क्या आपका सफर भी अब ऑटो पायलट मोड पर है

क्या आपका सफर भी अब ऑटो पायलट मोड पर है
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उपवन की सुगंध का होश नहीं, गुलों को बड़ा दिलकश कहते हैं। सफर हो रहा बेहोशी में, नजारों को बहुत सरस कहते हैं। सुबह होती है, शाम होती है। जिंदगी यूं ही तमाम होती है। उर्दू के शायर मुंशी अमीरुल्लाह ने जब यह शायरी लिखी होगी, तो सोचा नहीं होगा कि यह शेर इस कदर लोग अपने जीवन में आत्मसात कर लेंगे। हालांकि ग्रामीण परिवेश तो अभी काफी कुछ इस शायरी से अछूता है, पर शहरों की जिंदगी पूरी तरह से यांत्रिक हो चली है। वैज्ञानिकों ने आदमी की काहिली को समझ कर, मशीनों को ऑटो पायलट मोड पर चलाने की कई विधियों तथा प्रक्रियाओं को इजाद किया,ताकि यंत्रों के परिचालन की निर्भरता मानव पर ज्यादा न रहे। मशीनी ऑटो पायलट मोड के आविष्कार ने आदमी की सजगता को इस कदर कम कर दिया है कि वो अपनी जिंदगी को भी स्वचलित रूप से चलाने के उद्यम कर रहा है।

सजगता कहां है?

हमारे पूर्वजों ने अपने सर्वाइवल को बनाए रखने के लिए कई संकटों ओर बाधाओं का सामना सजग तथा होश में रह कर किया, जिससे उन्हें स्वभावगत उत्पन्न सजगता का लाभ जीवन को जीने ओर निसर्ग के अमृत समान सानिध्य प्राप्त करने के लिए मिला। पूर्वजों ने इस प्रकार जो स्वभावगत सजगता तथा खुशी अर्जित की थी, वह अब गायब सी प्रतीत हो रही है।इसी स्थिति के फलस्वरूप 'बीइंग माइंडफुलÓ जैसे पाश्चात्य शब्दों से प्रेरणा दी जा रही है। पशु जगत को अवश्य ही ऑटो मोड का चस्का नहीं लगाया गया है, फलस्वरूप उनकी सजगता, सतर्कता तथा फाइट आर फ्लाइट मोड का नैसर्गिक गुण जिंदा है। आराम तलब होना न केवल हमारी लड़ने की क्षमता घटा रहा है, अपितु खुशी के विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों से भी दूर कर रहा है।

यात्रा ऑटो पायलट मोड के हवाले

भागदौड़ की जिंदगी में बारिश की बूंदों का अनुभव तथा मोहक संगीत का आनंद अब दूर की कोड़ी होता जा रहा है। पक्षियों के कलरव की लयबद्ध संगीत धुन उलझे हुए मन पर असरहीन है। पवन के ठंडे झोंके, मात्र फिल्मी गीतों में ही रह गए हैं। रोज सुबह की नित्य क्रिया तथा ब्रेकफास्ट औपचारिकता बन कर रह गया है। खाना पेट भरने के लिए है, उसके रस्सवादन का अनुभव तथा उससे उत्पन्न खुशी के हार्मोन लापता हैं। आदमी कृत्रिम खुशी सप्ताहांत में बाहर जाकर विभिन्न दुकानों से खरीदता है। ईश्वर द्वारा प्रदत्त यह खूबसूरत रचना मशीन में बदल गई है, ओर मन संपदा एकत्रित करने की होड़ में शतरंज खेलने में व्यस्त है। जीवन रूपी गाड़ी का चालन अवचेतन के हवाले कर, चालक निश्चिंतता की बेहोशी में है। अवचेतन अब ऑटोपायलॉट की भूमिका में आकर, खुद की ख्वाहिशों के अनुरूप गाड़ी चला रहा है जो कभी भी दुर्घटना ग्रस्त हो सकता है।

अवचेतन की गुणवत्ता

मजे की बात यह है कि ऑटो पायलट मोड से उत्पन्न अशांति के निर्मूलन के लिए मनुष्य अध्यात्म का सहारा लेना चाहता है, प्रवचन सुनता है, पर्यटन पर जाता है, योग ओर ध्यान करने की नाकाम कोशिश करता है, परंतु अंदर झांक कर नहीं देखता कि अपने वाहन का स्टेरिंग ऑटो मोड पर अवचेतन के हवाले कर रखा है। मन भी बहुत शातिर है, वो अपनी तृप्ति के लिए डोपामिन रसायन के रिसाव के लिए ही प्रयत्नशील रहता है और ड्राइवर को दिलासा देता रहता है कि सब ठीक है। अब हाथ-पैर बांध कर अध्यात्म के सागर में भले ही कूद जाओ, मिलना कुछ नहीं है। जब तक हर पल की सजगता होश पूर्वक नहीं होगी, जीवन के अमृत के आनंद का अनुभव नहीं होगा तथा न ही जीवंत होने की चेष्टा हो सकती है।

होशपूर्वक सफर

यांत्रिक जीवन पद्धति से बाहर आकर होश पूर्वक, सफर ही जी लेने को सार्थक कर सकता है। बरसों से भंडारित विचारों के प्रदूषण से भी छुटकारा पाना एकदम आसान नहीं है। दृढ़ इच्छा शक्ति तथा अनुशासन से ही अपने वाहन को मैनुअल मोड पर चलाने की आदत विकसित हो सकेगी। जैसे-जैसे सजगता बढ़ेगी, आप देखेंगे कि छोटे-छोटे कदम तथा पड़ाव रूह को कितनी खुशी का अनुभव कराते हैं। हमारे पूर्वजों द्वारा अर्जित जिजीविषा ओर चुनौतियों से लड़ने की क्षमता को नष्ट न होने दें, अन्यथा भावी पीढ़ी का सर्वाइवल दुष्कर होता जाएगा। जब हर क्षण मन अनावश्यक विचारों से मुक्त होकर होश में रहेगा, तो योग ध्यान से उपक्रम स्वयमेव ही घटित होने लगेंगे।

मैनुअल मोड में जीने का आनंद

अपने नियमित क्रियाकलापों को ध्यान से अनुभव तथा फोकस करने की प्रवृत्ति का विकास करेंगे तो धीरे-धीरे अवचेतन भी इस नए अनुभव का अभ्यस्त होकर, आपको होशपूर्ण चालन करने में सहयोग करेगा। ऐसे में प्रकृति के अनंत आयाम तथा रूपों के सम्मोहन से आत्मा के तल पर अभूतपूर्व संतोष की जो प्राप्ति होगी, उससे रोम-रोम आल्हदित हो उठेगा। कदम स्वयं नृत्य करेंगे कुदरत का नाद हर कोशिका को झंकृत कर देगा तभी अपने होने का अहसास ओर जीने की उमंग हर कोशिका में प्रवाहित होगी। आइए तुरंत ऑटो पायलट मोड से बाहर निकल, मैनुअल मोड पर चलाने का अनंत आनंद अनुभव करें।

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