राजद्रोह कानून को खत्म करने की पहल

राजद्रोह कानून को खत्म करने की पहल
X
प्रमोद भार्गव

अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा देशद्रोह या राजद्रोह कानून समाप्त करने की पहल उचित है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मानसून सत्र के अंतिम दिन गुलामी के प्रतीक रहे तीन प्रमुख कानूनों में आमूलचूल बदलाव के विधेयक लोकसभा में पेश किए हैं। इनमें परिवर्तन की प्रतीक्षा लंबे समय से की जा रही थी, क्योंकि फिरंगी हुकूमत के समय वजूद में लाए गए ये कानून स्वतंत्रता सेनानियों को अधिकतम दंड देने की मानसिकता से बनाए गए थे। जबकि कोई भी विधि सम्मत प्रक्रिया दंड की अपेक्षा न्याय के सारोकारों से जुड़ी होनी चाहिए। शाह ने इन्हें संसद के पटल पर रखते हुए कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 15 अगस्त को लाल किले से दिए संबोधन में पांच प्रण किए थे, इनमें एक प्रण गुलामी की निशानियों को खत्म करना था। ये प्रस्तावित विधेयक उसी परिप्रेक्ष्य में हैं। इन नए कानूनों के अंतर्गत दंड अपराध रोकने की भावना पैदा करने के लिए दिया जाएगा। ये नए कानून महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर केंद्रित हैं। पहली बार मॉब लीचिंग के लिए सात साल उम्रकैद या मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। राजद्रोह कानून ब्रिटिश सत्ता को कायम रखने के लिए था, इसे अब खत्म किया जा रहा है।Ó कुछ प्रचलित धाराओं की संख्या भी बदली गई है। जैसे धोखाधड़ी 420 धारा के अंतर्गत थी, इसे अब धारा 316 के रूप में जाना जाएगा। इसी तरह बलात्कार की धारा 376 को 63 में बदला जाएगा।

प्रमुख रूप से अंग्रेजी राज का पर्याय बने तीन मूलभूत कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं। 1860 में बने इंडियन पेनल कोड को अब भारतीय न्याय संहिता, 1898 में बने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड को अब भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा। कुल 313 धाराएं बदली जाएंगी। इनमें चार धाराएं सबसे ज्यादा असरकारी साबित होंगी। एक, राजद्रोह कानून से 'राजद्रोहÓ शब्द विलोपित कर दिया जाएगा। नए प्रारूप में धारा 150 के तहत आरोपी को सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। वर्तमान में आईपीसी की धारा 124-ए में राजद्रोह के आरोप में तीन साल से उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।

दो, मॉब लीचिंग यानी उन्मादी भीड़ द्वारा हत्या और हिंसा के लिए अलग से सजा का प्रावधान किया गया है। इसे पंथ निरपेक्ष रखा गया है। क्योंकि कभी-कभी चोर को भी भीड़ मार देती है। झारखंड और अन्य कई अशिक्षित क्षेत्रों में महिलाओं को डायन बताकर समूह मार देता है। इन हत्याओं पर अब मॉब लीचिंग कानून लागू होगा। अभी तक ऐसे मामलों में हत्या की धारा 302 और दंगा या बलवा की धाराएं 147-148 के तहत कार्यवाही होती है। तीन, नाबालिग से दुष्कर्म या पहचान छिपाकर किए गए दुष्कर्म के आरोप में 20 साल का कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। विरोध नहीं करने के अर्थ का आशय सहमति नहीं निकाला जाएगा। मौजूदा स्थिति में नाबालिग से दुष्कर्म पर न्यूनतम सजा में सात साल की व्यवस्था है। इसी तरह राज्यों को अब असली पहचान छिपाकर संबंध बनाने वाले अपराधियों के लिए 'लव जिहादÓ जैसा पृथक कानून बनाने की जरूरत नहीं है। प्रस्तावित कानून में गलत पहचान बताकर नौकरी, पदोन्नति और अन्य प्रलोभन दिलाने के झूठे वादे कर दुष्कर्म के अंजाम को सजा के दायरे में लाया गया है। लव जिहाद इसी के अंतर्गत आएगा। चौथा, देश में पहली बार छोटे-मोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का क्रांतिकारी प्रावधान किया गया है। इन अपराधों में नशे में हंगामा और पांच हजार से कम की चोरी करने के आरोप में सामुदायिक सेवा की सजा दी जाएगी। ऐसी सजा में सार्वजनिक स्थलों पर पौधे लगाने जैसे प्रावधान शामिल हैं। हालांकि उच्च न्यायालय ग्वालियर ने इस तरह की सजाएं सुनाई हैं।

नए कानून में पहली बार आतंकवाद की इबारत को पारिभाषित किया गया है। यदि कोई व्यक्ति देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा को संकट में डालने के इरादे से कोई कृत्य करता है तो उसे नए कानून के हिसाब से सजा मिलेगी। अतएव देश के अस्तित्व को चुनौती देने वाले बाहरी या भीतरी असामाजिक तत्व कानूनी शिकंजे से बचने न पाएं, इसकी व्यवस्था के प्रावधान किए गए हैं। यही कानूनी प्रावधान बृहत्तर सामाजिक हित राज्य को भारत की संप्रभुता, अखंडता तथा राज्य की सुरक्षा से जोड़ते हैं। भारत के विरुद्ध सांप्रदायिक कट्टरता फैलाने और सरकार के लिए नफरत के हालात बनाने में भारत विरोधी विदेशी ताकतें सोशल मीडिया का मनचाहा एवं गलत दुरुपयोग करती हैं, इसलिए नए कानून में देश तोड़ने की कोशिश करने वाली ताकतों पर अंकुश के लिए कठोर कानूनी प्रावधान नए कानून में जरूरी है। इसीलिए इन नए कानूनों को गृह संबंधी मामलों की संसदीय स्थाई समिति को जांच-परख के लिए भेजा गया है, जिससे ये कानून आमजन के लिए युक्तिसंगत तो रहें ही, भारत की अखंडता की सुरक्षा के लिहाज से भी इनकी तार्किकता पेश आती रहे। (लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार हैं)

Next Story