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किसानों की पाठशाला से खेती के गुर

इस पाठशाला के माध्यम से किसानों को उन्नति खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं। खरीफ की फसलों की तैयारी के लिए प्रदेश की कुल 14,818 ग्राम सभाओं में पाठशालाएं चलायी जाएंगी।

किसानों की पाठशाला से खेती के गुर
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किसानों की आय दोगुनी करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसके लिए तरीकों का खाका खींचने में लगे हैं। इसके लिए जहां कई योजनाएं चलायी जा रही हैं, वहीं इस दिशा में अहम कड़ी हैं किसान पाठशाला। इस पाठशाला के माध्यम से किसानों को उन्नति खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं। खरीफ की फसलों की तैयारी के लिए प्रदेश की कुल 14,818 ग्राम सभाओं में पाठशालाएं चलायी जाएंगी। योगी आदित्यनाथ सरकार 'दि मिलियन फार्मर्स स्कूल योजना' के तहत इन दिनों पूरे प्रदेश में ये किसान पाठशालाएं आयोजित कर रही है।

पाठशालाओं में किसानों को कृषि, पशुपालन, उद्यान, मत्स्य पालन, रेशम कीट पालन की नई तकनीकी के बारे में बताया जा रहा है। इसके अतिरिक्त मृदा परीक्षण, बीजों की प्रजातियों, उनकी उपलब्धता, बीज शोधन, कीट रोग नियंत्रण, कृषि विविधीकरण, फसल बीमा योजना, जैविक खेती, पौध रोपण, संरक्षित सिंचाई, खेत तालाब योजना की अहम जानकारी दी जा रही है। किसानों को बताया जा रहा है कि कैसे वे अपनी लागत कम करके ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। इसके साथ ही किसानों को बोई जाने वाली फसलों, सब्जियों तथा अन्य विषयों से संबंधित जानकारी पाठशाला में दी जा रही है। यहां किसान उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं और अहम जानकारियां हासिल करने से लेकर अपनी समस्याओं को भी सामने रख रहे हैं।

ऐसी ही किसान पाठशाला के एक किसान का सवाल है कि जिस पशु (बछड़ा, पड़वा और अनुत्पादक गाय) का कोई उपयोग नहीं है, उसे छोटा किसान भला क्यों पालेगा? हम मुश्किल से अपना पेट पाल पाते हैं। अनुपयोगी पशुओं को क्या खिलाएंगे? वहीं कुछ अन्य किसानों का सवाल है कि उन्हें आवारा जानवरों ने परेशान कर रखा है, जिनकी वजह से गेहूं की फसल को कई बार बोना पड़ा। छोटी पूंजी के किसानों के लिए यह बड़ी समस्या है। किसानों का कहना है कि जब हमारी फसल बचेगी, तब तो उपज बढ़ेगी? प्राथमिक तौर पर किसान सिर्फ इतना चाहते हैं कि सरकार आवारा पशुओं से फसल की सुरक्षा की गारंटी दे दे। ऐसे पशुओं से सर्वाधिक क्षति छोटे किसानों को होती है। किसानों का कहना है कि किसान पाठशालाएं तो उपयोगी हैं, लेकिन इसके साथ ही किसानों की मूल समस्याओं पर भी ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी है। एक सच ये भी है कि किसानों को सरकारी योजना के तहत खाद और यूरिया मिल तो रही है, लेकिनर छोटे किसानों को इसके लिए भी बिचौलियों का सहारा लेना पड़ता है और वे अपना मुनाफा जोड़कर ही छोटे किसानों को खाद उपलब्ध कराते हैं।

फिलहाल इन किसान पाठशालाओं में कृषि विभाग के अधिकारी और विशेषज्ञ किसानों खासतौर पर महिलाओं को बीज शोधन और बीज अंकुरण की तकनीक समझा रहे हैं। किसानों को यह भी बताया जा रहा है कि मानसून की पहली-दूसरी बारिश का पानी खेतों में इकट्ठा करने के लिए कम से कम एक फुट ऊंची मेड़ जरूर बांधी जाये, क्योंकि बारिश के इस पहले पानी में नाइट्रोजन की अच्छी खासी मात्रा होती है, जो खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाती है।

रासायनिक खाद के अंधाधुंध उपयोग से कई क्षेत्रों में मिट्टी की उर्वर क्षमता कम होती जा रही है। ऐसे कम उर्वर मिट्टी के खेतों में फसल उपजाने वाले किसानों को बताया जा रहा है कि वे अपने खेतों की उर्वरता को बचाये रखने के लिए रासायनिक खाद का प्रयोग कम कर दें, वरना उनकी जमीन पूरी तरह से बंजर हो जाएगी। किसानों को ज्यादा से ज्यादा गोबर की खाद का प्रयोग करने की सलाह दी जा रही है। साथ ही उन्हें कम्पोस्ट का भी प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

निश्चित रूप से किसान पाठशाला के रूप में केंद्र की पहल पर उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सकारात्मक पहल की शुुरुआत की है। भारत की साठ फीसदी आबादी कृषि पर ही आधारित है और इसमें छोटे किसानों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। विडंबना ये है कि इन छोटे किसानों के पास ने तो कृषि के उन्नत साधन हैं और न ही उन्हें कृषि कार्य के लिए जरूरी आधुनिक तकनीकी की पर्याप्त जानकारी है। ऐसे में इन किसान पाठशालाओं का आयोजन छोटे किसानों के बीच खेती को लेकर जागरूकता पैदा कर सकेगा और वे नयी जानकारियों तथा तकनीकी से लैस होकर खेती से बेहतर आय हासिल कर सकेंगे।

Updated : 2 July 2018 7:21 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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