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मजहबी अलगाववाद से शांति की तरफ बढ़ता कश्मीर

मजहबी अलगाववाद से शांति की तरफ बढ़ता कश्मीर
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बलबीर पुंज

जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में तीन दिवसीय (22-24 मई) जी-20 पर्यटन कार्यसमूह की तीसरी बैठक हुई। यह घटनाक्रम कश्मीर के संदर्भ में इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि जी-20 समूह वैश्विक आर्थिकी में 85 प्रतिशत, व्यापार में 75 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी रखता हैं। डल झील के निकट आयोजित भव्य कार्यक्रम में यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी सहित 29 देशों के 60 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सोचिये, जो क्षेत्र अगस्त 2019 तक— केवल मजहब केंद्रित आतंकवाद, पाकिस्तान समर्थित अलगाववाद, उन्मादी भीड़ द्वारा सेना के काफिले पर आए दिन होने वाले पथराव, जिहादियों को स्थानीय लोगों द्वारा समर्थन और भारत-हिंदू विरोधी नारों के लिए कुख्यात था, वहां विश्व के सबसे बड़े बहुदेशीय बैठकों में से एक का सफल आयोजन हुआ है। आखिर यह सब कैसे संभव हुआ?

भारत ने जी-20 बैठक के माध्यम से कश्मीर में हो रहे अद्भुत परिवर्तन को दुनिया के साथ साझा किया है, तो भारत-विरोधियों (आंतरिक-बाह्य) का कुंठित होना स्वाभाविक है। इस क्षेत्र पर आर्थिक-राजनीतिक रूप से संकटग्रस्त पाकिस्तान की अपने कु-जन्म से गिद्ध दृष्टि है, तो इसमें उसे वैश्विक सहयोग के नाम पर केवल चीन, सऊदी अरब और तुर्किये का समर्थन प्राप्त है। इसलिए इन तीनों देशों के प्रतिनिधि, श्रीनगर की बैठक में भी नहीं पहुंचे। परंतु इस लामबंदी को दुनिया के शक्तिशाली देशों ने श्रीनगर की जी-20 बैठक में शामिल होकर पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा को पुन: ध्वस्त कर दिया। इसका तात्पर्य यह है कि विश्व के अधिकतर देशों के लिए कश्मीर अब विवादित नहीं है।

इस बदलाव के दो प्रमुख कारण है। पहला- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत, अपने आंतरिक मामलों में किसी भी विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ कड़ा संदेश दे रहा है। जब गत दिनों संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के विशेष दूत डॉ. फर्नांड डी वारेंस ने सोशल मीडिया पर कश्मीर में मनगढंत मानवाधिकार उल्लंघन का हवाला देकर श्रीनगर की जी-20 बैठक को कलंकित करना चाहा, तो भारत ने उन्हें आईना दिखाने में विलंब नहीं किया। मोदी सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि कश्मीर पर अब यदि किसी प्रश्न पर चर्चा संभव है, तो वह केवल पाकिस्तान द्वारा कब्जाया कश्मीर (पीओके) है।

दूसरा— धारा 370-35ए के संवैधानिक परिमार्जन के बाद जम्मू-कश्मीर में रौनक लौटने लगी है। दशकों तक हिंसाग्रस्त घाटी में जनजीवन लगभग सामान्य है— जो कुछ समय पहले तक अकल्पनीय था। पिछले वर्ष यहां की आर्थिक विकास दर में 14.64 प्रतिशत और कर राजस्व में 31 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस दौरान उसे 1548 करोड़ रुपए का निवेश प्राप्त हुआ, जो कि किसी भी वित्त वर्ष की तुलना में अधिक है। क्षेत्र के समेकित विकास हेतु मार्च 2023 में भारत सरकार ने 1,18,500 करोड़ रुपए का बजट पारित किया था।

बात केवल यही तक सीमित नहीं। पारदर्शी व्यवस्था से जम्मू-कश्मीर में परियोजनाओं का कार्यान्वयन भी 10 गुना बढ़ गया है। वर्ष 2018 में 9,229 परियोजनाएं पूर्ण हुई थी, तो वित्त वर्ष 2022-23 में 92,560 परियोजनाओं को पूरा कर दिया गया। पिछले चार वर्षों में, स्व-रोजगार योजनाओं के अंतर्गत 7,70,000 नए उद्यमी पंजीकृत हुए है। 2019 से अब तक 28,000 से अधिक नियुक्तियां की जा चुकी हैं, तो वर्ष 2023 में चिन्हित 12,000 रिक्तियों में से आधी प्रक्रियाधीन है। 450 सार्वजनिक सेवाओं को ऑनलाइन कर दिया गया है।

