प्रदान नहीं करता।

समय और परिस्थितियां भी परिवर्तनशील होती है जैसे कि वर्तमान समय तकनीक का युग है आज आपराधिक मानसिकता के व्यक्ति अपराधों को अंजाम देने में भी तकनीकों का प्रयोग करते है। इनसे निपटने के लिये भी तकनीक का सहारा आवश्यक है। बदलते समय और परिस्थितियों के चलते उन्मादी भीड़ की हिंसा, पहचान छिपाकर विवाह, महिलाओं के विरूद्ध अपराध निरंतर बढ़ते जा रहे हैं। कानूनों के होने के बाद भी लोगों के मन में असुरक्षा एवं भय व्याप्त है जैसे-जैसे संशोधनों के माध्यम से दण्ड में वृद्धि की जा रही है वैसे -वैसे अपराधों की जघन्यता, बर्बरता, भयावहता बढ़ती जा रही है। खासकर महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अपराधों में।

हालांकि नये विधेयकों के प्रावधानों में संगठित अपराध को अलग अंदाज में परिभाषित किया गया है, अपराधियों की चल एवं अचल संपत्ति की कुर्की की व्यवस्था है। न्यायिक प्रक्रया को अधिक सुगम बनाने के लिये जीरो एफ.आई.आर. एवं ई-एफ.आई.आर. के साथ-साथ अपराध की एफ.आई.आर. राज्य के किसी भी पुलिस थाने में कराई जा सकेगी चाहे अपराध कहीं भी घटित हुआ हो। 03 वर्ष से कम सजा के मामलों में पुलिस अधीक्षक या वरिष्ठ की अनुमति के बिना गिरफ्तारी नहीं होगी नये प्रावधान शामिल होने से छोटे अपराधों दुर्बलता एवं 60 वर्ष से अधिक के लोगों को राहत मिलेगी।

तलाशी और अभिग्रहण के दौरान विडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य। अधिवक्ता एक मामले में अधिकतम 02 बार स्थगन ले सकेगा। 03 वर्ष से कम के मामलों में संक्षिप्त विचारण होगा। सं-स्वीकृति के लिये यातना देना भी अपराध बनाया गया है।

विचाराधीन कैदियों को सजा की आधी अवधि कैद में काटने के बाद जमानत पर छोडने का प्रावधान किया गया है।1/3 सजा काटने के बाद प्रथम बार दोष सिद्ध अपराधी को भी जमानत पर छोडा जा सकेगा। दुष्कर्म सरवाइवर का बयान उसके घर में महिला मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में महिला पुलिस अधिकारी रिकॉर्ड करेगी। दुष्कर्म एवं सामूहिक दुष्कर्म में कठोर दण्ड का प्रावधान

विधेयक के दूरगामी सकारात्मक परिणाम अवश्य आएंगे। 180 दिनों में पुलिस को जांच पूरी करनी होगी। सरबाइबर को त्वरित न्याय प्राप्त होगा। न्यायिक प्रक्रिया सरल होगी। एक को दण्ड 100 को सबक। अपराधों को घटित होने से पहले रोका जा सकेगा। न्यायालयों में बादों की बहुलता कम होगी। क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम सुधरेगा पुलिस पहले से ज्यादा कुशलता से अन्वेक्षण करेगी।भारतीयों के लिये भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखकर बनाया गया कानून होगा। अन्वेक्षण को टाइम बाउण्ड बनाया है अतिरिक्त 30 दिन समय और मिल सकेगा। न्यायधीशों को भी 30 दिन में विचारण प्रारंभ करना और निर्धारित समयावधि में विचारण पूर्ण करना होगा।

नि:संदेह चुनौतियाँ है किन्तु नये प्रावधानों के दूरगामी सकारात्मक प्रभाव जरूर आयेगे। न्याय, सहज, सरल उपलब्ध होगा। त्वरित न्याय प्राप्त हो। तभी तो नये विधेयक में आरोप पत्र दाखिल किये जाने से 60 दिनों के भीतर न्यायालय को आरोप तय करना होगा और विचारण प्रारम्भ करना होगा। विचारण समाप्त होने के 30 दिन के भीतर न्यायाधीश को निर्णय सुनाना होगा। और इसके 07 दिवस के भीतर निर्णय की प्रति ऑनलाइन अपलोड करनी होगी। कुछ विशेष मामलों में निर्णय सुनाने की समयावधि 60 दिनों के लिये बढ़ाई जा सकती है। नये विधेयकों को सही क्रियान्वित किया गया तो नि:संदेह त्वरित न्याय प्राप्त होगा जब ये विधेयक कानूनी रूप लेंगें तो पूरा क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम सुधरेगा एवं न्यायाधीश, प्रोसीक्यूटर, पुलिस सभी जबावदेह बनेंगे।

(लेखिका माधव विधि महाविद्यालय की प्राचार्या हैं)

Next Story