जनसेवा को हमेशा आगे रखा प्रभात जी ने

जनसेवा को हमेशा आगे रखा प्रभात जी ने
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लेखक - बच्चन बिहारी

भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राज्यसभा के पूर्व सांसद और मप्र भाजपा के पूर्व अध्यक्ष प्रभात झा को दैहिक से दैविक हुए एक वर्ष व्यतीत हो चुका है। 25 जुलाई को उनकी प्रथम पुण्य तिथि है। प्रभात जी के साथ मेरी अनेक यादें जुड़ी हुई हैं।

मेरी उनसे अंतिम मुलाकात मार्च के महीने में एक पारिवारिक आयोजन में होटल सेंट्रल पार्क में हुई थी। तब वे पूर्ण स्वस्थ थे। वे अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए प्रभातजी होंगे लेकिन मेरे लिए हमेशा बड़ा बाबू ही रहेंगे। उनको यह नाम उनके परिवार के बड़े बुजुर्गों ने दिया था। वे नाम के अनुरूप ही बड़ा बाबू ही बने। मुझे अच्छी तरह याद है। 25 जून 1975 को आपातकाल घोषित होते ही वे अपने पिता के साथ ग्वालियर आ गए थे। जेसी मिल ग्वालियर में कार्यरत उनके बहनोई साहब परमानंद झा जी उपनगर ग्वालियर के लखेरा गली में रहते थे। बिल्कुल सेफ जगह थी। परमानंद जी के यहां समाज के लोगों की बैठकें वगैरह होती रहती थी। मेरे पिताजी देवेंद्र मिश्र उन दिनों शासकीय क्षेत्रीय मुद्रणालय ग्वालियर मे मुलाजिम थे और सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहते थे।

प्रभातजी के बहनोई साहब मेरे पिताजी को दूर की किसी रिश्तेदारी के तहत मामाजी कहते थे। दोनों में ससुर-दामाद जैसा विचार व्यवहार था। इस नाते मेरा उनके यहां जाना -आना लगा रहता था। वहीं मेरी पहली मुलाकात प्रभातजी से हुई। उनके बहनोई बोले-इनसे मिलिए- ये हैं बड़ा बाबू, मेरे साले साहब प्रभात झा। उसी दिन पता चला कि प्रभात जी का जन्म स्थान भी मेरा गांव हरिहरपुर( दरभंगा जिला) है। इसके तत्काल बाद हम दोनों के बीच स्थाई भाईचारा कायम हो गया। ग्वालियर आने के बाद प्रभातजी के सामने कई तरह की चुनौतियां थीं। मुंबई में उनके पिताजी का कारोबार चौपट हो गया था। अब सब कुछ नए सिरे से करना था। कुछ समय ग्वालियर में बिताने के बाद उनके पिता पानेश्वर झा जी सीतामढ़ी स्थित अपने गांव कोरियाही चले गए। उन दिनों सीतामढ़ी भी मधुबनी जिला में आता था।

विपरीत परिस्थिति में भी बड़ा बाबू ने हिम्मत नहीं हारी। उनके प्रभात बनने की कहानी भी दिया और तूफान से कम नहीं थी। संघर्ष के चट्टान को भी चीरकर आगे बढ़ने का जज्बा उनकी हौसला अफजाई करती गई और वे आगे बढ़ते गए। दो साल बाद 1977 में हुए आमचुनाव ने देश की दशा और दिशा ही बदल दी। तब तक प्रभात जी तत्कालीन जनसंघ के नेताओं के सम्पर्क में आ चुके थे। खुद को स्थापित करने का समर अब भी शेष था। लेकिन उम्मीद की किरणें प्रभात जी के जीवन में 'नया प्रभातÓ के आगमन की दस्तक दे रही थी। राष्ट्रीय राजनीति से लेकर प्रांतीय स्तर तक अदला बदली होती रही मगर मिशन प्रभात अपनी जगह जोरशोर से गतिमान रहकर अपना दिनमान बदलने में मशगूल रहा।

1980 में भारतीय जनसंघ का नाम बदलकर भारतीय जनता पार्टी हो गया। इसके बाद के कालखंड में सरदार आंग्रे को तत्कालीन डीआईजी द्वारा गिरफ्तार करने के मुद्दे पर महाराज बाड़े पर होने वाली आमसभा में दिए भाषणों ने प्रभात झा को नेता बना दिया। नेता बनने के साथ ही दैनिक स्वदेश में पत्रकारिता भी चलती रही। इधर मैं भी दस सालों में अपने शैक्षणिक नाम रामकुमार मिश्र से कवि, लेखक, पत्रकार बच्चन बिहारी के रूप में स्थापित हो चुका था। इसी दौरान अपरिहार्य कारणों से मुझे स्वदेश ज्वाइन करना पड़ा। इस संक्रमण काल में मुझे प्रभातजी ने भिन्न विचारधारा होने के बावजूद पूर्ण सहयोग दिया। अगले छह सात साल बाद प्रभात जी भोपाल में मीडिया इंचार्ज बना दिए गए। बाद में उन्हें भोपाल से दिल्ली भेज दिया गया। प्रभात झा के उत्थान में यह बदलाव टर्निंग पाइंट साबित हुआ।

अपने संघर्ष और इच्छाशक्ति के बल पर वे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राज्य सभा सांसद और मप्र भाजपा के अध्यक्ष तक बने। कहना गलत नहीं होगा कि प्रभात जी के उत्थान में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का विशेष योगदान रहा। जो लोग प्रभातजी को नजदीक से जानते हैं वे उनके संघर्ष से वाकिफ हैं। उन्होंने जनसेवा को पहले नंबर पर रखा फिर घर और परिवार की चिंता की। प्रभात झा केवल राजनीतिक और पत्रकार ही नहीं थे, वे एक लेखक भी थे। उनकी तकरीबन एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिंदी के अलावा अपनी मातृभाषा मैथिली के अलावा संस्कृत और अंग्रेजी पर उनका समान अधिकार था।

वे दिल्ली, भोपाल और ग्वालियर के साथ ही अपने गृहराज्य बिहार की माटी से भी जुड़े थे। सीतामढ़ी के पुनौराधाम में मां जानकी के मंदिर का अत्याधुनिकीकरण उनका ड्रीम प्रोजेक्ट था। उनके जीवन का निचोड़ यही है कि बिहार का एक नौजवान ग्वालियर आता है। अपरिचितों के बीच अपनी जमीन तैयार करता है। उसकी कामयाबी से समकक्षों मे ईर्ष्या और जलन पैदा होती है। अपने मानसिक तरंगद्धैर्य को काबू में रख ग्वालियर से चलकर बजरिये भोपाल एक दिन दिल्ली के उच्च सदन का दरवाजा खटखटा देता है। ऐसे प्रभात झा एक समृद्ध विरासत छोड़ के गए हैं जिसका उत्तराधिकार अब तुष्मुल और अयत्न झा के युवा कंधों पर है। ईश्वर से प्रार्थना है कि वे इन बच्चों को अपने यशस्वी पिता के संकल्पों को पूर्ण करने का मार्ग प्रशस्त करें। इन्हीं आशा अपेक्षा के साथ प्रभात झा 'बड़ा बाबू' को प्रथम पुण्यतिथि पर सादर नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !

(लेखक - बच्चन बिहारी, वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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