पर्यटन— जम्मू-कश्मीर के सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रमुख आधार है। वर्ष 2022 में यहां लगभग 1.8 करोड़ पर्यटक (विदेशी सहित) आए थे, जिसके इस वर्ष दो करोड़ के पार होने की अपेक्षा है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए जम्मू-कश्मीर में 300 नए पर्यटन केंद्र खोलने का निर्णय लिया गया है। देर रात तक लोग प्रसिद्ध शिकारा की सवारी का आनंद ले रहे हैं। घाटी में रात्रि बस सेवा बहाल की गई है, तो स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालय भी सुचारू रूप से चल रहे हैं। दुकानें भी लंबे समय तक खुली रहती हैं। तीन दशक से अधिक के अंतराल के बाद नए-पुराने सिनेमाघर भी सुचारू रूप से संचालित हो रहे हैं।

भारतीय फिल्म उद्योग ने बदलते कश्मीर के साथ अपने पुराने संबंधों को पुनर्जीवित करना प्रारंभ कर दिया है। एक दौर में घाटी, फिल्मकारों का पसंदीदा गंतव्य था। जैसे ही कश्मीर में कट्टरपंथी इस्लाम का वर्चस्व बढ़ा, क्षेत्र में बहुलतावाद का दम घुट गया। कश्मीर में सिनेमाघरों को जहां जबरन बंद कर दिया गया, तो फिल्मकारों को अपनी जान का डर सताने लगा। धारा 370-35ए हटने के बाद घाटी में वही आकर्षण 2021 की नई फिल्म नीति के साथ लौट आया है। इसमें फिल्म निर्माताओं को कई सुविधाओं और सब्सिडी के साथ शूटिंग हेतु उचित सुरक्षा नि:शुल्क दी जा रही है। गत दो वर्षों में लगभग 350 से अधिक शूटिंग करने की अनुमति दी गई है, जो कि बीते चार दशकों में सर्वाधिक है। इसमें केवल मुख्यधारा की हिंदी भाषी फिल्में-विज्ञापन आदि ही नहीं, तेलगु, कन्नड़, पंजाबी, उर्दू भाषी फिल्म परियोजनाएं भी शामिल है। प्रसिद्ध फिल्मकार करण जौहर और अभिनेता शाहरुख खान भी अपनी फिल्मों की शूटिंग करने घाटी आ चुके है।

जम्मू-कश्मीर फिल्म उद्योग को भी बढ़ावा मिले, इसके लिए स्थानीय कलाकारों को काम देने वालों को अतिरिक्त सब्सिडी दी जा रही है। इसी कारण कश्मीरी अभिनेताओं को मुख्य भूमिका में लिया जा रहा है, जो पहले कभी नहीं हुआ। फिल्म निर्देशक ओनिर धर की अगली फिल्म चाहिए थोड़ा प्यार, जिसकी शूटिंग कश्मीर के गुरेज घाटी में हुई है— उसमें अधिकतर अभिनेता कश्मीरी है। यह सब इसलिए संभव हो पाया है, क्योंकि इस केंद्र शासित प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। स्वतंत्र आतंकवाद-विरोधी कार्रवाइयों से सीमा पार से घुसपैठ और जिहादी घटनाओं में तुलनात्मक रूप से भारी गिरावट आई है, तो मजहबी अलगाववाद की कमर ही टूट गई है। कश्मीर में उपरोक्त सफल परिवर्तन तब तक अधूरा है, जब तक घाटी के मूल बहुलतावादी दर्शन के ध्वजवाहक— पंडित अपने घर नहीं लौट आते और वहां सुरक्षित अनुभव नहीं करते। यह ठीक है कि कश्मीर अभी अराजकता से शांति की ओर एक संतोषप्रद यात्रा पर है, परंतु उसे अभी इस दिशा में एक लंबा सफर और तय करना है।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।)

Updated : 25 May 2023 8:08 PM GMT
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City Desk

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