इंडिया केवल शब्द नहीं, ये राष्ट्रीय भावना है...

अमित कुमार सेन
भारत जिसे हम अंग्रेजी में इंडिया कहते हैं, यह शब्द हमारी राष्ट्रीयता का प्रतीक है। चुनावी राजनीति के चलते विपक्षी दलों के नए गठबंधन ने हाल ही में हुई एक बैठक मेंINDIA शब्द के मायने ही बदल दिए हैं। विपक्ष ने इसे न केवल अपने गठबंधन नाम बनाया बल्कि इसकी व्याख्या-Indian, N-National, D-Developmental, I-Inclusive, A-Alliance के रूप में की।
इंडिया शब्द भारत की वैश्विक पहचान है। इसे राजनीति के दायरे में समेटना राष्ट्रीय भावना को ठेस पहुंचाने जैसा ही है। और यह बात विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों को ध्यान में रखनी चाहिए। भारत में कुछ शब्द, प्रतीक और भारतीयता से जुड़ी हर वह संस्था, जो वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान बनाए रखती हैं उसके नाम और भाव दोनों के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। लोकतंत्र में विपक्ष की अपनी भूमिका है। लेकिन उन्हें वो नहीं करना चाहिए, जिसकी वजह से 'इंडियाÓ शब्द के मायने ही बदल जाएं?
अब थोड़ी उस बैठक की बात जहां से यह मुद्दा उठा। बेंगलुरु में 26 विपक्षी दलों की दो दिवसीय बैठक हुई, और वहीं नए गठबंधन का नाम इंडिया रखने का फैसला किया गया। बैठक के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और उद्धव ठाकरे प्रेस वार्ता को संबोधित करते देखे गए, जबकि विपक्ष को एकजुट करने का मुख्य किरदार बताए जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव बिना संबोधन के पटना लौट गए। तो सवाल उठता है कि क्या नीतीश नाराज़ हैं?
दरअसल नीतीश कुमार और ममता बनर्जी दोनों के समर्थक उन्हें प्रधानमंत्री बनता देखना चाहते है। और यही बात चुनाव से पूर्व ही विपक्ष की एकता को महत्वाकांक्षाओं के टकराहट तक ले जाती है। हो सकता है कि आम चुनाव आते-आते ऐसे ही मुद्दों को लेकर इन दलों में मनमुटाव हो और यह कुनबा बनने से पहले ही बिखर जाए। हालांकि नीतीश कुमार ने बैठक के अगले दिन एक सभा में सफाई दी कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में वे इसलिए शामिल नहीं हो सके क्योंकि उन्हें राजगीर लौटना था और कोई बात नहीं है। हम साथ हैं। देश हित में जुड़े हैं। इस बीच इंडिया नाम को लेकर पूर्व पत्रकार और अब कांग्रेस की नेता सुप्रिया श्रीनेत्र मुखर हैं। वे कहती हैं यदि ऐसा ही है तो फिर भारतीय जनता पार्टी बीजेपी फॉर इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, खेलो इंडिया, डिजिटल इंडिया पर क्यों चल रही है?
सांसद संजय राउत का कहना है कि I.N.D.I.A नाम पर विवाद करने वाले देशभक्त नहीं हैं। इंडिया नाम पर पार्टी नहीं है क्या? भाजपा के नाम में भी भारत है। मोदी इंडिया का मतलब क्या था? इस देश का हर नागरिक इंडिया है। इस बार केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ इंडिया चुनाव लड़ेगा और जीतेगा हमारी अगली बैठक मुंबई में जल्द ही होगी।
सुप्रिया श्रीनेत्र और संजय राउत के बयान यह दर्शाते हैं कि विपक्ष इस बार इंडिया शब्द को ही चुनावी मुद्दा बनाकर आम चुनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की रणनीति पर चल रहा है। बहरहाल, दिल्ली में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए की बैठक को संबोधित किया तो उनका कहना था कि उनका गठबंधन यानी NDA का मतलब N-न्यू इंडिया, D-डेवलपमेंट, A-एस्पिरेशन है। कुल मिलाकर 2024 का आम चुनाव INDIA बनाम NDA के बीच होगा। चर्चा यह भी है गठबंधन का नाम INDIA टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने सुझाया। राहुल गांधी ने समर्थन दिया, पर नीतीश कुमार ने ऐतराज जताया। गठबंधन का नाम इंडिया रखने के बाद इसकी टैगलाइन 'जीतेगा भारतÓ रखी गई है। यह टैगलाइन कई क्षेत्रीय भाषाओं में चलाई जाएगी।
एक तरफ विपक्षी एकजुटता की ये कोशिशें हैं तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसा राज्यों में राजनीति की धीमी आंच पर अलग ही खिचड़ी पक रही है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और विधायक ओम प्रकाश राजभर ने एनडीए का दामन थाम लिया है। लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान को NDA की मीटिंग के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गले लगाया। चिराग इतने भावुक हो गए कि उन्होंने एक बार फिर खुद को हनुमान बताया और कहा कि जीत का मंत्र यही है कि हम सब मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ें। हम जीतेंगे, क्योंकि मोदी का चेहरा ही सबसे बड़ा चेहरा है। विपक्ष का साथ आना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बेहतर है। लेकिन साथ आना और साथ चलना, दो अलग-अलग बातें हैं। साल 2024 में अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। विपक्ष यदि सही अर्थों में एकजुट होकर चुनाव लड़े तो भाजपा के लिए जीत उतनी आसान नहीं होगी। और भाजपा भी राजनीति के इस नाजुक संतुलन को समझ रही है। उसकी रणनीति में विपक्ष की इन कोशिशों को नजरअंदाज करने का रवैया कतई नहीं है। लेकिन विपक्ष को मतभेद और मनभेद पूरी तरह दूर करने होंगे। इसके साथ ही भाजपा की जीत के मूल मंत्रों हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और कल्याणवाद की काट भी खोजनी होगी। कुल मिलाकर INDIA और NDA' दोनों के नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि राष्ट्र पहले आता है, दलीय राजनीति बाद में। मामला चाहे राष्ट्र से जुड़े शब्द का हो या राष्ट्र की पहचान और गरिमा का, उससे खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। क्योंकि राष्ट्र से लोगों की भावनाएं जुड़ी होती हैं। और देश जनता से चलता है। लोकतंत्र में जनता ही सबसे पहले आती है। (लेखक पत्रकार और संचार विशेषज्ञ हैं)
