भारत की कूटनीति

विश्व के दो दिग्गज देश भारत से व्यापारिक संबंध बढ़ाने में लगे हैं। यह भारत के लिए बड़े ही गौरव की बात है, क्योंकि विश्वभर में व्याप्त आर्थिक उथल-पुथल के बीच भारत ने अपनी विदेश नीति को कूटनीतिक अंदाज़ में आगे बढ़ाया है, जिससे उसका डंका बज रहा है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के कुछ दिनों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से टेलीफोन पर बातचीत की। दोनों नेताओं ने भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी में हुई प्रगति की समीक्षा की तथा व्यापार, महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों, ऊर्जा, रक्षा और सुरक्षा क्षेत्रों में सहयोग को और मजबूत करने पर विस्तृत विचार-विमर्श किया।
इस दौरान दोनों नेता साझा चुनौतियों से निपटने और साझा हितों को आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करने पर सहमत हुए। बताया गया कि दोनों नेताओं ने भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी में हुई प्रगति पर संतोष व्यक्त किया और सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग के निरंतर मजबूत होने की सराहना की।
बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप ने द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के साझा प्रयासों में तेजी बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया। बातचीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा कि राष्ट्रपति ट्रंप के साथ बहुत ही सौहार्दपूर्ण और सार्थक बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं ने भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों में हुई प्रगति की समीक्षा की तथा क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। भारत और अमेरिका वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए साथ मिलकर काम करते रहेंगे।
हालाँकि ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के प्रति उनका रवैया पूरी तरह अनुकूल नहीं रहा है। टैरिफ को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण भारत द्वारा बड़ी मात्रा में रूस से कच्चा तेल खरीदा जाना है। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से कच्चा तेल न खरीदे। इसी तरह ट्रंप बार-बार भारत के सबसे बड़े दुश्मन पाकिस्तान को गले लगाने की कोशिश करते रहे हैं, जिससे दोनों देशों के संबंधों में कटुता आई है।
हालाँकि अमेरिका भली-भांति जानता है कि उसकी अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान कम नहीं है। द्विपक्षीय व्यापार में अमेरिका ने भारत के प्रति कड़ा रुख अपनाने की कोशिश की, लेकिन टैरिफ को लेकर वह अपनी बात से कई बार पलटता भी रहा है। भारत ने जब से रूस से कच्चा तेल खरीदना शुरू किया है, तभी से यह अमेरिकी राष्ट्रपति को रास नहीं आ रहा। उनका जोर इस बात पर है कि भारत रूसी कच्चा तेल खरीदना बंद कर दे।
रूस से मिलने वाला कच्चा तेल वैश्विक मानक कीमतों की तुलना में सस्ता है। जब रूस को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपये के लेन-देन में कठिनाई आई, तो भारत ने तेल भुगतान के लिए अमीराती दरहम और चीनी युआन का इस्तेमाल शुरू किया। स्वाभाविक रूप से अमेरिका को यह रास नहीं आया।
भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदना और चीनी युआन व अमीराती दरहम में भुगतान करना, अमेरिका की उस रणनीति को कमजोर कर रहा था, जिसके तहत उसने रूस के विरुद्ध स्विफ्ट की अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की थी। पश्चिमी देशों की ओर से कई अपीलों और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत पर सार्वजनिक दबाव डालने के प्रयासों के बावजूद भारत ने रूसी तेल की खरीद जारी रखी। इस रुख से अमेरिका नाराज हुआ।
हालाँकि मौजूदा हालात में भारत की विदेश नीति बेहद कारगर साबित हो रही है। हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत की यात्रा कर द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के साथ पुरानी दोस्ती को बनाए रखने की बात दोहराई है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका के राष्ट्रपति भी यह समझते हैं कि भारत से संबंध बिगाड़कर उन्हें वैश्विक स्तर पर सफलता नहीं मिल सकती। इसी कारण व्यापार संबंध बढ़ाने के लिए उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत की है।
इस प्रकार, यह स्पष्ट रूप से भारत की एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता है।
