संपूर्ण मानवता को दिशा देगी कलाकर की स्वतंत्रता

संपूर्ण मानवता को दिशा देगी कलाकर की स्वतंत्रता
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डॉ अंजना झा

कला केवल रंगों, शब्दों, सुरों या मुद्राओं का खेल नहीं, बल्कि यह मानव आत्मा की सबसे गूढ़ और गहन अभिव्यक्ति है। कलाकार वह सेतु है, जो अतीत से वर्तमान और वर्तमान से भविष्य को जोड़ता है। उसकी कल्पना, उसकी संवेदना, उसकी दृष्टि—समाज, संस्कृति और मानवता की चेतना को आकार देती है। ऐसे में कलाकार को स्वतंत्रता क्यों चाहिए, यह प्रश्न केवल उसकी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे समाज की रचनात्मक ऊर्जा और प्रगति से जुड़ा हुआ है।

लेखिका - डॉ अंजना झा

रचनात्मकता की उड़ान के लिए

कलाकार की सबसे बड़ी पूँजी है उसकी कल्पनाशक्ति। जब उसे अपने विचारों, अनुभूतियों और भावनाओं को निर्भय होकर व्यक्त करने की स्वतंत्रता मिलती है, तभी उसकी रचनात्मकता अपने चरम पर पहुँचती है। यदि उस पर बंधन या सेंसरशिप लाद दी जाए, तो उसकी कला कृत्रिम और निष्प्राण हो जाती है। स्वतंत्रता ही उसे सच्चाई, मौलिकता और नवीनता के साथ अपनी बात कहने का साहस देती है।

समाज का सच्चा दर्पण बनने के लिए

कला समाज का आईना है। कलाकार अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त अच्छाई-बुराई, अन्याय-असमानता और मानवीय संवेदनाओं को उजागर करता है। कई बार वह उन प्रश्नों को उठाता है, जिन्हें समाज नजरअंदाज कर देता है। यदि कलाकार की अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाया जाए, तो समाज की सच्ची तस्वीर सामने नहीं आ पाएगी और जरूरी बदलाव की आवाज़ दब जाएगी।

परंपरा और नवाचार के संतुलन हेतु

भारत की सांस्कृतिक विरासत अत्यंत विशाल और विविधतापूर्ण है। कलाकार ही वह माध्यम है, जो परंपराओं को जीवित रखता है और साथ ही समय के साथ उनमें नवाचार और प्रयोग की चेतना भी भरता है। यदि कलाकार स्वतंत्र नहीं होगा, तो न तो परंपराएँ सुरक्षित रहेंगी और न ही कला में नई दिशाएँ विकसित हो पाएँगी।

मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए

कलाकार समाज की भावनाओं, पीड़ा, सुख-दुख, प्रेम, विद्रोह, आशा-निराशा आदि को अपनी कला के माध्यम से व्यक्त करता है। यह तभी संभव है, जब उसे बिना किसी डर या दबाव के अपनी बात कहने की आज़ादी हो। बंधनों में जकड़ा कलाकार न तो अपनी संवेदनाओं को ईमानदारी से व्यक्त कर सकता है, न ही समाज की भावनाओं को सही रूप में सामने ला सकता है।

सत्ता और अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए

इतिहास गवाह है कि जब-जब समाज में अन्याय, शोषण या अत्याचार हुआ है, तब-तब कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से उसका विरोध किया है। उनकी स्वतंत्र अभिव्यक्ति ने समाज को जागरूक किया, बदलाव की लहरें पैदा कीं। यदि कलाकार की स्वतंत्रता छीन ली जाए, तो समाज एक सशक्त चेतना और बदलाव के प्रेरक से वंचित हो जाएगा।

अतः स्पष्ट है कि कलाकार की स्वतंत्रता केवल उसकी निजी जरूरत नहीं, बल्कि समाज, संस्कृति और मानवता की प्रगति के लिए अनिवार्य है। जब कलाकार निर्भय होकर अपनी बात कहता है, तब समाज भी सोचने, समझने और बदलने के लिए प्रेरित होता है। कला की आत्मा स्वतंत्रता में ही बसती है; बंधनों में वह केवल मनोरंजन बनकर रह जाती है, उसकी जीवंतता और प्रभावशीलता खो जाती है।

इसलिए, हर समाज का कर्तव्य है कि वह अपने कलाकारों को पूर्ण स्वतंत्रता दे, ताकि वे अपनी कला के माध्यम से समाज, संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं का यथार्थ चित्रण कर सकें और मानवता को नई दिशा दे सकें।

(लेखिका डॉक्टर अंजना झा, राजा मानसिंह तोमर संगीत विश्वविद्यालय में नृत्य संकाय की विभागाध्यक्ष हैं। देश के विविध प्रांतों के साथ विदेश में भी अपनी प्रस्तुति से प्रदेश को गौरवान्वित कर चुकी हैं। विविध सम्मान से विभूषित डॉक्टर अंजना झा ,महाविद्यालय में प्रशिक्षण के अलावा भी अपने शिष्यों के विकास के लिए प्रयत्नशील रहती हैं। कलाकर और उसकी स्वतंत्रता पर उनका आलेख एक नई दिशा देता है।)

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